12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के प्रणेता स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन भारतीय अस्मिता और हिन्दू संस्कृति को जहां दुनिया में स्थापित करनेवाला था, वहीं आज उनके मुख्य सूत्रधार युवा जब मुख्य धारा से भटक रहे हैं तो नि:संदेह काफी पीड़ा होती है. युवाओं के देश भारत में जितने युवा नये नये कारनामे कर राष्ट्र की प्रगति का पहिया घुमा रहे हैं, उससे ज्यादा युवक इस अभियान से छिटककर अपनी जीवन लीला भी बर्बाद कर रहे हैं. तरह-तरह के भटकाव में आकर युवा वर्ग ऐसे ऐसे अपकर्म में शामिल हो जा रहा है, जिसे जगाने के लिये स्वामीजी ने अपनी पूरी ताकत और ज्ञान शक्ति की आहूति दे दी. युवाओं के बीच बढ़ती नशाखोरी, आत्महत्या की प्रवृत्ति, अकर्मण्यता और राष्ट्रविरोधी हिंसक घटनाओं में लिप्त होने की अप्राकृतिक गतिविधियां देश को सोचने के लिये विवश कर रही है कि आखिर इस युवा राष्ट्र धन को बचाने के लिये हमारे नेतृत्व को क्या करना होगा. जमशेदपुर में ही सन 2021 में 45 वर्ष से कम उम्र के 199 व्यक्तियों ने आत्महत्या की, जिनमें 23 स्कूली छात्र थे. इस तरह के आंकड़े नेशनल क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड में भरे पड़े हैं. सरकारें युवा कौशल, नशा उन्मूलन के लिये कार्यक्रम चलाने की बहुत घोषणा करती है, लेकिन उनमें न विवेकानंदवाली इच्छाशक्ति देखी जाती है और न ही समाज में स्वामीजी के आदर्शों पर चलने की कोई उत्कंठा आम तौर पर नहीं देखी जाती. गिनीचुनी संस्थाएं गिलहरी की तरह इस युवा शक्ति के सामने खड़े गहन समुद्र रुपी अंधकार के सामने रामसेतु बनाने में अपना योगदान दे रही हैं. क्या आज साधन संपन्न और बदलते देश में इतना ही काफी है? नेतृत्व, सरकारी मशीनरी को इन सभी सकारात्मक शक्तियों को एकत्रित कर युवा शक्ति को इस दलदल से आगे निकालने का प्रयास ही स्वामीजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.