जमशेदपुर : अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने झारखंड के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के बनाये गये चार्टर्ड ऑफ पेसेंट राइट्स को अनुमति देने के बावजूद टीएमएच एवं अन्य प्राइवेट अस्पतालों व नर्सिंग होमों द्वारा बकाया बिल की वसूली के लिये मरीजों अथवा मृत मरीजों के शव को रोके जाने की ओर ध्यान आकर्षित किया है.
अधिवक्ता ने कहा है कि महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश में वहां की सरकारों ने नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन रुल्स में संशोधन कर बिल वसूली के लिये मरीजों के शव अथवा स्वस्थ्य मरीज को रिलीज करने पर टालमटोल के रवैये पर रोक लगा दी है. बिल को लेकर किसी भी विवाद की स्थिति में मरीज को अस्पताल में नहीं रोका जा सकता और न ही किसी मृत मरीज के शव को तत्काल उसकी अंतिम क्रिया के अधिकार से उसके परिजनों को वंचित किया जा सकता. इन मामलों में यदाकदा विभिन्न अदालतों द्वारा समय समय पर निर्देश भी जारी किये जाते हैं. बिल की वसूली के लिये इस प्रकार अस्पताल का रवैया अख्तियार करना गैर कानूनी है. श्री पप्पू ने कहा है कि जमशेदपुर में अक्सर मरीजों के परिजनों को शव प्राप्त करने अथवा मरीज की छुट्टी कराने के लिये बिल को लेकर सांसद अथवा विधायक के पास दौडऩा पड़ता है जिनकी पहल पर अस्पताल प्रबंधन कुछ छुट देते हैं मानो एहसान करते हैं.
इस संबंध में बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशों का भी उन्होंने उल्लेख किया है, जिसमें कोर्ट ने मरीज अथवा किसी मरीज के शव को रोके जाने की कड़ी निंदा की है. मध्य प्रदेश सरकार ने तो ऐसे एक मामले में नर्सिंग होम प्रबंधन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की और उसका लाइसेंस रद्द कर दिया. श्री पप्पू ने कहा कि टीएमएच प्रबंधन द्वारा ऐसा अक्सर किया जाता है अतएव इस संबंध में तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि साधन विहीन और निर्धन परिवार के मरीजों की मौत के बाद भी अंतिम क्रिया के लिये किसी की मोहताज न होना पड़े.