जमशेदपुर, 29 जनवरी (रिपोर्टर): जिस टाटा वर्कर्स यूनियन का क्रांतिकारी इतिहास रहा है. तुम मुझे खून तो मैं तुम्हें आजादी दूंगा नारे देने वाले नेता जी सुभाष चंद्र बोस जैसे अध्यक्ष रहे हों आज वहीं यूनियन को एक ऐसे नेता की तलाश है जो स्वार्थ से ऊपर उठ कर मजदूर हित की आवाज उठाए. टाटा वर्कर्स यूनियन के नेताओं ने मजदूरों के हित के लिए हमेशा आवाज उठाने का काम किया, अपने हितों की आहुति दी और उनकी बदौलत राष्ट्रीय मजदूर आंदोलन में टाटा वर्कर्स यूयिन की अपनी अलग छाप बनी. आज के नेता सिर्फ अपना स्वार्थ साधने में व येन केन प्रकारेण अध्यक्ष पद पाने में लगे हुए हैं. सुबह में अमुक गुट के साथ तो शाम में अमुक गुट के साथ तस्वीर खिंचवा कर अपनी पीठ थपथपाते हैं. कहा जाए जहां गाछ वृक्ष नहीं वहां रेड़ प्रधान हो जाता है, कुछ यहीं स्थिति आज इस यूनियन के चुनाव में दिखायी दे रही है, जहां मजदूरों की आवाज उठाने वाला शायद ही कोई नेता दिख रहा हो. मजदूरों के हित का दिखावा कर कुर्सी पाने के लिए जातपात की राजनीति पर भी उतारू हो गए हैं.
टाटा स्टील का पूरी दुनिया में नाम है. टाटा स्टील में एथिक्स की बात हो या सेफ्टी की बात हो पूरी दुनिया की कंपनी मेंं अलग स्थान बना रखा है. टाटा स्टील का कर्मचारियों का हित की बात का इतिहास रहा है. जमशेदजी नसरवानजी टाटा के सपनों का शहर बसा था. कंपनी के ऐेसे पूर्वज रहे जिन्होंने कर्मचारियों को पैसे देने के लिए अपने जेवरात गिरवी तक रख दिए वहां कर्मचारियों की सुविधाओं में लगातार कटौतियां होती गई और आज के नेता मूकदर्शक बने रहे. कभी यहां महात्मा गांधी भी आए थे. ऐसी गौरवशाली यूनियन में आज ऐसे नेताओं की संख्या बढ़ गई है जिन्हें मजदूरों की समस्याओं और सुविधाओं से कोई लेना देना नहीं बल्कि अपना हित साधना रह गया है. एक समय ऐसा था जो 50-60 हजार कर्मचारी हुआ करते थे. मजदूरों को तरह-तरह की सुविधाएं दी जाती थी लेकिन वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. पिछले कुछ कालखंड में कर्मचारियों की सुविधाओं मेें लगातार कटौतियां होती रहीं लेकिन आज चुनाव में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग चुप्पी साधे रहे. आज उसी यूनियन के चुनाव को दो दिन शेष बचे हैं. यूनियन के नेता चुनाव से पहले गठजोड़ में रहे लेकिन आज जब चुनाव की प्रक्रिया चल रही है दो दिन बाद चुनाव है तो अपने को पक्ष व विपक्ष के खेमे में बंट कर मजदूरों को बेवकूफ बना कर कुर्सी पाने के लिए तड़त रहे हैं. लगातार मजदूरों के बीच जाकर लोकलुभावन बात कर उन्हें बरगला रहे हैं. मजदूरों को ऐसे लोगों की पहचान करने व उन्हें सबक सिखाने का समय है.मजदूरों के सामने भी बड़ी चुनौती है कि वे ऐसे नेता कहां से चुनेें जो उनके हितों की बात करें.
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लड़ाई स्टाम्प बनने की
टाटा वर्कर्स यूनियन के निवर्तमान अध्यक्ष आर रवि प्रसाद टाटा स्टील से 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हो जाएंगे. 31 जनवरी को ही आनन-फानन में चुनाव कराया जा रहा है. चुनाव में पक्ष व विपक्ष कर्मचारियों को लोकलुभावन बातों से अपनी कुर्सी पाने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं. आर रवि प्रसाद का कार्यकाल रबर स्टाम्प की तरह बीता. उनके कार्यकाल में कर्मचारियों को क्या सुविधाएं मिली क्या बंद हुई इस पर तुलनात्मक विवरण सामने लाया जाए तो लंबी फेहरिस्त बन जाएगी.
टाटा वर्कर्स यूनियन चुनाव में इस बार करीब 14 हजार कर्मचारी 214 कमेटी सदस्यों को चुनेंगे. यही 214 कमेटी सदस्य 11 पदाधिकारियों को चुनेेंगे जिनमें अध्यक्ष, डिप्टी प्रेसीडेंट, महामंत्री, चार वाइस प्रेसीडेंट, तीन असिस्टेंट सेक्रेट्री व एक ट्रेजरर होंगे. यूनियन के निवर्तमान अध्यक्ष आर रवि प्रसाद ने पहले ही चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा कर दी है जिसके बाद निवर्तमान अध्यक्ष अरविन्द पांडेय व पूर्व अध्यक्ष संजीव चौधरी अध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं. आर रवि प्रसाद छ: वर्षों तक अध्यक्ष रहे. उनके साथ तीन वर्षों तक संजीव चौधरी डिप्टी प्रेसीडेंट रहे तो तीन वर्षों के बाद अरविन्द पांडेय डिप्टी प्रेसीडेंट के रूप में अब तक साथ दे रहे हैं. आर रवि प्रसाद के कार्यकाल में कर्मचारियों का मेडिकल एक्सटेंशन बंद होना, डीए फ्रीज होना सबसे बड़ा दाग माना जाता है.