झारखंड में रिश्ते तार-तार हो रहे हैं. दुष्कर्म की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. 5 बच्चों की मां के साथ 17-17 वहशी हैवानियत की सीमा लांघ रहे हैं. राज्य की राजधानी के पास ओरमाझी में दुष्कर्म के बाद अपराधी महिला का सिर काट ले जा रहे हैं और पुलिस न लाश की पहचान कर पा रही है और न कटा सिर ढूंढ़ पा रही है. चतरा की एक महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया. फिर हैवानों ने उसके साथ दरिंदगी की. महिला के चिल्लाने की आवाज सुनकर पहुंचे स्थानीय लोगों ने वहां जाकर देखा तो उनके रोंगटे खड़े हो गए. लड़की को तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाया गया. वहां बताया गया कि दरिंदों ने बारी-बारी से उसके साथ दुष्कर्म तो किया ही, उसके प्राइवेट पार्ट में स्टील का ग्लास घुसा दिया….
एक अन्य घटना में शादी के चार महीने बाद ही जेठ ने अपने छोटे भाई की पत्नी के साथ पहले बलात्कार किया, इसके कुकर्म को छिपाने के लिए गला दबाकर हत्या डाली. बात कहीं दूर तक नहीं फैले, इसके लिए विवाहिता के पति ने भी भाई का साथ दिया. मामले को सुसाइड का रूप देने के लिए जिस दुपट्टे से युवती को गला दबाकर मारा गया, उसी को फंदा बनाकर टांग दिया गया. यह घटना मझगांव बाजार की है. प. सिंहभूम जिले के ही जगन्नाथपुर में एक बहू ने अपने अवैध संबंधों को छिपाने के लिए के लिए अपने मामा के सहयोग से सास की हत्या कर डाली और खूंटे से शव को लटकाकर इसे आत्महत्या का रूप दे दिया. हालाँकि अंत में इस कांड का भांडा फूट ही गया….. खूंटी के पत्रकार पुत्र की कहानी तो जगजाहिर हो ही चुकी है जिसमें उस युवक का नाजायज संबंध अपनी चाची से ही था. वहां ऐसा लव ट्रैंगल बन गया था कि एक नौकर भी उसकी चाची से फंसा था. फिर चाची और नौकर ने मिलकर भतीजे का काम तमाम कर दिया. एक अन्य कांड में एक बाप ने अपनी बेटी को ही हवस का शिकार बनाया.
दरअसल इन घटनाओं का उल्लेख हमने इसलिए किया कि इनकी गंभीरता को समझिए. सारे कृत्य कितने घिनौने और गंभीर हैं. एक महिला के साथ 17-17 दरिंदों द्वारा बलात्कार किया जाना कितना बर्बर कृत्य है. ऐसी मानसिकता तो पशुओं की भी नहीं होती. क्या आदमी पशु से भी हिंस्र, बर्बर और करुणा के निरावकाश होता जाता रहा है? क्या सामाजिक संरचना में विकृति आती जा रही है? परिवार और समाज का अंकुश खत्म होता जा रहा है? अगर ऐसी बात है तो इसमें पुलिस या सरकार कांड के सामने आने के बाद ही कोई कार्रवाई कर सकती है. इस पहले घर में क्या हो रहा है, कौन किसके साथ अकेले में क्या कर रहा है, यह पता लगाना पुलिस के वश में नहीं है. इसमें समाज और परिवार की बड़ी भूमिका हो सकती है. वे कांड को ढंकने के बजाय पुलिस और न्यायालय को साफ-साफ बता सकते हैं. कई माताओं को हमने देखा है कि अगर बाप ने बेटी पर गलत नजर डाली है तो मां ने ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई है. औलाद के लिए अपने सुहाग की बलि चढ़ा दी है. ऐसे ही परिजन-पुरजन को भी आगे आना चाहिए ताकि इस विकृति पर प्रहार हो. गलत करने वाले बचे नहीं. इसमें कोई किसी अपने के खिलाफ नहीं जा रहा बल्कि एक पाप कहें या अपराध को मिटाने में शासन का सहयोग रहा. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो संभव है कि कल किसी का परिवार इससे प्रभावित हो सकता है. इसलिए समाज से बुराई को मिटाने में सहयोग करिए.
रही बात सजा दिलाने की तो पुलिस और प्रशासन ऐसे कांडों को हल्के में न लें. त्वरित कार्रवाई करें और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की कोशिश करें. एक लापरवाही सीएम के काफिले पर हमले वाली स्थिति को दोहरा सकती है. शासन-प्रशासन की छवि धूमिल कर सकती है. इसलिए छोटे-बडे हर कांड में समाज और शासन दोनों मिलकर काम करें. तभी इस बुराई पर नियंत्रण पाया जा सकता है.