हैरानी की बात है कि गुटबाजी करने वालों ने शहर की शान सूर्य मंदिर को विवादों मे ला दिया है और इसका फायदा सियासी संगठन उठाने की फिराक में हैं। अब यह मामला प्रशासन के पास चले जाने से और पेंचदार हो गया है। इतनी बात तो तय है कि सूर्य मंदिर परिसर को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुख्यमंत्री रहते इतना सुंदर बना दिया था कि यहां लोग घरेलू पिकनिक मनाने तक आने लगे थे।एक सरोवर बना दिया गया था जिसे छठ घाट के रूप मे विकसित किया गया था और छठ पर पूजन सामग्रियों का यहां से वितरण होता था । कई सालों से छठ के मौके पर भजन संध्या का आयोजन भी होता था । इसी परिसर मे विवाह मंडप भी बनाया गया था और ऑडिटोरियम का निर्माण कराया गया था। देखते देखते यह परिसर आकर्षण का केंद्र बन गया ।इसकी खूबसूरती ने चार चांद लगा दिए । खूबसूरती का यह हाल था कि इस इलाके के लोग इसकी तुलना जुबली पार्क से करने लगे । लेकिन अब यह विवादों मे पड़ गया है . यहां की व्यवस्था किसके हाथों मे रहे ,कौन वसूली करे ,यह भी विवाद का विषय बन गया है और इसमे खर्च होने वाली राशि सरकारी फंड से की गई वह किसकी इजाजत से ? सारी बातें सही है लेकिन विवाद को प्रशासन तक पहुंचाना कहां तक उचित है ? अब तो उपायुक्त महोदय ने जाँच कमिटी भी बना दी है | अब अपना मानना है कि किसी भी संस्था मे प्रशासनिक दखल का होना ठीक नहीं है । इससे प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में सब कुछ चला जाता है । पहले भी कई संस्थाओ में प्रशासन ताला लटकावा चुका है । सूर्य मंदिर की जमीन पर पहले भी विवाद हो चुका है ।यह जमीन टाटा स्टील की है ,यह दावा कंपनी कर चुकी है । हालात समान्य होने मे समय लगेगा ।देखते देखते विवाद बढ़ जाए तो कोई हैरानी की बात नहीं ।आने वाले समय में सिदगोड़ा सूर्य मंदिर का विवाद आगे नहीं बढ़ेगा ,यह उम्मीद की जानी चाहिए ।जब नाविक ही नाव डुबोये तो उसे कौन बचाए वाली कहावत चरितार्थ हो रही है । सूर्य मंदिर की कमिटी के पदाधिकारी ही आपस मे भिड़ रहे है और प्रशासन को मौका दे रहे हैं |रघुवर दास और उनके चंद रत्नों ने चलती के दिनों में बहुसंख्य लोगों की भावनाओं और प्रतिष्ठा को तबज्जो नहीं दी जिसका नतीजा उन्हें चुनाव में भुगतना पड़ा लेकिन इसका बेजा लाभ चंद गुटबाज और समाज के लिए खतरनाक लोगों को नहीं उठाने देना चाहिए । सांसद और विधायक को किसी गुटबाज़ी में न पड़ते हुए इस धार्मिक स्थल और पार्क परिसर की पवित्रता कैसे बनी रहे, इसके लिए पहल करनी चाहिए। अपना मानना है कि गुटबाजी करने वाले भी इससे बचें। रघुवर दास के लोगों के दिन जब स्थायी नहीं रहे तब दूसरों का भी कैसे बचेगा ? कहीं ऐसा ना हो कि सूर्य मंदिर परिसर हाथ से ही न निकल जाए । मूँछ की लड़ाई में हालात बिगड़ सकते हैं । सूर्य मंदिर पर राजनीति करना उचित नहीं है | जहां लोग बैठ कर पूजा करते हैं उस स्थान को पूजा स्थल ही रहने दिया जाए, न कि सियासी अखाड़ा बनाया जाए | सूर्य मंदिर परिसर हाथ से निकल जाए यह कोई नहीं चाहता। क्यों आप चाहते हैं क्या, सोच कर बताइए…