खड़गपुर : इन्हें आप खड़गपुर की राजनीति का ‘ लाल कृष्ण आडवाणी ‘ भी कह सकते हैं . नाम है देवाशीष चौधरी . सभासद , पार्टी की टाउन कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और जिला समिति के पूर्व महासचिव . कुशल संगठक और प्रखर वक्ता देवाशीष चौधरी के बारे में सब जानते हैं कि नगरीय राजनीति में उन्होंने अपनी पार्टी को शून्य से शिखर तक पहुंचाया , लेकिन लोग यह भी मानते हैं कि सत्ता के रसगुल्ले खाने के वक्त कभी परिस्थितियों तो कभी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया . यही वजह है कि राजनीति की रपटीली राहों पर आज देवाशीष और उनके समर्थक खुद को दोराहे पर पा रहे हैं .
2001 में टीएमसी की बागडोर संभालने वाले देवाशीष 2005 में हुए नगरपालिका चुनाव में न सिर्फ एक बेहद चुनौतीपूर्ण सीट से खुद जीते बल्कि 30 में कुल सात सीटें पार्टी को जिताने में भी कामयाब रहे . लिहाजा 2010 का नगरपालिका चुनाव पार्टी ने उनके नेतृत्व में लड़ा . सबसे ज्यादा 15 सीटें जीतने की वजह से तब देवाशीष के चेयरमैन चुने जाने पर शायद ही किसी को आपत्ति होती . लेकिन खुद उनके चुनाव हार जाने से वे अपनी पार्टी में धीरे – धीरे आडवाणी की गति को प्राप्त होते गए . 2015 के नगरपालिका चुनाव में पार्टी ने फिर उन पर दांंव खेला . लेकिन अपेक्षा से काफी कम ११ सीटें जीतने की वजह से वे लगातार हाशिए पर जाते रहे . नेतृत्व ने आश्चर्यजनक रूप से बिल्कुल नए प्रदीप सरकार में विश्वास जताया और काल क्रम में बाजी लगातार उनके हाथ से निकलती गई . पूर्व कमेटी में जिला महासचिव रहे देवाशीष को पार्टी की जिला समिति की नई कमेटी में जगह नहीं मिलने से उनके समर्थकों का धीरज जवाब देने लगा है . चौधरी समर्थकों ने अपनी भावनाओं का इजहार दफ्तर के सामने फ्लैक्स लगा कर किया . जो लगने के कुछ घंटे बाद ही नाटकीय तरीके से फाड़ डाला गया . इस घटना पर भी आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है . चर्चा उनके पार्टी छोड़ने , भाजपा में जाने या फिर नागरिक कमेटी बना कर नए सिरे से संघर्ष शुरू करने की भी है . हालांकि खुद देवाशीष फौरी तौर पर ऐसी किसी संभावना से इन्कार करते हैं . यद्यपि देवाशीष यह स्वीकार करते हैं कि नेतृत्व के रवैये से समर्थकों में हताशा है . लेकिन वे नेतृत्व के संपर्क में है . कार्यकर्ताओं से व्यापक विचार – विमर्श के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा .