अदालत ने कहा- पीडित के घर जाने की बजाय सीबीआई ने उसे दफ्तर में बुलाया, आश्चर्यजनक
सजा पर बहस 18 दिसंबर को
दिल्ली/लखनऊ. उत्तर प्रदेश के उन्नाव केस में दिल्ली कोर्ट ने सोमवार को भाजपा से निष्कासित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर (53) को नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और अपहरण का दोषी करार दिया। कोर्ट ने कहा कि एक ताकतवर इंसान के खिलाफ पीड़ित का बयान सच्चा और निष्कलंक है। अदालत सजा पर बुधवार को बहस करेगी और इसी दिन सजा तय की जा सकती है। पीड़ित की तरफ से कोर्ट में उम्र कैद देने की अपील की गई। जिला जज धर्मेश शर्मा ने इस मामले में सह आरोपी शशि सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
सेंगर और उसके साथियों ने 2017 में लड़की को अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म किया था। इसी साल जुलाई में पी?ित की कार की ट्रक से भिड़ंत हो गई थी। हादसे में पीड़ित की चाची और मौसी की मौत हो गई थी। पी?ित ल?की और उसके वकील तभी से दिल्ली एम्स में भर्ती हैं। विधायक के भाई की शिकायत पर ल?की का चाचा जेल में है। सेंगर फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद है।
कोर्ट ने सीबीआई को फटकार लगाई, कहा- एजेंसी ने खुद प्रक्रिया का पालन नहीं किया
न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा- पीड़ित का यह बयान कि उसका यौन शोषण हुआ, मुझे यह सच्चा और निष्कलंक लगता है। उसे धमकाया गया था और वह परेशान थी। वह किसी कॉस्मोपॉलिटन के शिक्षित इलाके की नहीं, गांव की लड़की है। सेंगर एक ताकतवर शख्स था। ऐसे में पीड़ित ने अपना समय लिया।
न्यायाधीश ने कहा, “जब पीड़ित के परिवार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा, तब उसके परिवार के खिलाफ कुछ आपराधिक मुकदमे दर्ज करा दिए गए। इनमें सेंगर का प्रभाव दिखाई दे रहा था।’
अदालत ने दुष्कर्म के मामले में सीबीआई द्वारा चार्जशीट दाखिल करने में देरी पर हैरानी जताई। कोर्ट ने कहा कि इससे सेंगर और अन्य के खिलाफ ट्रायल में देरी हुई। कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारी की गैर-मौजूदगी में जांच की गई और आरोप तय किए गए। इस बात की फिक्र भी नहीं की गई कि यौन शोषण की पीड़ित किस यातना से गुजरेगी और दोबारा उस पीड़ा को भोगेगी। कानून के मुताबिक, ऐसे मामले में पीड़ित के बयान दर्ज करते वक्त महिला अफसर का होना जरूरी है, लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि सीबीआई ने उसके घर जाने की बजाय कई बार पीड़ित को ही सीबीआई दफ्तर में बुलाया।
कोर्ट ने नाराजगी जताई कि जांच एजेंसी ने पीड़ित के बयान से जुड़ी चुनिंदा जानकारी को बाहर भेजा ताकि पीड़ित के केस पर पर्दा डाला जा सके। पॉक्सो एक्ट में कोई खामी नहीं है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसके निष्प्रभावी क्रियान्वयन और अधिकारियों में मानवीय नजरिए की कमी ने हालात को ऐसा बना दिया, जहां इंसाफ में देरी हुई। सीबीआई ने जांच और अभियोग से जुड़ी प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस दिल्ली ट्रांसफर हुआ था
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केस लखनऊ से दिल्ली कोर्ट ट्रांसफर हुआ था। इसके बाद 5 अगस्त से रोजाना बंद कमरे में सुनवाई हो रही थी। इस दौरान अभियोजन पक्ष के 13 गवाहों और बचाव पक्ष के 9 गवाहों से जिरह हुई। पीड़ित का बयान दर्ज करने के लिए एम्स में स्पेशल कोर्ट बनाया गया था। तीस हजारी कोर्ट ने 10 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रखा था।