चीन में लोकतंत्र नहीं है, मतलब वहाँ चुनाव नहीं होते, और कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो द्वारा ही सभी संवैधानिक पदों पर बैठने वाले लोगों का चयन होता है, तथा इस पूरी प्रक्रिया में जनता की कोई सहभागिता नहीं होती। इस से नुकसान यह है कि सरकारों को किसी खास क्षेत्र में खूब विकास करने और बाकियों को छोड़ देने में चुनाव हारने का डर नहीं होता, और कोरोना संकट के बीच, इसका फायदा एक यह है कि आप कड़ाई से लॉकडाउन का पालन करवा पाते हैं, तथा एक राष्ट्र के तौर पर, नियमों के अनुपालन के वक्त आपको मानवीय संवेदनाओं का ख्याल भी नहीं रखना पड़ता।
दूसरी ओर, भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां सरकार के हर कदम पर, मीडिया व विपक्षी दलों की पैनी नजर होती है, और इन में से कई, सरकार की गलती का इंतजार करते रहते हैं। वैसे तो इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के कई फायदे हैं, लेकिन एक बड़ा नुकसान यह है कि चाहे-अनचाहे तौर पर हुई किसी भी गलती अथवा दुर्घटना के लिये, सरकार को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। अब इसे जिम्मेदारी का अहसास कहें, अथवा जनता का दबाव, लेकिन कई बार सरकार ऐसे फैसले लेने को बाध्य हो जाती है, जिसका परिणाम क्षणिक तौर पर जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप तो लगता है, लेकिन कोरोना से जारी इस जंग में, यह ‘गलतियां’ देश को भारी पड़ सकती हैं।
कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में, पूरे देश को, पूरी दुनिया को, और पूरी मानवता को एक साथ खड़े होने की जरूरत थी, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से, भारत के भीतर ही 29 राज्य, 29 अलग-अलग देशों की तरह काम करने लगे। अपने ही देश में ‘प्रवासी’ बने लोग अभी किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में ही थे, कि तब ऐसा माहौल बना दिया गया, मानों अपने राज्य लौटकर ही आप कोरोना से बच सकते हैं।
सोशल डिस्टेनसिंग के इस कालखंड में, हम ने आनंद विहार टर्मिनल पर हजारों लोगों की बदहवास भीड़ देखी, बान्द्रा स्टेशन के बाहर जनसैलाब देखा, तो हजारों की संख्या में पैदल लौटते लोग भी देखे। माहौल ऐसा दिखा मानो हर कोई, कोरोना से लड़ाई के सबसे बड़े हथियार, लॉकडाउन को तोड़ने की प्रतिस्पर्धा में लगा है, और इस पूरी प्रक्रिया में, सभी राजनैतिक दलों ने, खासा निराश किया। अगर ये दल चाहते तो, इस संकट को एक मौके की तरह इस्तेमाल करते, और प्रवासियों की सहायता के नये कीर्तिमान गढ़ते, जिस से उन्हें व उनके दल को देश भर में जनता के सेवक के तौर पर पहचान मिलती, जिसका फायदा उन्हें भविष्य के चुनावों में जरूर मिलता, लेकिन अफसोस, ऐसा हो नहीं हो पाया।
कोटा, दिल्ली, मुम्बई, गुजरात, और अन्य स्थानों पर गये छात्र, अथवा काम गंवा चुके लोगों को सहारे की जरूरत थी, उन्हें स्थानीय सरकारों का साथ चाहिये था, लेकिन उन्हें भागना पड़ा, तो इसका जिम्मेदार कौन है? इतने बड़े संकट के बावजूद, देश में भुखमरी से मौत की कोई खबर नहीं आई। केंद्र सरकार सबको अनाज मुहैया कराने, तो राज्य सरकारें उनको आश्रय देने, व भोजन उपलब्ध कराने के दावे करती रही, लेकिन मजदूरों के लौटने के आंकड़े उनको मुंह चिढ़ाते दिखे। कई जगह, राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें बरगलाने के आरोप लगे, तो कुछ जगहों पर उनके साथ अमानवीय सलूक होने की खबरें आईं। क्या राज्य सरकारों के लिए इतना मुश्किल था, उन मजदूरों को रोक पाना, उनके लिये, कुछ महीनों हेतु खाना व आश्रय की व्यवस्था करना? जब सारे स्कूल-कॉलेज व सार्वजनिक स्थान बंद हैं, तब वहां इन प्रवासियों को रखा जा सकता था, लेकिन यह शायद उन सरकारों की प्राथमिकता नहीं थी। हर कोई, केंद्र सरकार पर दोष थोप कर, अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेना चाहता था।
इस प्रक्रिया में, विपक्षी दलों व राज्य सरकारों के दबाव में, केंद्र सरकार ने पहले तो रेवेन्यू के लिये शराब दुकानें खोलने की इजाजत दे दी, जिस पर काफी बवाल हुआ, और अब प्रतिदिन करीब 300 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के साथ-साथ कई और यात्री गाडियाँ भी चलेंगी। यानि, एक ऐसे दौर में, जब आवागमन प्रतिबंधित है, लाखों लोग रोज यात्रा करेंगे। यह झारखंड जैसे राज्यों में भी होगा, जहां उन यात्रियों को मात्र थर्मल स्क्रीनिंग के बाद, बिना कोरोना जांच के, 14 दिन क्वारेंटिन किये बिना, सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर के, घरों में भेजा जा रहा है, जिसकी वजह से उनके परिजनों व पड़ोसियों पर संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ रहा है।
पिछले कुछ दिनों में, बिहार, झारखंड, ओडिशा व उत्तर प्रदेश में, वापस लौट रहे यह प्रवासी, बड़ी संख्या में कोरोना पॉसिटिव मिले हैं, और यह आंकड़ा इस घर-वापसी की पूरी प्रक्रिया पर ही, सवाल खड़े करने के लिये काफी है। वक्त का तकाजा है कि कोरोना से इस युद्ध के मापदंड कड़े किये जायें, और चीन सरीखा अनुशासन दिखाया जाये, अन्यथा सबको खुश रखने की यह मानसिकता, पिछले 50 दिनों के लॉकडाउन की तपस्या को बर्बाद कर देगी। संभल जाइये सरकार, क्योंकि हमारी स्वास्थ्य सेवाओं का हाल पूरा देश जानता है, और अगर इन गलतियों की वजह से, ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण फैलता है, तो हालात बेकाबू हो जायेंगे।