डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
मानव शरीर पांच प्रकृति के पांच तत्वों पृथ्वी, आकाश, जल अग्नि और वायु से मिलकर बना है। इन तत्वों का हमारे मन और शरीर दोनों पर गहरा असर होता है। इन पांचों तत्वों के असंतुलन से ही शरीर में बीमारियां उत्पन्न होती हैं। शरीर के भिन्न भिन्न अंग तथा इन्द्रियां, भिन्न तत्वों से जुड़ी हुई हैं। इन्हें संतुलित रखकर शरीर, मन तथा बुद्धि को स्वस्थ तथा सुखी रखने के लिए ही ऋषि मुनियों में भिन्न मुद्राओं का आविष्कार किया। योग के भिन्न भिन्न विधियों में अनेक मुद्रा, ध्यान तथा आसान हैं। इन सभी विधियों के अपने अलग अलग काम हैं तथा ये भिन्न भिन्न अवस्थाओं में अलग लाभ देती हैं। शून्य मुद्रा आसन का एक भाव है जो आकाश तत्व से जुड़ा है। यह चंचल मन को शांत कर शून्य की अवस्था में ले जाता है। आकाश खुलेपन, स्वतंत्रता, विस्तार एवं प्राकृतिक ध्वनि का प्रतीक है। इन तीनों ही चीजों का असंतुलन जीवन को अस्त व्यस्त करता है। ऐसे में शून्य मुद्रा इसका संतुलन करने में प्रभावी मुद्रा है।
शून्यमुद्रा विधि- जमीन पर कोई आसान चटाई आदि बिछाकर बैठ जाएं। पद्मासन अथवा सिद्धासन जो भी आसन में आरामदायक महसूस करें, में बैठें। इस मुद्रा के लिए महत्वपूर्ण यह है कि आपकी पीठ सीधी अर्थात् रीढ़ की हड्डी सीधी हो। दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें, ध्यान रहे कि हथेलियां आसमान की तरफ खुल रही हों। ध्यान प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में आंखों का महत्वपूर्ण स्थान है तो यदि चाहें तो इन्हें खुला रख सकते हैं अथवा बंद कर सकते हैं। बंद कर लें तो इससे ऊर्जा का बाहरी प्रवाह कम हो जाता है। हाथ की मध्यमा अर्थात् बीच की उंगली को बंद करें अर्थात् अंदर की तरफ मोड़ें। अब अंगूठे से मध्यमा उंगली को दबाएं और अन्य तीन उंगलियों को बिल्कुल सीधा रखने की कोशिश करें। अर्थात् अपने अंगूठे की नोक का उपयोग करें और मध्य उंगली पर लपेटें. बाकी उंगलियों को सीधा रखें। ठीक इसी प्रकार दूसरे हाथ की उंगलियों को भी इस मुद्रा में लाएं। शून्य मुद्रा में आने के बाद ध्यान को सांसों पर ले जाएं। आप पाएंगे कि आपके सांसों की प्रक्रिया में तुरंत अंतर हो गया है।
अवधि व समय- शून्य मुद्रा का प्रतिदिन या फिर दिन में दो बार १५- २० मिनट का अभ्यास उपयोगी है। विशेषज्ञों के अनुसार इस मुद्रा को एक दिन में तीन बार 15 मिनटों के लिए करने से लाभ होता है। अभस होने या फायदा नुकसान होने की प्रतीति अनुसार योगमुद्रा का सम घटायें- बढ़ायें। अधिकतम समयावधि 60 मिनिट है। शून्य मुद्रा में किया गया ध्यान अत्यधिक प्रभावी होता है। जितना अधिक समय सम्भव हो, शून्य मुद्रा में ध्यान करें। अगर कान में दर्द है तो इसे रोजाना 4 से 5 मिनट करें।
लाभ – शून्य मुद्रा के अभ्यास से कानों से सम्बन्धित समस्याओं जैसे कि कान का बजना, कान में दर्द अथवा कानों का बहना आदि से निजात मिलती है। स्वसन प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिसके फलस्वरूप गले के रोग थायराइड, खरास, आवाज का बदलना आदि समस्याएं, दांतों की समस्याएं को भी ठीक करने में सहायक है। कुछ परिस्थितियां जब कानों पर दबाव बढ़ता है जैसे कि हवाई यात्रा तथा स्कूबा डाइविंग, ऐसे में शून्य मुद्रा का प्रयोग लाभदायक है। जो लाभ कान में होने वाले रिसाव को रोकने के लिए अथवा किसी नुकसान से बचने के लिए कान में रूई डालने से लाभ होता है, ठीक यही फायदा शून्य मुद्रा के अभ्यास से होता है। अधिक उग्र स्वभाव को शांत तथा व्यवहार में गम्भीरता लाने में शून्य मुद्रा सहायक है। शून्य मुद्रा का अभ्यास रक्त संचार के प्रवाह को बढ़ाकर आलस खत्म करने में सहायक है। कार्य क्षमता, एकाग्रता बढ़ाने के साथ साथ तनाव कम करने में भी शून्य मुद्रा अत्यन्त असरदार है। यह मुद्रा श्रवण क्षमता का विकास करने में सहायक है। हड्डियां मजबूत, दिल के लिए भी यह मुद्रा लाभदायक, शरीर में होने वाली किसी भी तरह के दर्द को दूर करने में सहायक है। अगर सूजन की समस्या रहती है, तो यह मुद्रा लाभकारी है। रीढ़ की हड्डी के लिए फायदेमंद है।
सावाधानी- शून्य मुद्रा आपका पेट खाली हो, सुबह करें। शून्य मुद्रा के अभ्यास के दौरान शरीर को जमीन से छूने ना दें अर्थात् सीधा जमीन पर न बैठकर आसान पर ही बैठें। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि फर्श से कुछ रेडिएशन्स निकलती हैं, जो योग या मुद्रा के किसी भी रूप में अभ्यास करते समय आप पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। शून्य मुद्रा बनाते समय उंगली पर उतना ही दबाव डालें जितना आप लंबे समय तक टिका सकते हैं। यदि दिन में करना चाहते हैं तो एक घण्टे पहले से कुछ खाएं या पिएं नहीं। खाने-पीने के तुरंत बाद इस मुद्रा का अभ्यास ना करें। यदि अंगूठे या मध्यमा उंगली में किसी तरह की चोट है या हड्डियों में तकलीफ है तो जबरदस्ती ना करें। इसका उल्टा प्रभाव पड़ सकता है। इस मुद्रा के अभ्यास के लिए रीढ़ की हड्डी का स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए किसी भी तरह की समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। किसी शिक्षक की देख देख में इस मुद्रा का आरम्भ करें।
इन्दौर,