सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण ने बिहार को लेकर देश में व्याप्त नैरेटिव को पूरी तरह से पलटकर रख दिया है। जिस मुम्बई पुलिस की तुलना स्काटलैण्ड यार्ड पुलिस से की जाती रही है, उसे बिहार पुलिस ने इस मामले में पछाड़ दिया। जो टीवी पत्रकार एवं न्यूज चैनल मुगालते में रहते थे कि वे किसी की भी लानत मलानत कर सकते हैं, उन्हें बिहार के एक वकील ने आईना दिखा दिया। हम यहां चर्चा हो रही है सुशांत सिंह राजपूत के पिता के वकील पटना के विकास सिंह और बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय की। इन दोनों ने जिस अंदाज में इस मुद्दे पर पूरे देश के सामने अपनी बाते रखीं उसने देश में हर किसी को प्रभावित किया है। पहले डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय बिहार में दर्ज प्राथमिकी को जिस तरह सही ठहराते नजर आये और अब सुशांत के पिता के अधिवक्ता विकास सिंह बेहद सधे एवं नपे तुले और बेहद प्रभावी अंदाज में अपनी बाते रख रहे है उसने बिहार को लेकर व्याप्त नैरेटिव को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है।
पूरे प्रकरण में तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच इन दोनों ने जिस तरह झण्डा बुलंद रखा उसी का परिणाम आज देखने को मिल रहा है। सुशांत सिंह मौत की मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती का प्रायोजित इंटरव्यू दिखाये जाने के तुरंत बाद उसी चैनल ने जब सीधे अधिवक्ता विकास सिंह को जोड़ा गया तो उन्होंने बेहद सधे अंदाज में अपनी गहरी आपति दर्ज कराते हुए इंटरव्यू को चीनी की चापनी में पका पकाया बताया। टीवी एंकर से सीधे सवाल किया कि जिस तरह मुझे यहां ग्रील किया जाता है, रिया के साथ ऐसा क्यों नहीं किया गया? इस मामले की प्रमुख अभियुक्त को सेलेब्रेटी बना दिया गया। सुगर कोटेड सवाल पूछे जा रहे थे। टीवी एंकर के पास विकास सिंह के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं था। पूरी बातचीत के दौरान उक्त महिला एंकर जो सामान्य तौर पर बेहद आक्रामक नजर आती है, वे विकास सिंह के जवावों को निरूतर होकर सिर झुकाये सुन रही थी। बेहद शांत स्वभाव में विकास सिंह अपनी आपत्तियां दर्ज करा रहे थे। पत्रकारिता को लेकर जितने गंभीर सवाल उन्होंने उठाये उसी के बाद हर कोई इंटरव्यू लेने वाले एंकर राजदीप सरदेसाई पर हमलावर हो गया है। ये वही राजदीप सरदेसाई है जो हाल तक इस बात पर आपत्ति दर्ज करा रहे थे कि सुशांत सिंह राजपूत कोई इतना बड़ा कलाकार नहीं था जिसे लेकर टीवी चैनलों में इतनी खबरे दिखाई जा रही है। अब सवाल उठने लगे है कि क्या वैसे लोगों के लिये ही इंसाफ की लड़ाई लड़ी जानी चाहिए जो सेलेब्रेटी है, क्या सामान्य लोगों को इंसाफ नहीं मिलना चाहिए? उसके लिये संघर्ष नहीं किया जाना चाहिये? इसी राजदीप सरदेसाई ने हाल ही अधिवक्ता विकास सिंह को एक कार्यक्रम में बुलाकर सवाल किया कि आप इस मुद्दे पर मीडिया ट्रायल कर रहे है। उस समय भी विकास सिंह यह कहते हुए इंटरव्यू से उठ गये कि मुझे मीडिया ट्रायल का समय नहीं, आप मेरे पास आते हैं, इससे मेरा समय खराब होता है। राजदीप रिरियाते रहे लेकिन विकास सिंह उठ खड़े हुए।
विकास सिंह की प्रतिक्रिया के बाद पत्रकारिता एवं टीवी चैनलों की भूमिका को लेकर पूरे देश में बड़ी बहस छिड़ गई है। वैसे डिजाइनर पत्रकारों की खिंचाई हो रही है जो किसी एजेंडा को लेकर चलते है। ऐसा नहीं है कि एजेंडा को लेकर कुछ ही पत्रकार चलते है। आज ऐसे लोग ही बहुसंख्य है, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने मीडियाजगत खासकर टीवी न्यूज चैनल को यह सबक जरूर सिखा दिया है कि कोई यह न सोचे कि वह अपना एजेंडा आम जनमानस पर थोप सकता है। ऐसा तभी तक हो सकता है जब तक लोग बर्दाश्त करते हैै जब आम जनमानस अपने पर उतर जाता है तो अच्छे -अच्छो की खबर लेने लगता है। इस समय ऐसा ही हो रहा है।
अब चर्चा इस प्रकरण के एक अन्य महत्वपूर्ण किरदार बिहार के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पाण्डेय की .जब पटना में सुशांत मामले को लेकर पा्राथमिकी दर्ज कराई गई थी तो इस प्राथमिकी पर सवाल उठाने वालों की संख्या अधिक दिखती थी। लेकिन गुप्तेश्वर पाण्डेय ने उस वक्त कमान संभाली और अपनी बातें बेहद प्रभावशाली एवं दमदार अंदाज में रखने लगे। जब मामले की जांच के लिये पहुंचे बिहार के चार पुलिस अधिकारियों को मुम्बई पुलिस ने असहयोग किया तब तक वे मुंबई पुलिस पर हमलावर नहीं थे लेकिन जब पटना के सिटी एसपी आई पी एस अधिकारी विनय तिवारी को धोखा में रखकर मुम्बई में क्वारेंटीन कर लिया गया तो उसके बाद गुप्तेश्वर पाण्डेय का दूसरा ही रूप देखने को मिला। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां बिहार पुलिस की प्राथमिकी को सही ठहराया गया। बिहार सरकार द्वारा सीबीआई जांच की अनुशंसा को भी सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया। कहा जाता है कि दिल्ली की राजनीति बिहार और यूपी से ही होकर जाती है। अब महाराष्ट्र सरकार की समझ में यह बात आ जानी चाहिए। और बिहारियों के प्रति अपनी मानसिकता भी बदल देनी चाहिये।