जमशेदपुर, 19 अगस्त (रिपोर्टर): झारखंड गठन के 20 साल बाद भी न्यायिक प्रक्रिया में अनुसूचित क्षेत्र के निवासियों की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में सरकारों की उदासीनता पर झारखंड स्टेट बार काउंसिल के सदस्य एवं इंडियन एसोसिएशन ऑफ लायर्स तथा झारखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता ए के रशीदी ने झारखंड के मंत्रियों एवं विधायकों को ज्ञापन सौंप कर अविलंब पहल करने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि इस कार्रवाई के लिए संविधान की पांचवीं अनुसूची में कई प्रावधान किए गए हैं. इस अनुसूचि के आलोक में अनुसूचित क्षेत्रों में आमलोगों की न्यायिक प्रक्रिया में भागीदारी, झारखंड उच्च न्यायालय का दुमका में बेंच स्थापित करने और विभिन्न न्यायालयों में विशेष सरकारी अधिवक्ता (अनुसूचित क्षेत्र) की नियुक्ति अनिवार्य महसूस होती है ताकि क्षेत्र के लोग मुख्य धारा में जुड़े और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान सुनिश्चित करें. उन्होंने कहा कि आदिवासी सलाहकार समिति का गठन नहीं होना भी दुर्भाग्यपूर्ण है.
श्री रशीदी ने मंत्री हाजी हुसैन अंसारी, आलम गीर आलम, विधायक बंधु तिर्की सहित ऐसे कई नेताओं का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जो इस क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय हैं और लोगों के समर्थन के बल पर शिखर पर पहुंचे हुए हैं. उन्होंने लिखा है कि ब्रिटिश सरकार द्वारा द शिड्यूल्ड ड्रिस्टक एक्ट 1874 के प्रथम अनुसूची शिड्यूल्ड ड्रिस्टक बंगाल द्वारा वर्तमान झारखंड के संथाल परगना एवं चुटिया नागपुर (छोटा नागपुर) प्रमंडल को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया था. उक्त अधिनियम के तहत अनुसूचित क्षेत्र में न्यायिक प्रक्रिया स्थापित करने संबंधी अधिकार दिए गए हैं. तदनुसार स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 244 (1) एवं पांचवीं अनुसूचि की धारा (5) द्वारा प्रदत्त अधिकार का उपयोग करते हुए अनुसूचित क्षेत्र (भाग -क राज्य) आदेश 1950 पारित किया है. इसके उपरांत वर्ष 1977 एवं 2003 में राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित क्षेत्र (भाग-क राज्य) आदेश 1950 में संशोधन किया गया है. सरकार द्वारा झारखंड राज्य एवं इसके अनुसूचित क्षेत्र में खास कर जल, जंगल, जमीन, भाषा संस्कृति, शिक्षा आदि के क्षेत्र में आंशिक तौर पर अनूसूचित क्षेत्र में काम किया गया है लेकिन कानूनी प्रक्रिया एवं झारखंड उच्च न्यायालय तथा अन्य न्यायालयों में अनूसूचित क्षेत्र के विशेष कानूनी प्रक्रिया खासकर दबे कुचले, गरीब, अशिक्षित, दलित एवं आदिवासी को विशेष रूप से कानूनी सहायता प्रदान नहीं की जा रही है. झारखंड सरकार ने अभी तक अनूसूचित क्षेत्र के लिए विशेष पदाधिकारी का पद सृजन नहीं किया है जिसके चलते उच्च न्यायालय एवं अन्य न्यायालयों में विशेष विधि पदाधिकारी (अनूसूचित क्षेत्र) की नियुक्ति नहीं हुई. इन विसंगतियों के चलते लगभग 150 वर्षों से छोटानागपुर एवं संथाल परगना में न्यायिक व्यवस्था आकाश कुसुम बना हुआ है. झारखंड सरकार गठन के 20 वर्षों में अभी तक न कोई आदिवासी महाधिवक्ता, न ही अपर महाधिवक्ता नियुक्त किये गए हैं. झारखंड सरकार द्वारा सृजित विधि पदाधिकारी के पद पर अनूसूचित क्षेत्र के लिए विशेष विधि पदाधिकारी का पद भी नहीं सृजित किया गया है जिससे अनुसूचित क्षेत्र के आम लोगों को न्यायिक प्रक्रिया में भागीदारी नहीं मिल रही है.