टाटा स्टील से ट्रांसपोर्टरों – गाड़ी मालिकों की दया याचना , फिर भी ध्यान नहीं दिया तो एकबार फिर गेट पर होगा सत्याग्रह

Jamshedpur, 13 Nov : टाटा स्टील द्वारा सोमवार को माल ढुलाई के लिये ट्रांसपोर्टरों के बीच होनेवाले टेंडर में लगाई गई शर्तें कोढ़ में खाज की तरह साबित होंगी. इन शर्तों का अनुपालन करने के बाद ट्रांसपोर्टरों को अपनी कंपनी चलाना और वाहनों को कार्य में लगाना फांसी के फंदे पर झूलने की तरह होगा. फिलहाल कोरोना संकट से छायी मंदी और ईंधन मूल्यों की वृद्धि के कारण ही गाड़ी मालिकों और ट्रांसपोर्टरों का कारोबार चलाना मुश्किल हो गया है, ऊपर से नयी शर्त के अनुसार उन्हें नयी नयी गाड़ियां खरीदनी जरूरी होंगी जो इस बाजार की हालत में नामुमकिन होगा।
जमशेदपुर ट्रक ट्रेलर्स ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जसबीर सिंह सीरे और संरक्षक धनंजय राय ने एक विज्ञप्ति में बताया कि कंपनी ने इस साल सरकार से ऊपर एक ऐसी नयी शर्त जोड़ दी है, जिसमें अधिकांश गाड़ी मालिक खासकर छोटे तबके के लोग और खुद निजी गाडिय़ोंवाले ट्रांसपोर्टर भी धंधे से अलग होकर या तो दिवालिया हो जाएंगे या बर्बाद होंगे. सरकार ने गाडिय़ों की फिटनेस 15 साल तय की है. हाल ही 15 साल के बाद भी टैक्स भरकर अगले कुछ वर्षों तक तकनीकी जांच के बाद उन्हें चलाने की मान्यता दी है लेकिन टाटा कंपनी ने 10 साल पुरानी गाडिय़ों को लोडिंग में प्राथमिकता नहीं देने की शर्त लगाई है, जिसका मतलब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना है. फिलहाल गाड़ी मालिक अपनी वर्तमान गाडिय़ों की ही बैंक किश्त नहीं चुका पा रहे हैं उपर से उन्हें अब नयी गाडिय़ां खरीदने की शर्त लगा दी गई है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में सभी गाडिय़ां टाटा मोटर्स की होती है तो क्या टाटा मोटर्स की गाडिय़ों का लाइफ 15 साल नहीं होता? उल्लेखनीय है , गाडिय़ां अंडरलोड ही चलाई जाती है. सडक़ की स्थिति भी पहले की तुलना में मोदी सरकार में काफी सुधरी है इसके बावजूद गाडिय़ों का लाइफ टाटा स्टील द्वारा 10 साल नहीं मानना किस तकनीकी सोच का हिस्सा है ? उन्होंने सरकार के 15 वर्ष के फिटनेस नियम को मानते हुए लोडिंग देने की मांग की है. श्री सीरे एवं राय ने कहा कि इतना ही नहीं, टाटा कंपनी गाडिय़ों की पासिंग क्षमता के अनुसार गाड़ी का भाड़ा देना निश्चित करे. परिवहन सेक्टर में जितने वाहन मालिक और कर्मचारी आश्रित हैं, उनको देखते हुए माल की ढुलाई नहीं कराई जाती. उन्होंने मांग की कि कंपनी रेल द्वारा 80 प्रतिशत ढुलाई को कम करे और 50 प्रतिशत सडक़ परिवहन द्वारा माल की ढुलाई शुरु करे. उन्होंने कहा कि कंपनी को अलबत्ता टेंडर में यह प्रावधान करना चाहिये था कि रजिस्टर्ड ट्रांसपोर्टर अपनी गाडिय़ों के अलावा 50 प्रतिशत माल स्थानीय गाडिय़ों को दें. उन्होंने पुरानी दर से 20 प्रतिशत भाड़ा नये टेंडर में बढ़ाने की मांग की ,क्योंकि जिस रफ्तार से गाडिय़ों के मूल्यों में वृद्धि हुई है और टायर, डीजल, रोड टैक्स, टोल टैक्स आदि जरुरी सामानों की कीमतें बढ़ी है उस हिसाब से फिलहाल दिया जानेवाला भाड़ा बेहद नाकाफी है. गाड़ी मालिकों को ही टोल टैक्स से लेकर डैमरैज आदि का नुकसान उठाना पड़ता है. टाटा कंपनी में काम करनेवाले ट्रांसपोर्टर और गाड़ी मालिक जितनी सांसत में चल रहे हैं, अगर कहा जाए कि उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह खटाया जा रहा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. गाड़ी मालिक और ट्रांसपोर्टर बैंक ब्याज, लागत और कर्मचारियों के जीविकोपार्जन आदि बंधनों से इस कदर बंध गये हैं कि अगर वे कारोबार बंद करते हैं तो उन्हें जीवन लीला समाप्त करने या सडक़ पर भीख मांगने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचेगा. दोनों नेताओं ने टाटा प्रबंधन से सहानुभूति और मानवतापूर्वक गाड़ी मालिकों और ट्रांसपोर्टरों पर ध्यान देने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि अगर कंपनी उनकी बातों पर ध्यान नहीं देगी तो मजबूरी में उन्हें एकबार पुन: कंपनी गेट पर सत्याग्रह करने के लिये वाध्य होना पड़ेगा.

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