संदर्भ : जिले के तकनीकी विभाग कमीशन का डाक बोलकर लपकते है काम
चाईबासा कार्यालय, ७ नवम्बर : सरकारों द्वारा विकास योजनाओ के क्रियान्वयन हेतु अलग-अलग तकनीकी विभाग बनाई है। पूर्व में पथ निर्माण विभाग, भवन निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग, लघु सिंचाई विभाग, पेयजल विभाग एवं बिजली विभाग सहित कुछ चुनिंदें विभाग होते थे। जिन्हे उनकी प्रवृति के अनुसार कार्य क्रियान्वयन हेतु सौंपा जाता था। समय के अंतराल में आरईओ, एनआरईपी, विशेष प्रमण्डल सहित कई विभाग बनाये गये, ताकि इनविभागो द्वारा अपने प्रवृत्ति के अनुसार कार्य कर सके। हाल के दशको में इसमें उलेट-फेर हुआ। जिला स्तर पर किसी भी विभाग को कोई भी काम आबंटित किया जाता है। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग जो आवश्यक सेवा वाला विभाग माना जाता है,उसको भी स$डक, गली, नली, भवन का काम आबंटित किया जाता है। जिले में एकमात्र बिजली विभाग एैसा है जिसे जिला स्तर पर अब तक कोई भी योजना नहीं दी गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सभी विभागो के मुख्यालय से विभागीय कार्य छो$डकर जिला स्तर पर कोई काम नहीं करने का सख्त निर्देश है। वाबजूद इसके सभी विभाग अपनी प्रवृति के विपरीत कार्य भारी कमीशन देकर लपक रहे है। परिणाम स्वरूप विकास योजना के क्रियावन्यवन में अराजकता का माहौल उत्पन्न हो गया है। हाल ही में चक्रधरपुर अनुमण्डल के नकटी के ग्रामीणो ने लघु सिंचाई विभाग द्वारा घटिया पीसीसी स$डक निर्माण किये जाने के विरोध में जमकर बवाल काटा था। अभी हाल ही मे जिला योजना द्वारा लघु सिंचाई विभाग को १० योजना दी गई है। जो विभाग के कार्य प्रवृत्ति के विपरीत है। असल में लघु सिंचाई को सिंचाई संबंधी योजना का ही काम करना है। जिले में अब्बल स्थान पर विशेष प्रमण्डल है। लगभग ६०से ७० प्रतिशत योजना जिला स्तर पर इस विभाग को पूर्व में मिलता रहा है। मोटी कमीशन देकर योजना लपकने वाले इस विभाग की योजनाओं का जिले में सबसे खास्ता हाल हैं। सही ढंग से इस विभाग की योजनाओं की जांच की जाए तो सभी अभियंता जेल के अंदर होगें। जिले में इस विभाग की तूंती बोलती है। जिला स्तर पर विकास योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु एनआरईपी विभाग बनाया गया था, जिसे गत दो साल से एक भी योजना नहीं दी गई है, जबकि इसकी स्थापना पर १० लाख रूपया खर्च हो रहा है। यहां पदस्थापित अभियंता एवं कर्मी बैठ कर भजन करते रहते है। इसे कुछ तकनीकी कारण बताकर काम नहीं दिया जाता है। अब प्रश्न उठाता है कि पहले वाले पदाधिकारी सही थे, कि वर्तमान पदाधिकारी। अगर पहले बाले पदाधिकारी एनआरईपी से करो$डो की योजनाओं का क्रियान्वयन गलत ढंग से कराया है, तो उन पदाधिकारियो के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की जानी चाहिए। पूर्व के पदाधिकारी अगर सही थे तो वर्तमान में एनआरईपी को विकास कार्य से अलग रखकर सरकार को प्रतिमाह १० लाख का स्थापना खर्च पानी में बहाने वाले पदाधिकारी के खिलाफ कारवाई की जानी चाहिए। वर्तमान में कमीशन के चक्कर में गैर कार्य प्रवृत्ति के विपरीत विभागो को योजनाएं आबंटित किये जानेे के साथ-साथ योजनाओ की जमीनी हालात की जांच होनी चाहिए।जिले में जिस ढंग से विकास किया जा रहा है, यह विनाश की ओर ही अग्रसर है।