जमशेदपुर , 23 जुलाई:चाईबासा बरकेला वन विभाग भवन सहित सड़क विस्फोट की माओवादी वारदात के पीछे के पूरे खतरनाक षड्यंत्र की कहानी का खुलासा होने के बाद ऐसा लगता है कि कोल्हान के जंगल क्षेत्र में सरकार का कहीं कोई असरदार कवर नहीं हैं जिससे माओवादियों को खुला मैदान मिला हुआ है।
माओवादियों के स्थानीय संपर्क की भूमिका निभानेवाले लोगों में दो को चाईबासा पुलिस ने गिरफ्तार किया और इसके बयान से जो कहानी उजागर हुई है वह सनसनीखेज है। इस कांड में और 55 ऐसे लोगों का नाम सामने आया है जिन्होंने माओवादियों को स्थानीय स्तर पर साधन सुविधाएं पहुंचाई। पता चलता है कि इस क्षेत्र में माओवादियों के पोलित ब्यूरो सदस्य मिसिर बेसरा के इशारे पर सारी घटनाएं कराई जा रही हैं। इन दो विस्फोटों में प्रत्यक्ष रूप से गिरिडीह से आए अजय महतो जो बुधराम जी के नाम से सक्रिय है तथा पीरटांड से आये साहेबराज मांझी की भूमिका का पता चला है। स्थानीय ग्रामीणों को भरमाने और उनका मसीहा बनने के लिए ये नक्सली खुद को ‘बुरू हो ‘ बताते हैं और ग्रामीणों को भावनात्मक रूप से उकसाकर उनका मसीहा और अपने बीच का आदमी बताते हैं ।इस प्रकार वे जंगल -जमीन पहाड़ का हितैषी बनने का स्वांग भरते हैं और ग्रामीणों को अपने झांसे में ले लेते हैं। ‘बुरु’ का अर्थ पहाड़ और ‘हो’ निवासी के रूप में परिभाषा समझा कर नक्सली ग्रामीणों को उकसाने में सफल हुए कि वन विभाग नहीं वे पहाड़ -जंगल के असली रक्षक हैं। बीच में वन विभाग नाजायज रूप से आकर ग्रामीणों का हक मारता है। बरकेला की घटना के लिए उन्होंने ग्रामीणों को यह उकसाकर तैयार कराया कि वन विभाग ने सन् 2018 में कतिपय ग्रामीणों पर एक मामले में एफ आई आर दर्ज कराया था। गत 11/12 जुलाई की रात बरकेला स्थित सायतवा के वन विस्फोट की घटना के लिए माओवादी पिछले कई दिनों से तानाबाना बुन रहे थे। पुलिस का मूवमेंट वाच कर रहे थे। कहीं पुलिस की आवाजाही नहीं थी। उन्हें खुला मैदान मिला था। ग्रामीणों के घर उन्होंने आराम से सिलंडर बम पहुंचाया। गिरिडीह और पीड़टांड़ से आये माओवादी बम एक्सपर्ट हैं। फिर ग्रामीणों को लेकर रात में विस्फोट कराने और सड़क उड़ाने की साजिश भी उतनी ही छूट के कारण आराम से अंजाम दी गयी। स्थानीय सम्पर्क सूत्र के रूप में ग्रामीण साइकिल से ही क्षेत्र-क्षेत्र का भ्रमण कर संदेश फैलाते रहे। माओवादियों में अपने मिशन के प्रति लगन और समर्पण को देखा जाए तो सरकारी मशीनरी के पास कोई साधन, विज़न और व्यवस्था नहीं। पूरे परिदृश्य और साजिश की कहानी से स्पष्ट होता है कि स्थल पर सरकार का कोई प्रभावकारी अस्तित्व नहीं होता। सुरक्षा का कोई कवर नहीं। नक्सल कुप्रचार को रोकने और संग्रहित करने के लिए पुलिस का कोई तंत्र नहीं। विकास कार्य को अंजाम देने की कोई समेकित योजना नहीं। कहा जाताहै कि विकास रूपी शिशु सुरक्षा तंत्र के गर्भ और गोद में ही पल सकता है लेकिन इसओर किसी सरकार का ध्यान नहीं। आश्चर्य की बात है कि सभी दलों को समय-समय पर कोल्हान का यह क्षेत्र आंखमूदकर समर्थन देता है। एक समय कोल्हान के सभी विधानसभा क्षेत्रों से भाजपा के विधायक चुने गये थे तो इस बार कोल्हान ने आंखमूद कर झामुमो का साथ दिया। लोग सरकार से विकास की उम्मीद करते हैं लेकिन अंतत: वे ठगे ही गये हैं और नक्सलियों के कुप्रचार का शिकार होते आये हैं। जन प्रतिनिधि गाँव के विकास से उदासीन रहते हैं।घटना के बाद पुलिस जाती है छानबीन होती है फिर सरकार चुप लगा जाती है। इस बीच फिर षड्यंत्र का ताना बाना शुरू हो जाता है। सारंडा में आपरेशन ग्रीन हंट जब लांच हुआ तभी से बरकेला क्षेत्र में पुलिस की अस्थायी पिकेट की बात उठी थी लेकिन बात जहां की तहां रह गयी।