यह कैसा किसान आन्दोलन

– डा. लक्ष्मी निधि

भारत के संविधान के ‘मौलिक अधिकारों की सूची ‘ें अपनी उचित ‘माँगे एवं कानूनी हक हासिल करने के लिए आंदोलन करने का हर भारतीय एवं हर भारतीय संगठन को अधिकार प्रदान कियेे गयेे हैैं ‘मगर, इस बात की सावधानी बरतनी चाहिए कि संविधान ने जो अधिकार प्रदान कियेे हंै उसके साथ-साथ देश के प्रति जो प्रत्येेक नागरिक की जवाबदेही है उसका निर्वाह करना आवश्यमक है । अधिकार न आसमान से सावन-भादो की तरह बरसता है और न धरती की छाती ङ्कान्डकर ज्वालामुखी की तरह बाहर ङ्कूट कर निकलता है । अधिकार हमारे कर्तव्यों से प्रगट होते हैं ‘मगर, हम‘ अपने कत्र्तव्यों के प्रति निष्क्यि हों और अधिकारों के प्रति ‘ुमखर हो तो ह‘ नागरिक होने का नैतिक अधिकार गवाँ बैठते हैं और कानून ‘ें भी जो अधिकार ह‘ें प्राप्त है उसकी सी‘माएँ हैं और ‘मर्यादायें हैं जिसका निर्वाह करना आवश्यमक है ।
कृषि संबंधी भारत सरकार ने जो तीन कानून बनायेें हैं उनको सही रूप से सरकार की ओर से प्रचारित नहीं किया जा सका और जो किसान नेता है वे लोग भी सही रूप से इन कानूनों का अर्थ और अभिप्राय नहीं समझ सके इसीलिए इस कानून के संबंध ‘ें आंदोलन का जो रूप खडा किया गया वह सही नहीं कहा जा सकता ।
यदि ये तीनों कृषि कानून किसान के हित ‘मेेंं नहीं है और संविधान प्रदत्त कानूनी प्रावधान के विपरीत है तो इनको सर्वोच्च न्यायालय मेंं चुनौती दी जा सकती है । मगर, किसान नेताओं के वयानोंं से यह जाहिर हुआ कि वे इन कानूनों का विरोध कानूनी तौर पर नहीं करना चाहते हैं वे सर्वोच्च न्यायालय मेेंं जाने के बजाय वे सडॉकों पर आंदोलन करना चाहते हैंै ।
‘माना कि उनको सडॉकों पर आंदोलन करने के लिये उतरना है ‘मगर, इसका अर्थ यह नहीं है कि वे आवागम‘न के ‘मार्ग को ही अवरुद्ध कर दें, गाडी सवारी को जाने ही न दें, सडक़ों का अतिक्रमण करना या उनपर गाडिय़ोंं को चलने नहीं देना आम‘ जनता के संविधान प्रदत्त ‘मौलिक अधिकारों का हनन है ‘मगर, किसान आंदोलन के नेताओं ने अपने हक की लडाई के सामने दूसरों के हकों का ख्याल नहीं रखा ऐसी स्थिति में सरकार की यह जवाबदेही है कि वे आम‘ सडकों को इन आंदोलनकारियोंं से खाली कराये और आम‘ नागरिकों की गाड़ी सवारियों को आम‘ रोज की तरह चलने में‘ें आनेवाली बाधाओं को दूर करें म‘गर, सरकार की ओर से जो प्रयास हुए उन प्रयासों ‘ेंमें बड़ीत्रुटि देखी गयी जिसके कारण आंदोलनकारियों ने कानून व्यवस्था को अपने हाथ मेंं ले लिया ।
असल ‘मेंं इन आंदोलनकारियों को आंतरिक और बाहरी राजनीतिक शक्तियों का सहयोग और समर्थन मि‘ला जो इन आंदोलनकारिङ्मों के कंधों पर ‘मोदी सरकार के ऊपर बन्दुक चलाने की ‘मंशा रखते हैं । जिन राजनीतिक दलों ने अपना साहस और हिम्मत आंदोलन करने का नहीं है वे लोग दूसरों के आंदोलन ‘ें शरीक होकर उसको भन्डकाते हैं, बन्ढावा देते हैं और सहयोग और स‘मर्थन के नाम‘ पर अपना राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति करना चाहते हैं ।यही कारण है कि इन आंदोलनकारियों मेंं जो समझदारी होनी चाहिये वैसी समझदारी इन आंदोलनकारियों ने सरकार के साथ हुई वार्ता के संय्म नहीं दिखलायी ।
सरकार की ओर से लगभग आधा दर्जन बार बैठकें हुई हर बैठक ‘मेेंं किसान नेताओं ने भाग लिया और सरकार की ओर से कृषि ‘मंत्री, गृह‘मंत्री, तथा अन्य ‘मंत्रियोंं ने भी भाग लिया और किसानों को बताया गया कि आपलोग इन तीनों कानूनों ‘मेें जो सुधार करना चाहते हैं उन संसोधनों को लिखित रूप में‘ें सरकार के समक्ष प्रस्तुत करें सरकार आपके संशोधनों के प्रस्ताव पर गंभीरता पूर्वक विचार करेगी और आपसे मिलकर उन संशोधनों को इन कानूनों में ‘ें जोड़ा जाएगा ।
सरकार की ओर से यह कहा जाना कि आप तीनों कानूनों के प्रत्येेक प्रावधान को पन्ढे और उस प्रावधान ‘ेमेंं जहाँ जो सुधार करना चाहते हैं उसके संशोधनों की सूची हमारे सामने प्रस्तुत करें तो हम‘ इन कानूनों ‘ें बदलाव करने के पक्षधर हैं ‘मगर किसान नेताओं ने कहा हम‘ किसी प्रकार के संशोधन के पक्ष ‘मेेंं नहीं है । हम‘ चाहते हैं येे तीनों कृषि कानून रद्ध कर दिये जाएं ।
हमें एक घटना याद आती है । दो भाइयों के बीच घरेलु सम्पत्तियों के विभाजन का विवाद खडा हो गया । दोनों भाई पंचायत बुलाने को राजी हो गयेे । छोटे भाई ने कहा-जो पंच लोग कहेंगे हम‘ उनकी बात ‘मानेंगे । ‘मगर, ‘मैंने जमीन बंटवारा के संबंध ‘ेमें अपनी ओर से जो खूंटा गाड़ दिया है वह खूँटा किसी हालत ‘ेमें नहीं उखडेगा । ह‘म पंचों की बातें अपनी सर आँखों पर रखता हूँ । अब आप ही विचार किजिये कोई कैसे पंचायत करे ऐसी हालत ‘मेेंं पंचायत का कोई अर्थ नहीं रहा ।
वैसा ही हुआ । किसान और सरकार के बीच हुई बैठकों की हाल । किसान की ओर से कहा गया आप जीतनी बार बैठक के लिए बुलायेंंगे हम‘ बैठक ‘ेमें भाग लेंगे । हम‘ आपकी बात सुनेंगे । ‘मगर, हमारी ‘माँग है ये तीनों कृषि कानून रद्ध कर दियेे जायेें इससे कुछ कम‘ पर हम‘ राजी नहीं होंगे ।
मामला सर्वोच्च न्यायालय मे ंगया। सर्वोच्च न्यायालय ने जो दो आदेश दियेे वे हैं – (1) सर्वोच्च न्यायालय की ओर से बनायी गयी कमिटी के समक्ष किसान और सरकार दोनों अपने-अपने पक्ष कमिटि के समक्ष रखे । उन पक्षों के आधार पर वह कमिटि सर्वोच्च न्यायालय को अपना प्रतिवेदन समर्पित करें जिस पर सर्वोच्च न्यायालय विचार करेगी और दोनों पक्षों को सुनकर फैसला करेगी कि ये कानून रद्द कर दिये जायें या इस कानून ‘ेमेंं कुछ संशोधन किये जायेें और दूसरा (2) आदेश है – किसान अपना आंदोलन निर्धारित स्थान पर करें और आम‘ रास्ते को खाली करें ताकि किसी के आवागमन बाधित न हो । गान्डी सवारी को चलने दिया जाये । क्योंकि आवागमन बधित होने का अर्थ है समय पर दफ्तर जाने ‘मेें बाधा, समय पर दूकान खोलने ‘मेें बाधा, बच्चों को स्कूल-कॉलेज जाने मेंं बाधा, बीमारों को ं को जल्दबाजी ‘ें अस्पताल पहँुचाना आदि ।
‘मगर, आंदोलनकारिङ्मों ने सुपिम्र‘ कोर्ट को इन आदेशों को धत्ता बताते हुए अपने जिद पर अडे रहें ।यह आंदोलन दो ‘महिना से अधिक दिनों से चल रहा है ।
सरकार की ओर से कहा जाता रहा कि इन आंदोलनकारियओँ मेंं बाहरी शरारती तत्व प्रवेश कर गये हैं और वे लोग इस आंदोलन को संचालित करने लगे हैं और आंदोलनकारी नेता किसानों की ‘माँगों से हटकर इस आंदोलन को सरकार विरोधी आंदोलन ‘ेमें बदल दिया । वे लोग जो ‘मोदी सरकार को बदनाम‘ करने या अपदस्त करने का षड्यंत्र कर रहे हैैं वे लोग इन आंदोलन कारियों को सहयोग कर रहे हैं जिस‘मेंं पाकिस्तान की ओर से भी गुपचुप से सहयोग और सहायता दियेजा रहे हैं। मगर, आंदोलन कारी नेता कह रहे थे सरकार हमें बदनाम‘ कर रही है । हम‘ किसान हैं हमारे अंदर कोई बाहरी तत्व नहीं है । ‘मगर, इसका भंडाफोड़़ 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर हो गया । उस दिन इन किसान आंदोलनकारियों ने हजारों हजार ट्रैक्टरों के साथ जुलुस ‘ेमेंं उतर गयेे और सरकार द्वारा निर्धारित ‘मार्गों से न चलकर ‘मनमाने तौर पर बैरकों को तोडते हुए जहाँ-तहाँ दिल्ली ‘मेेंं उपद्रव करते रहे और वे लालकिला तक भी पहुँच गये जहाँ उपद्रवियों ने लालकिला पर चढकर तिरंगा झंडा की जगह एक अपना झंडा लहरा दिया । जो बहुत बडा राष्ट्रीय अपराध है । हड़तालियोंं की ओर से किया गया यह उपद्रव ऐसा कोई दोष नहीं है जिसे क्षमा किया जाये । दोष की ‘माफी की जा सकती है अपराध की ‘माफी नहीं होती । अपराध के लिए कानून ‘मेेंं सजा का प्रावधान है । तिरंगा कानून के अंतर्गत राष्ट्रीय अपराध है । तिरंगा का अपमान उन वीर शहीदो का अप‘ान है जिन्होंने इस तिरंगा के लिए अपनी कुर्बानी दी, अपना सर्वस्व निछावर कर दिया । तिरंगा का अपमान भारतीयता का अपम‘ान है हैरत की बात यह है कि देश की राजधानी ‘मेेंं और लालकिला ‘ें इन उपद्रवियों ने जो उपद्रव किया उस दिन सारा देश तिरंगा लहरा रहा था । 26 जनवरी का लोकतंत्र दिवस ‘ना रहा था जिस लाल किला पर हमारे े प्रधानम‘ंत्री ने तिरंगा फहराते हैं वहां जय जवान जय किशान के नारे गूंज रहे थे । देश का अपमान यह कोई ‘मामूुली अपमान नहीं है यह खुल्लम खुल्ला देश द्रोह का अपराध है । जिसकी सजा फांसी भी कम‘ है । सरकार इस अपराध को अनदेखी न करे और लालकिला के हुंकार को अनसुनी न करें ।
सरकार की ओर से इन किसान आंदोलनकारियों को ट्रे्क्टर के साथ प्रदर्शन करने की अनुमति देना बहुत बड़ी सरकारी भूल है । उपद्रवकारियों ने ट्रैक्टरों को हथियार के रुप में इस्तेमाल किया। इसीलिए इन तमाम‘ट्रैक्टरोंं के लाईसेंस रद्द कर दियेे जाने चाहिए और उन्हें जब्त कर लेना चाहिए । इस भूल को हम‘ बवंडर कह सकते हैं । ऐसे ‘मामलों ‘ें बड़े बड़े अधिकारियोंं को बैठकर काफी सोच-विचार कर सी.आई.डी.और विजीलेंस से रिपोर्ट ‘ंमगाकर निर्णय लेना चाहिए था । ‘मगर ऐसा नहीं हुआ । इन आंदोलनकारङ्मों ने हजारों-हजार ट्रैक्टर सडक़ों पर उतार कर देश मेंं ऐसा बवाल ‘मचाया कि सरकार उस पर तुरंत नियंत्रित नहीं कर सकी ।सरकार की ओर से 26 जनवरी की घटना की उच्चस्तरीय जाँच की जा रही है । अपराधी गिरफ्तार हो रहें हैं मगर, अभी भी वैसे नेता छुट्टा सान्ढ की तरह घूम‘ रहें हैं जिन्हें आज जेल ‘ेमें होना चाहिए । सरकार को चाहिए कि कड़ाई से इस आंदोलन के नाम‘ पर अपराध करने वाले शैतानों को जेंलों ‘मेेंं राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत बंद कर दिया जाये और इन किसानों के इस आंदोलन को गैरकानूनी हरकतों के कारण उस पर प्रतिबंध लगा दियाा जाये ।
आंम तौर पर देखा जाता है जब कोई घटना घटती है तो अखबारों में‘ें हो हल्ला होता है । चैनलों पर आवाजें उठायी जाती है ‘मगर, जब यहीमामला जांच में‘ें इतने लम्बे समय तक लम्बित रह जाता है तो ठंडा पड़ जाता है। और ये अपराधी मूंछों पर ताव देते हुए छाती तानकर जेंलों से बाहर निकल आते हैं । हमारा लालकिला लहुलुहान हो गयाा । हमारे शहीद की आत्म‘ा व्यथित हो गयी। भारत माता की आँखो से आँसू थम‘ नहीं रहे । हम‘ चाहते हैं इन अपराधियों को म‘हज छ: म‘हीने के अन्दर जाँच पूरी कर आरोप पत्र दाखिल कर दिये जायें और इन सबों को अपने अपराधों का दंड मिले और देश द्रोहियोंों को फांसी पर लटका दिया जाये । देश के लोग मातृभूमि तथा तिरंगा झंडा को अपमानित करने वालों को फांसी पर लटके देखना चाहती है ।

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