शिव, शिवमय ब्रह्मांड, शिवरात्रि

हिन्दु देवताओं की प्रेरणामयी, अलौकिक विस्मयकारी रहस्यों से युक्त आकाशगंगा में भगवान शिव सबसे प्राचीन और सर्वाधिक प्रिय देवता हैं। भगवान शिव आदि पुरुष, अर्धनारीश्वर, आशुतोष यानी जिनको प्रबल भाव, प्रेम और निष्कपट चाह से तत्तक्षण संतुष्ट किया जा सकता है, भैरव यानी जो भयावह भी हैं, भव यानी शाश्वत सत्ता, भोला सरल ह्दय, भूतेश्वर यानी पंचभूतों, पंचतत्वों के स्वामी, चन्द्रशेखर, चन्द्रचूड़, चन्द्रशेखर और चन्द्रचूड़ अर्थात जो अपने केशों में द्वितीया के चन्द्रमा को धारण करते हैं अर्थात मस्तक को सौभ्य शीतल रखते हैं, दक्षिण मूर्ति जो अलौकिक गुरु हैं और जिनका मुख दक्षिण दिशा की ओर है और
इस संबंध में आदि शंकराचार्य ने कहा है:-
‘‘मैं प्रणाम करता हूं उनको जो ऋषियों को परम सत्य का प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान करते हैं।
मैं प्रणाम करता हूं तीनों लोगों के गुरु,दक्षिणामूर्ति स्वयं भगवान शिव को जो जीवन मरण के कलेश को मिटाने वाले हैं।’’

गंगाधर यानी गंगा को धारण करने वाला, गिरीश यानी पर्वतों के स्वामी, गुहेश यानी गुफाओं के स्वामी, ईशान -विश्व का सर्वोच्च ईश्वर, कालकान्त यानी समय को निगल जाने वाला और कपासिन यानी जिनके साथ में कपाल खोपड़ी है, शिव किरात यानी शिकारी हैं, कृतिवास यानी पशुओं की खाल पहनने वाले हैं, महादेव, महायोगी, महेश्वर, नागेश्वर नटराज यानी अलौकिक नत्र्तक, नटेश-नृत्य सम्राट, नीलकंठ, पशुपति यानी प्राणियों के स्वामी,अलौकिक चरवाहा हैं, रुद्र यानी प्रचंड क्रोध से भरे हैं, सदाशिव शम्भूनाथ समृद्धि सफलता प्रदान करने वाला, शंकर वात्सल्य से भरा हुआ और सुख देने वाला हैं, शिव सर्व बह्माण्डीय धनुर्धारी, मगलमय, सोम सुन्दर यानी चन्द्रमा के समान सुन्दर, सोमनाथ यानी सोमनामक पवित्र औषधि के स्वामी हैं। शिव, सुन्दरमूर्ति, त्रिपुरान्तक, त्रयम्बक यानी तीन ऑखों वाले, वैद्य,वैद्यानाथ (वैद्यो के स्वामी),वेदपुरुष, वीरेश्वर-युद्धकला के स्वामी, विरुपाक्ष विचित्र नेत्रों वाला, विश्वेश्वर और शिव हर हैं, हर का अर्थ होता है जगत के दु:खों और अनिष्टों का निवावरण करने वाला हैं।
आज ‘हर’ को ‘हर’ की आवश्यकता है
आज विश्व जिस दारुण व्यवस्ता से गुजर रहा है, जहां हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव कर रहा है चाहे वह, दैहिक दैविक और भौतिक हो, उसे मात्र ‘हर’ यानी हर हर महादेव ठीक कर सकते हैं
क्योंकि हर -हर ‘हर’ के हैं:-
बह्मा विष्णु महेशानदेवदानव राक्षसा।
यस्मात् प्रजक्षिरे देवास्तं शम्भु प्रणमान्यह्म।।
अर्थात वह्मा विष्णु महेश, देव दानव,राक्षस जिनसे उत्पन्न हुए जिनसे सभी देवों की उत्पति हुई, ऐसे भगवान शम्भु (समृद्धि और सफलता प्रदान करने वाले) को मैं प्रणाम करता हूं।
शिव, महादेव भारतीय संस्कृति जितने या उससे भी अधिक प्राचीन है। ब्रह्माण्ड के आदि काल में मनुष्य की सृष्टि से पहले, शिव एक दिव्य धनुर्धारी के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका तीर अत्यकृ परम सत्ता की ओर उठा हुआ है। संसार उनका आखेट स्तल है। ब्रह्मांड उनकी उपस्थिति से गुंजता है। शिव, ध्वनि भी हैं, प्रतिध्वनि भी हैं, स्पर्शातीत स्पन्दन भी हैं, सुक्ष्मतम पदार्थ भी हैं, कोपलो की सरसराहट भी हैं, नाविक भी हैं, मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाने वाला मुक्तिदाता भी हैं, आकाश और ऋतुऐं उनके तेज से स्पंदित है, वे बांधते हैं, थामते हैं, उन्मुकृ करते हैं, मोक्ष प्रदान करते हैं, रोग भी हैं, रोग हन्ता भी हैं, वे भोजन भी हैं भोजन देने वाले भी हैं, भोजन की प्रक्रिया भी हैं, दिव्यता का अत्यन्त आत्मीय, कृपालु,वत्सल जीवंत प्रतीत हैं।
शिव, शिवरात्रि, अलौकिक विवाह
महाशिव रात्रि में हम उस पल को याद करें जब हिमवान ने बेटी का हाथ अपने हाथ में लेकर इन शब्दों को दोहराया,
‘‘हे प्रभु शिव मैं अपनी कन्या पार्वती को आपको आपकी पत्नी के रुप में सौंप रहा हूं। कृपा कर इनको स्वीकार करें।’’
इतना कहकर उन्होंने पार्वती का हाथ शिव के हाथों में देते हुए ‘तस्मे रुद्राय महते’ मंत्र का उच्चारण किया। शिव ने भी अवसर अनुकुल मंत्रों का उच्चारण किया और यथाविहित वैदिकमंत्रों के बीच सुन्दर मूर्ति शिव ने महादेवी पार्वती से विवाह किया। दिव्य युगल वस्तुत: एक ही समग्र सत्ता के दो आधे-आधे अंश थे।
‘हर’ के इस रुप, भाव को हर व्यक्ति यदि ‘हर’ का ध्यान कर मान ले, निर्वाह करे तो विश्व हर-हर महादेव हो जायेगा और हमारे अंदर का जहर, हर की कृपा से हट जायेगा।
हम शिव का ध्यान करें, जीव में शिव को देखना विश्व को बेहतर बनाना है। शिव हमें ‘दृष्टि’ देते हैं। एक संत सुन्दरार ने कहा है, हे करुणाकर, आप जिन्होंने घोर विष पी लिया था, ताकि स्वर्ग के वासी अपना यौवन प्राप्त कर सकें, मुझ पर कृपा करें और मुझको मेरी दृष्टि प्रदान करें।
आईये शिवरात्रि के दिन रात्रि में मन ही मन घनघोर चिंतन करें कि ‘हम उस सुगंधियुक्त, सम्पूर्ण बल की वृद्धि करने वाले त्रिनेत्र (शिव) की स्तुति करें जो हमें उसी प्रकार मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर, अमरत्व प्रदान करता है जिस प्रकार खरबूजा पककर लता के बंधन से मुक्त हो जाता है।’

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