झामुमो शासन में भी एनडीए पोषित अयोग्य भ्रष्ट डायरेक्टर की चलती बरकरार!

जमशेदपुर, 7 अगस्त (कार्यालय प्रतिनिधि): एक सरकारी पदाधिकारी आमतौर पर राजनीतिक नेताओं से अपने परिचय, संपर्क आदि को सार्वजनिक करने से परहेज करता है लेकिन उक्त चित्र झारखंड के डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन डा. अरूण कुमार के उनके फेसबुक आईडी पर चस्पा है जो दर्शाने के लिए है कि निदेशक की क्या हस्ती है.
विदित हो कि सन् 2017 में हाई कोर्ट के एक आदेश की मनमाने ढंग से व्याख्या करके झारखंड सरकार ने उनकी नियुक्ति उक्त पद पर कर दी. हाई कोर्ट ने पुराने पद डायरेक्टर पर फिर से बहाल करने का आदेश दिया था जो एचओडी स्तर का नहीं था. लेकिन उनकी नियुक्ति विभाग के पुनर्गठन के बाद सृजित डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन के एचओडी स्तर के उच्च पद पर की गयी, जबकि यह डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन का पद मात्र 3 साल के लिए था लेकिन नियुक्ति इस पद पर पूरी सेवावधि के लिए कर दी गयी. विदित हो कि इस पद पर नियुक्ति के लिए एक और प्राथमिक अहर्ता थी कि आवेदक को सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज या पोलिटेक्निक में सरकारी सेवक के रूप में कार्यरत होना चाहिए था जबकि डा. अरूण कुमार महाराष्ट्र में मशरूम की तरह पनपे कोपरगांव स्थित एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज के शिक्षक हैं. इतनी अनियमितताओं के बाद भी सरकार द्वारा यह अनदेखी? क्या योग्य सरकारी शिक्षकों की कमी थी? यह सब कहीं उपर्युक्त फेसबुक फोटो के स्टंट की योग्यता तो नहीं? यह अपने आप में सरकार के कायद-कानून का खुला उल्लंघन है. मजे की बात है कि सरकार का भारी भरकम अमला लिए अपना विधि विभाग और मंत्रालय भी है, लेकिन वहां हाई कोर्ट के आदेश की व्याख्या के लिए मामला प्रेषित नहीं किया गया. इसके बजाय झारखंड के तत्कालीन बहुचर्चित एडवोकेट जनरल अजीत कुमार का लीगल ‘ओपिनयनÓ लिया गया. यह वही अजीत कुमार हैं जिनके एडवोकेट जनरल के रूप में कई विवादस्पद और स्वार्थप्रेरित ‘ओपिनियनÓ और हाई कोर्ट तथा सरकार में गुमराह करने वाली बातों को लेकर विधायक एवं रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय से विवाद खूब चर्चा में रहा था जो माइनिंग लीज तथा दूसरा भाजपा से अभी निष्कासित नेता अमरप्रीत सिंह काले के पारिवार की जमीन से संबंधित था.
डा. अरूण कुमार के इस पद पर बहाली के बाद झारखंड के तकनीकी शिक्षा विभाग के इंजीनियरिंग, पोलिटेक्निक संस्थानों, प्राइवेट आईटीआई, दीनदयाल उपाध्याय ट्रेनिंग योजना आदि में कितनी मनमानियां और भ्रष्टाचार के खेल चल रहे हैं. इसका हम सिलसिलेवार लगातार प्रकाशन कर रहे हैं.
मनमाना स्थानांतरण-पदस्थापन के जरिए आर्म ट्विस्टिंग, उगाही मनपसंद प्राचार्यों को आवंटन और उनका ‘अमन कम्प्युटर्सÓ जैसे प्रतिष्ठानों को खड़ा कर साइफनिंग के कई दृष्टांत सामने आ चुके हैं. आदिवासी और पिछड़ी जातियों को निशाना कर खासकर वैसे सभी प्राचार्यों और ‘फैकल्टीÓ के मनोबल पर प्रहार जो निदेशालय के इशारे पर कठपुतली न बनते हों, जैसी बम्बइया फिल्म की कहानी जैसे खेलों का विभाग का ईंट-पत्थर गवाह बना हुआ है, फिर भी इस डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन पर सरकार मौन रहती है तो सहज फेसबुक आईडी पर पोस्टेड तस्वीर से बने ‘औराÓ और ‘आभाÓ की अहमियत को लेकर गलतफहली बन सकती है.
इस निदेशालय में ‘मुखेर कानूनÓ और चेहरों की पसंदगी-नापसंदगी का खेल चलते हैं. जो व्याख्याता निदेशक के गलत कारनामे का विरोध करते हैं तो उनसे प्राचार्य का पद छीन लिया जाता है मानो निदेशालय सरकार के नियम कायदे से नहीं ‘जमींदारीÓ की रियासतों के आधार पर चलता हो. एक वरीय व्याख्याता के साथ वर्ष 2018 में घटित वाकया आज भी चर्चा में है. नवगठित जगन्नाथपुर राजकीय पोलिटेक्निक का प्रभार अचानक उक्त व्याख्याता से छीनकर उनसे जूनियर को अतिरिक्त प्रभार में दे दिया गया जिसके पास पहले से एक पोलिटेक्निक का प्रभार था. उक्त वरीय व्याख्याता कायदा-कानून से चलनेवाले थे जिनके मार्फत अवैध अर्जन की संभावना नहीं थी. विदित हो कि उक्त वरीय व्याख्याता ने जगन्नाथपुर पोलिटेक्निक को काफी प्रयास कर एआईसीटीई से एप्रूवल दिलाया था. कार्यालय व्यय से लेकर ग्रामीण छात्रों को मोटिवेट कर नामांकन कराने तक में उनके परिश्रम के लिए ‘रिवार्डÓ की जगह उन्हें इस प्रकार मानसिक प्रताडऩा दी गयी. तब उस व्याख्याता की पत्नी ने इस निदेशक के विरूद्ध लम्बी शिकायत भेजी और लगभग डेढ़ सौ पन्नों का दस्तावेज सौंपा. एक अपर सचिव की अध्यक्षता में निदेशक के विरूद्ध जांच समिति गठित की गयी लेकिन निदेशक अभी तक इस जांच को दबवाने में कामयाब होते आए हैं. अगर निष्पक्ष रूप से इस शिकायत की जांच कराई जाए तब निदेशक की सच्चाई एक बार फिर सामने आ सकती है. निदेशक अपनी जगह पर रहते हैं, विभागीय आईएएस सचिव बदलते रहते हैं. अधिकांश सचिव निदेशक के फेर में पड़े रहते हैं. लेकिन उक्त व्याख्याता के मामले में तत्कालीन सचिव को कुछ भनक लगी कि उन्हें गुमराह किया गया है तब उन्होंने निदेशक के अधिकांश अधिकार जब्त करा दिए. उक्त व्याख्याता के साथ की गयी विभागीय भूल को सुधारते हुए उन्हें अचानक राजधानी के गरिमामयी राजकीय महिला पोलिटेक्निक में प्रभारी प्राचार्य का पद दिया गया. एस के महतो के साथ एक ट्ेजडी यह भी हुई कि तत्कालीन संयुक्त सचिव सह निदेशक ब्रज मोहन कुमार, आईएएस के आदेश पर उन्होंने डा. अरूण कुमार द्वारा किसी ‘मैवरिक कंपनीÓ को किए गए मनमाना भुगतान की जांच की थी और प्रतिवेदन में आरोपों की पुष्टि की थी. श्री महतो उस समय आदित्यपुर पोलिटेक्निक के प्राचार्य थे. उन्होंने 300 पन्नों के जांच प्रतिवेदन में डा. अरूण कुमार को राज्य प्रावैधिकी की शिक्षा परिषद (एसबीटीई), रांची द्वारा पोलिटेक्निक संस्थानों में आयोजित परीक्षाओं का परीक्षाफल तैयार कर प्रकाशन की जिम्मेवारी से संबंधित कांट्रैक्ट दिलाने तथा विपत्रों के बावत अग्रिम 50 प्रतिशत भुगतान को 80 प्रतिशत करने जैसे भ्रष्टाचार को उजागर किया था. वर्तमान सचिव के कार्यकाल में डा. अरूण कुमार इस जांच को संचिकास्त कराने में अभी तक कामयाब हुए हैं.
श्री महतो की पत्नी की शिकायत पर एक सचिव राजेश शर्मा द्वारा अपर सचिव राजेश सिंह, आईएएस, एन तिवारी एवं रजनीश की 3 सदस्यीय समिति गठित कर जांच का आदेश भी दबा दिया गया है. इस शिकायत में डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन के खिलाफ कई आरोप हैं जैसे अमन कम्प्युटर्स में बेटे की हिस्सेदारी, मनमाफिक फर्मों अमन, साइनटेक, शंकर ट्रेडर्स आदि को करोड़ों का सप्लाई आर्डर नियम विरूद्ध दिलाने का आरोप लगाया गया है. एक आदिवासी शिक्षक नटवा हांसदा को सिमडेगा पोलिटेक्निक के प्राचार्य पद से हटाने एवं उनकी जगह पर जूनियर अयोध्या कुमार को प्राचार्य का दोहरा प्रभार दिलाने और उसे खरीद हेतु को-आर्डिनेटर नामित कर निदेशालय स्तर से नवसृजित चार नए राजकीय पोलिटेक्निक के लिए सामानों की खरीद के लिए 20 करोड़ से ज्यादा रकम के आवंटन की बंदरबांट करने का कुचक्र करने का आरोप है. फिलहाल सचिव से नजदीकी का दंभ भरते हुए इस जांच को दबाने में सफल हैं. इस प्रकार आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थानीय और खासकर एक मात्र आदिवासी प्राचार्य नटवा हांसदा के साथ की गयी ज्यादती पर भी सरकार और बड़े अधिकारी डायरेक्टर का साथ देते रहे…. (जारी)

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