पशुपालन घोटाला को भी काफी पीछे छो$ड दिया है डीएमएफटी फंड घोटाला
चाईबासा कार्यालय, ११ मार्च : सिंहभूम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के कोल्हान में अंग्रेजो के समय से ही लौह अयस्क आदि का खनन हो रहा है। खनन से सरकार को अच्छी-खासी राजस्व भी मिलता है, लेकिन खनन प्रभावित क्षेत्र के लोगो को कोई लाभ नहीं मिला है। आदिवासी बहुल्य इस क्षेत्र में रहने वाले लोगो को खनन के कारण विस्थापन, पलायन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के रोगो से ग्रसित होना प$डा। फलस्वरूप यहां की औसत आयु अब ५० वर्ष से भी नीचे आ गयी है। आजादी के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खदान प्रभावित क्षेत्र के लोगो के कल्याण हेतु डीएमएफटी फंड का सृजन किया। किसी भी तरह के खनन राजस्व जमा होने के साथ ही डीएमएफटी की राशि स्वत: जिले के खाते में आ जाती है। इसका क्रियान्वयन डीएमएफटी ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है। अब तक जिले के ३ हजार करो$ड से भी अधिक की राशि डीएमएफटी फंड के रूप में जिले को प्राप्त हो चुका है, लेकिन खदान प्रभावित क्षेत्र के लोगों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसका मुख्य कारण है कि इस राशि का लुट-खसोट, बंदर-बांट और भ्रष्टाचार का भेंट च$ढ जाना। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री के सोच को प्रभावित लोगो तक पहूंचाने वाले इस डीएमएफटी फंड की लूट डबल इंजन की सरकार में ही शुरू हो गयी थीं। झारखण्ड की डबल इंजन की सरकार में जमकर डीएमएफटी फंड की लूट हुई और प्रधानमंत्री के खदान प्रभावित लोगों का दशा-दिशा बदलने की पहल को ग्रहण लग गया। २०१९ में झारखण्ड में सरकार बदली, लेकिन डीएमएफटी फंड की लूट जारी रही और लूट तथा कमीशन की सीमा ४० प्रतिशत पार हो गई। सरकार के गाईड लाईन के अनुसार ६०-४० के फार्मूले का भी हवा निकाल दिया गया। गाईड लाईन के अनुसार डीएमएफटी फंड के कुल राशि में खदान प्रभावित क्षेत्रो में ६० प्रतिशत राशि खर्च की जानी थी और शेष ४० प्रतिशत राशि जिले के अन्य क्षेत्रो में खर्च होनी थी, लेकिन इस गाईड लाईन की धज्जियां उ$डाते हुए मनमाने ढंग से जहां-तहां योजनाओं की स्वीकृति कर राशि की बंदरबांट की गयी। जिसमें पूर्व की सत्ता-विपक्ष एवं वर्तमान की सत्ता-विपक्ष दोनो शामिल रहा है। आज से २० वर्ष पूर्व हुए पशुपालन घोटाले पर पुरे देश की राजनीति होती है, जबकि इस घोटाले को चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने उजागर की थी। उसी धरती पर आज डीएमएफटी फंड का घोटाला पशुपालन घोटाले को पीछे छोडकर आगे निकल गया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ३ साल तक एक ईमानदार पदाधिकारी का नेतृत्व होने के बाद उसके अधीनस्त पदाधिकारी ने घोटाले का दायरा काफी ब$ढा दिया और ईमानदार पदाधिकारी पर राजनीतिक दवाब डालकर घोटाले का प्रतिशत ४० तक पहूंचा दिया। हाल ही में उक्त घोटालेबाज पदाधिकारी के स्थान्तरण हो जाने के बाद इस लूट में हल्की विराम लगी थी, लेकिन लुटेरों के गिरोह ने पुन: वर्तमान पदाधिकारियों पर दवाब डालकर आचार संहिता लगने से पूर्व ब$डे पैमाने पर योजनाओं का बंदरबांट करने में लगे हुए है। चूंकि यह केन्द्र सरकार द्वारा सीधे जिले को दी जाने वाली राशि है, इसलिए मोदी सरकार को अविलम्ब हस्तक्षेप कर इसकी जांच का आदेश देना चाहिए, अगर एैसा हुआ तो सिंहभूम लोकसभा सीट पर कमल खिलने की पक्की गांरटी हो जायेंगी। इसमें भाजपा को भी अपने कुछ लुटेरो को भी घोटालेबाज के रूप में बलि च$ढाना होगा।