हद हो गयी मेडिकल शिक्षा के प्रति ‘बाबुओं’ की सुस्ती पर उच्च न्यायालय ने की निंदा

जमशेदपुर, 18 दिसंबर (रिपोर्टर): मोदी सरकार कायदे-कानूनों के सरलीकरण और इंस्पेक्टर राज (बाबू राज) नियंत्रित करने की भले बात करती है लेकिन ‘बाबुओंÓ पर इसका असर नहीं होता देखकर उच्च न्यायालय रांची ने मेडिकल शिक्षा में नामांकन जैसे समयबद्ध अनिवार्य विषय में उनके सुस्त रवैये प्रदर्शन की निंदा की.
प्रश्नगत विषय मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज में इस वर्ष शुरू किए गए नामांकन से जुड़ा है जिसमें पहले भारत सरकार की मेडिकल काउंसलिंग कमिटी ने आश्चर्यजनक ढंग से अंतिम समय में एकतरफा निर्णय करते हुए सीट मैट्रिक्स सिस्टम से इस कॉलेज को बाहर कर दिया था. इस पर कॉलेज प्रबंधन ने गत 11 नवंबर को तत्काल राहत के लिए उच्च न्यायालय में रिट याचिका (डब्ल्यू पीसी/3588/2020) दायर की. विदित हो कि 6 नवंबर से देश के मेडिकल कॉलेजों में नामांकन के लिए काउंसलिंग शुरू हुई और उसी दिन अचानक एडीजी, मेडिकल काउंसलिंग कमिटी, भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय ने मणिपाल टाटा कॉलेज में नामांकन पर रोक लगा दी थी जिसका कोई कारण भी नहीं बताया था. उस समय पहले राउंड की काउंसलिंग चल रही थी. कॉलेज की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सभी प्रतिवादियों को 24 नवंबर तक अपना पक्ष शपथ पत्र के जरिए हर हाल में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था. लेकिन अफसोस की बात है कि उच्च न्यायालय के इस निर्देश पर प्रतिवादियों ने शपथ पत्र दायर नहीं किया है जिस पर सिर पीटते हुए उच्च न्यायालय ने अफसोस जताया और सरकारी विभागों के रवैये को सुस्त बताते हुए कल की सुनवाई में उसकी निंदा की और 14 जनवरी 2021 तक जवाब देने का पुन: निर्देश दिया जैसा कि उनके विद्वान अधिवक्ताओं ने समय मांगा. अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि 3 फरवरी 2021 तय की.
उच्च न्यायालय का इस विषय में निर्णय दूरगामी प्रभाववाला होगा क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने गत 20 नवंबर को कॉलेज प्रबंधन द्वारा दायर एसएलपी पर तत्काल आदेश जारी करते हुए मणिपाल -टाटा मेडिकल कॉलेज को द्वितीय तथा अंतिम चरण की काउंसलिंग में शामिल करने का आदेश देते समय कहा कि उच्च न्यायालय विषय में विस्तृत विवेचना और सुनवाई कर निर्णय देगा. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष के लिए नामांकन शुरू हुआ जो अभी चल रहा है. इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के गाइड लाइन की भी बाबू परवाह नहीं कर रहे और उच्च न्यायालय में टाल-मटोल कर रहे हैं. अर्थात् अगर सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करता तब शायद मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज मे 150 सीटों के लिए झारखंड में बनी उच्च गुणवत्तापूर्ण मेडिकल शैक्षणिक व्यवस्था यूं ही लाल फीताशाही में उलझी रहती. झारखंड में पहले से ही मेडिकल सीटों की भारी कमी है. तीन नए सरकारी मेडिकल कॉलेज पलामू, दुमका, हजारीबाग में भी नामांकन रोक दिया गया है. धनबाद, जमशेदपुर और रांची में तीन कॉलेजों में लगभग 350 सीट ही हैं. झारखंड के बच्चे या तो सुविधा नहीं रहने से बीच में ही रास्ता भटक जाते हैं या फिर गिने-चुने छात्र भारी कर्ज के बोझ तले दूसरे राज्यों में जाकर पढ़ाई करते हैं.
इस विषय में जो प्रतिवादी है उनमें भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन सचिव, उच्च शिक्षा, यूजीसी, भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय मेडिकल काउंसलिंग कमिटी तथा स्वास्थ्य सचिव तथा एनएम सी (पूर्व एमसीआई) आदि हैं. इन सब प्रतिवादियों के अधिवक्ताओं ने उच्च न्यायालय में शपथ पत्र दायर नहीं करने के जो कारण बताए उन्हीं पर न्यायालय ने उनकी सुस्ती की निंदा की. इसके पहले 24 नवंबर को भी जब उक्त विभागों ने अपना जवाब नहीं दिया तब अदालत ने अप्रसन्नता जाहिर की थी और दो सप्ताह का समय दिया था. इसके बावजूद इन लोगों ने अपना जवाब कल सुनवाई की तिथि तक दायर नहीं किया था और तरह-तरह की बहानाबाजी की गई.

Share this News...