ए के श्रीवास्तव
धार्मिक उत्सव की जब बात होती हैं तो मुझे अपने बचपन की याद आती हैं. मेरे माता-पिता सनातन धर्म में अटूट विश्वास रखते थे. महाशिवरात्रि का जिस तरह पूजन होता हैं. भगवन शिव का उसी तरह गंगा दशहरा का भी पूजन होता हैं. मेरे पिताजी और माताजी बोलते थे कि ये गंगा दशहरा नहीं महागंगा दशहरा हैं. महापर्व है तो मुझे समझ में नहीं आया कि कहां से महापर्व आ गया महाशिवरात्रि तो हैं लेकिन महा गंगा दशहरा कैसे आ गया तब उसकी कहानी मुझे सुनाई गयी जो मुझे अब भी याद हैं मां गंगा का उसी दिन अवतरण हुआ था और भागीरथ के प्रयास से गंगा जब पृथ्वी पर आयी तो इतनी धारा में प्रबलता थी कि लगा कि पूरा पृथ्वी जिधर से जाय उधर प्रलय हो जायेगा, तो भगवन शिव के पास गया कि किसी तरह इस धारा को रोकिए. तब भगवान शिव ने अपनी जटा को इस तरह फैला दिया कि गंगा आकर उसी में उलझ गयी और 6-7 धारा हो गयी. गंगा की एक धारा जो निकली वो निकली गंगा उनके जटा से और धारा निकली तो धारवाड़ होते हुए और वो गंगा को मां बोलते हैं. ऐसी इलाके से गुजरते हुए समुन्दर में गयी कि भारत वर्ष का सबसे उपजाऊ एरिया बन गया. कृषि प्रधान देश में गंगा जिधर से गुजरी हैं वो सबसे उपजाऊ क्षेत्र हैं. गंगा में किसी को हानि पहुंचने वाले जीव-जंतु नहीं पाये जाते हैं. गंगा के किनारे जितने पवित्र शहर हैं वो सारे तीर्थ स्थान हैं. गंगा का पानी जैसा लोग बोलते हैं लेकिन आज भी हम विश्वास करते हैं कि गंगा के पानी में कीड़ा नहीं पड़ता हैं क्योंकि इतनी सल्फर जो हैं जैसा कि साइंटिफिक रिसोर्सेज ने बताया हैं.
गंगा हर दो-चार साल के बाद जब आती हैं सतह पर तो अपना प्रवाह बदल देती हैं, अगर आज गंगा का धारा एक जगह पर हैं तो हो सकता हैं कि चार साल के बाद थोड़ा बदल जाय जो बदलने वाला जो सूखा मिलता हैं, वो भारत वर्ष का सबसे उपजाऊ जमीन होता हैं. क्योंकि गंगा वहां बालू नहीं लाती हैं मिट्टी लाती हैं इसलिए गांव में भी जो आदमी स्नान करने जाता हैं नदी में हो या कुआं पर या तालाब में जब डूबकी लगता हैं तो बोलता हैं कि मां गंगे मां को इतना महत्व हैं. गंगा दशहरा जो पर्व हैं मां गंगा का अवतरण हुआ था. उस दिन और उसके बाद से गंगा हमेशा दाहिने रही हैं. अपने पुत्र को सेवा करती हैं देखती हैं कि रिद्धि-सिद्धि से आगे बढ़े. गंगा जिस-जिस शहर से होकर गुजरी हैं उस शहर का कल्याण हुआ हैं. कानपुर, बनारस, पटना, साहेबगंज जिधर देखिये. हरिद्वार में लोग जाते हैं जहां गंगा जिधर से गयी हैं वहां पर पवित्र मेला लगता हैं और पहले जब मेला लगता था तो बहुत तरह के लोग आते थे तो आजकल के लोग बोलते हैं कि मेला का मतलब मॉल जैसा प्रबंध होना चाहिए. पहले मेला में एक छोटा सा बंदर को घुमाया जाता था, कुछ गाटा बेचने वाले भी जाते थे तो जब इस तरह के धर्म स्थल पर गंगा के नाम पर मेला लगता हैं. जब कुम्भ मेला लगता हैं सब गंगा के किनारे लगता हैं. कुम्भ में जो करोड़ों लोग जाते हैं स्नान करने तो कितने आदमी को रोजगार मिलती होगी. दूसरे जगह तो करोड़ों आदमी तो नहीं जायेंगे सुवर्णरेखा में अगर हो तो करोड़ों आदमी कहां से आएंगे सरकार इंतजाम करती हैं. देश-विदेश से लोग आते हैं. आदमी को जीविका देती हैं परमानेंटली या जैसे भी देती हैं.
तो गंगा दशहरा ऐसा पर्व हैं. अभी हम कोरोना से जूझते चले जा रहे हैं. पहले तो नहीं था लेकिन आज देखिये समाचार पत्रों में सरकार काढ़ा पीजिये अवसाधियों के बारे में बोल रही हैं और गंगा के पानी में हमलोग बचपन में जिसको खाझ-खुजली होता था गंगा में स्नान करने पर सब खत्म हो जाता था. मान्यता थी सल्फर थी या जो भी हैं ये गंगा का महत्व हैं और गंगा दशहरा के दिन जो लोग इकनोमिक या शैक्षिणिक कंडीशन से सामाजिक कंडीशन से हेल्थ से लाचार चल रहे तो गंगा की पूजा गंगा जल ग्रहण करना गंगा दशहरा में पवित्र रूप से संकल्प से समर्पित होकर अगर हम गंगा की पूजा करें. गंगा में अपना समत्व बनाये रखें तो हो सकता हैं कि कोरोना जैसी बहुत से बहुत सी संक्रमण बीमारी पूजा पाठ से खत्म होती हैं. कोरोना से ज्यादा संक्रमण बीमारी माता निकलना, चेचक निकलना और बड़ी गोटी जिसको निकलती थी उसको गांव में एक खटिया पर बैठकर और जहां पर नीम का पेड़ रहता था उसी नीम के पेड़ के किनारे नीम के पत्ते से नहलाया जाता था तो ठीक होता था. ऐसी बीमारी में कोई दवा नहीं आती थी ये कोरोना की कोई दवाई नहीं हैं. सोशल डिस्टेसिंग बनाइये. गरम पानी पीजिये, काढ़ा पीजिये इसमें कोई खर्चा तो नहीं हैं. उसी तरह इससे खराब बीमारी छुआ-छूत की बीमारी थी तब आस्था था कि मां आयी हैं. इसके शरीर पर तो ठीक हो जाएगी. अगर आस्था के साथ हमलोग काम करें और सरकार कुछ भी नियम बनाई हैं. जरूर ये सब देख कर बनाई हैं इसका पालन करें गंगा दशहरा के बाद हो सकता हैं. इसका जो जोर हैं, जो प्रवाह हैं, जो गति हैं, उसमें कमी आये. गंगा दशहरा हमारे सनातन धर्म के लोग के लिए हिन्दू के लिए भारतवासियों के लिए एक पर्व हैं. पूरा निष्ठा से इसको करना चाहिए कोई उस दिन पूजा पाठ नहीं होता हैं लेकिन जरूर हमें हवन करना चाहिए, गंगा मां का ध्यान करना चाहिए.
लेखक-जमशेदपुर सिटीजन फोरम के अध्यक्ष हैं.