कोरोना के बीच गुजरे साल 2020 में बोर्ड परीक्षा के छात्रों की पढ़ाई ऑनलाइन जारी रही. अब समय परीक्षाओं का है और अलग-अलग बोर्ड एक-एक कर अपनी बोर्ड परीक्षाओं की डेट्स जारी करने की शुरुआत कर चुके हैं. सामान्य परिस्थितियों में परीक्षाएं फरवरी-मार्च के महीने में शुरू हो जाती हैं मगर इस वर्ष परीक्षाएं कुछ देरी से ही शुरू होंगी. छात्रों को पर्याप्त समय देने के लिए परीक्षाएं मई के पहले सप्ताह से शुरू होने की उम्मीद है. प्रायौगिक परीक्षाएं भी लिखित परीक्षाओं से पहले आयोजित की जानी हैं. ऐसे में छात्र-छात्राओं का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है. खास कर उस वर्ग की भी चिंता की जानी चाहिए जिनके पास न एंड्रॉयड फोन थे, न इंटरनेट कनेक्शन और न जरूरत के अनुसार डाटा. नेटवर्क का प्रॉब्लेम और ऑपरेशन के लिए तकनीकी जानकारी का अभाव अलग से. उनके लिए वर्ष 2020 एक बुरे सपने की तरह रहा लेकिन अब चला गया है. यह वर्ष हमारे जीवन में अनेक घाव छोड़ गया है. वर्ष 2020 केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बेहद कठिन रहा. हमने लगभग पूरा साल पाबंदियों में बिताया. अब नव वर्ष का आगमन हो चुका है. नए साल का आरम्भ नई उम्मीदों के साथ हो रहा है. जीवन की गाड़ी पटरी पर लौटने लगी है. कोरोना की वैक्सीन ने भी हमारे हौंसलों को उड़ान दी है. जीवन में उतार-चढ़ाव जिन्दगी का एक हिस्सा हैं, इनसे बचा नहीं जा सकता. पिछले साल से सबक लेकर हम सबको आगे बढऩा है. अंग्रेजी में एक कहावत है-लेट बाई गौन बी बाई गौन…हमें 2020 को भूल जाना चाहिए और नव वर्ष को सामने रखकर भविष्य को संवारने की कोशिश करनी चाहिए.
कोरोना वायरस के चलते शिक्षण संस्थान पिछले वर्ष मार्च से ही बंद हैं. कोरोना ने शिक्षा के चरित्र को ही बदल डाला है. जब-जब समाज का स्वरूप बदला, शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की बात हुई. ऑनलाइन शिक्षा मात्र तकनीक नहीं, समाजीकरण की नई प्रक्रिया भी बनी. कोरोना संकट में शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए शिक्षा के लिए तकनीक का प्रयोग एक अच्छी पहल है. तकनीक के विकास के साथ में शिक्षा में इसका प्रयोग होता रहा है, यह होना भी जरूरी है. शिक्षकों के लेक्चर रिकार्ड करना और उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराना भी तकनीक का उपयोग ही है. कोरोना काल में बच्चों को पढ़ाना कोई आसान काम नहीं है. बच्चे, शिक्षक और अभिभावक शिक्षा की तीन महत्वपूर्ण कडिय़ां हैं. हमारी शिक्षा व्यवस्था इन तीन कडिय़ों को जोडऩे में जुटी हुई थी कि इसमें डिजिटल की एक और कड़ी जुड़ गई, लेकिन वर्चुअल कक्षाओं ने इंटरनेट को भी शिक्षा की महत्वपूर्ण कड़ी बना दिया है. लेकिन देश में एक बड़े वर्ग के पास न तो स्मार्ट फोन है और न ही कम्प्यूटर और न ही इंटरनेट की सुविधा. नया साल वर्चुअल शिक्षा के गुण और दोष पर चर्चा का है. वे इस दौर में कमोबेश पीछे रह गए. हालांकि शिक्षा मंत्रालय ने दूरदर्शन पर कक्षाएं आरम्भ कीं ताकि शिक्षा की पहुंच उन क्षेत्रों में भी हो जहां तकनीकी सुविधाएं नहीं हैं. लेकिन प्रयास नाकाफी था. परीक्षाओंं में उन्हें भी शामिल होना है लेकिन ऑफलाइन. पढ़ाई न के बराबर हुई है. स्थानीय ट्यूशन या माता-पिता के सहयोग से जो कुछ सीख पाए, बात उतनी भर रही. ऐसे बच्चों के अभिभावकों का ज्यादा समय रोटी के जुगाड़ में बीता
क्योंकि कोरोना काल में रोजी के भी लाले पड़े थे. दुकान-प्रतिष्ठान सब बंद पड़े थे. सरकार की तरफ से जो कुछ अनाज पानी मिल पा रहा था, उसी से जीवन की गाड़ी खींचनी थी. स्वाभाविक रूप से इस दौरान अभिवंचित वर्ग के बच्चों की पड़ाई-लिखाई पिछले पायदान पर छूट गई.
अगर समाज की मुख्य धारा में इन्हें भी लाना है तो सहयोग का हाथ इनके कंधे पर भी रखना होगा. खासकर बोर्ड परीक्षाएं मई के पहले सप्ताह से शुरू हो रही हैं. इस बीच इनका सिलेबस भी पूरा होना है. पास-पड़ोस में जो भी पढ़े-लिखे लोग हैं, अगर वे अपने दो-तीन घंटे इन बच्चों को दे पाएं तो समाजहित में बड़ा उपकार होगा. क्योंकि वही समाज सम्यक रूप से आगे बढ़ता है जिसका संतुलित विकास होता है. आधे अंग का विकास विसंगति कहलाता है. इसलिए जो आदमी जहां है, वहीं से अपना हाथ बंटा सकता है. अभिभावकों को भी चाहिए कि इन चार महीनों में अपने बच्चों की खूब हौसलाअफजाई करें.