सेनापति की दबंगई का कायल है कंपनी का मालिक
Jamshedpur,6 May: आदित्यपुर से लेकर कोलाबीरा तक फैले रामकृष्णा फोर्जिंग्स कंपनी की सेना के पति को अंततः सलाखों के पीछे जाना ही पड़ा। अपनी दबंगई के कारण पूर्व में सेनापति कई बार जेल जाने से बच गए थे। सरायकेला में एक सड़क दुर्घटना के बाद मारपीट के मामले से लेकर अन्य कई ऐसे मामले में सेनापति को लगातार जिला प्रशासन का सहयोग मिलते रहने के कारण उनकी दबंगई बढ़ती ही गयी। कंपनी का मालिक भी सेनापति की दबंगई का कायल है, लिहाजा मालिक की शह भी सेनापति को मिलती गयी। सेनापति को कंपनी प्रबंधन ने शायद महज इसलिए रखा है कि उसके विरोध में आवाज उठाने वाले का मुंह अपनी दबंगई से बंद कर दे। यही वजह है कि कोलाबीरा क्षेत्र के ग्रामीणों में कंपनी के खिलाफ जहां आक्रोश है, वहीं कंपनी के अधिकारियों से लेकर कामगारों से सेनापति की नहीं बनती है। सेनापति की दबंगई का एक और बड़ा उदाहरण है कि राजनीति से जुड़े नेताओं में भी उनके प्रति काफी आक्रोश है। कंपनीं के मालिक को भी इन नेताओं के खिलाफ भड़काकर इस कदर दूर रखा है कि कोई चाह कर भी मालिक के करीब नहीं पहुंच पाता है। कंपनी मालिक भी नहीं चाहते कि जन प्रतिनिधियों से मिलकर समाज के हित में कुछ करें। इसका सबसे बड़ा उदहारण सामने है कि CSR के तहत इस कंपनीं ने कोई ऐसा काम आज तक नहीं किया जिससे समाज को लाभ मिला हो। लोग बताते हैं कि सेनापति जब आरएसबी ग्रुप में था तो वहां भी अपनी दबंगई दिखाने का प्रयास किया था। किंतु स्वच्छ एवं दयालु विचार के कंपनी एमडी एसके बेहरा को जब आभास हुआ कि यह व्यक्ति कभी भी क्षति पहुंचा सकता है, उसे कंपनीं से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस बीच जमीन दलाली में जुटे सेनापति ने आदित्यपुर से लेकर सरायकेला तक अपना साम्राज्य फैला लिया। कोलाबीरा के भोले भाले ग्रामीणों को बहला फुसला कर कौड़ी के भाव जमीन लेकर उसे कंपनियों को बेचने का काम करने लगा। कहा जाता है कि इसमें रोड़ा बनने वाले को आपराधिक किस्म के लोगों से सबक सिखाने का काम भी सेनापति करता था। लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि मुड़िया, कोलाबीरा समेत आसपास के क्षेत्रों में कई बड़े आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से सांठ गांठ कर जमीन खरीद विक्री करते थे। मेटाल्सा कंपनी को जमीन देकर स्थापित कराया। फिर रामकृष्णा फोर्जिंग्स जैसी कंपनियों को कोलाबीरा में जमीन दिलाने से लेकर स्थापित कराने में सेनापति ने करोड़ों का वारा न्यारा किया। कंपनी मालिक का सिर पर हाथ रहने से सेनापति की दबंगई बढ़ती गयी। कहा जाता है कि इस ग्रुप में नौकरी के लिए बेरोजगार 50 हजार से लाख रुपया तक देने के लिए तैयार रहते हैं। इसका फायदा भी सेनापति ने खूब उठाया। उसके कई गुर्गे एजेंट के रूप में इस काम को अंजाम देते हैं। किन्तु पोल खुलने के बाद सेनापति ने खुद को अलग कर लिया। सेनापति की दबंगई ऐसी की दो-चार पत्रकारों को छोड़कर बाकी को कुछ समझता ही नहीं था। जिला प्रशासन के साथ अपनी पकड़ मजबूत बनाकर रखने के कारण कोई इसका कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता था। किंतु उनकी दबंगई उस वक्त काफूर हो गयी जब उन्हें पत्रकारों से पाला पड़ा। स्वंय को मुख्य सचिव और डीजीपी का खास बताने वाला सेनापति अब सलाखों के पीछे है।