शहीद स्थल और वेदियों पर हर साल बरसती हैं सिर्फ फूलों की बौछार
चांडिल : दुर्भाग्य है ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र के शहीद अजित महतो व धनंजय महतो के आश्रितों का। हर साल 21 अक्तूबर को शहीद स्थल तिरुलडीह व सामाजिक संगठनों द्वारा विभिन्न स्थानों में स्थापित शहीद वेदियों पर राजनीतिक दलों के राजनेता, मंत्री व कार्यकर्ताओं द्वारा पुष्प वर्षा कर और शहीदों के प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी जाती है और नारा बुलंद किया जाता है कि “जब तक सूरज चांद रहेगा, शहीद अजित धनंजय का नाम रहेगा”। राजनेता व मंत्रीगण शहीदों के आश्रितों को बड़े बड़े दिवास्वप्न दिखा जाते हैं कि उनके विकास व सहायोग के लिए एक पैर पर खड़ा रहेंगे आदि। लेकिन दुर्भाग्य है कि शहादत दिवस के दूसरे दिन से ही वे लोग अपने वायदे भूलने लगते हैं।
तत्कालीन बिहार में सरकार की क्रूरता के दर्जनों प्रमाण आज भी विद्यमान है। जिसमें तिरुलडीह व जयदा गोलीकांड भी शामिल है। जिसे ईचागढ़ विधानसभा वासी कभी नहीं भूल सकते हैं। ईचागढ़ के तत्कालीन प्रखंड मुख्यालय तिरूलडीह में 21 अक्टूबर 1982 को हुए गोलीकांड का 40 साल बाद भी खुलासा नहीं हो पाया है और आश्रितों को सरकारी मदद भी नहीं मिली है। ऐसे इस घटना में मारे गए क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के दो सदस्य चांडिल प्रखंड अंतर्गत चौका के कुरली निवासी व सिंहभूम कॉलेज चांडिल के छात्र अजित महतो तथा ईचागढ़ प्रखंड के आदरडीह गांव निवासी धनंजय महतो की याद में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला शहादत दिवस सिर्फ औपचारिकता ही रह गया है। बिहार सरकार से शहीदों के आश्रितों को आशा नहीं थी लेकिन झारखंड अलग राज्य गठन के बाद इस मामले में न्याय की उम्मीद जगी थी, जो सरकार की उदासीनता के चलते धूमिल होती जा रही है। यह गोलीकांड उस समय हुआ था जब क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा का एक प्रतिनिधिमंडल अंचलाधिकारी के कार्यालय में विभिन्न मांगों को लेकर अधिकारी से लिखित आश्वासन ले रहा था। मोर्चा के सदस्य समझ नहीं पाए कि गोली कैसे और किसके आदेश से चली, जबकि अंचलाधिकारी खुद कार्यालय में मौजूद थे। घटना के बाद प्रखंड मुख्यालय में मौजूद 42 लोगों को हिरासत में ले लिया गया था। हालांकि, आंदोलन के कारण हिरासत में लिए लोगों को छोडऩा पड़ा था। उस समय घटना की जांच के लिए एक टीम गठित की गई थी जिसकी रिपोर्ट अबतक सार्वजनिक नहीं की गई है। सरकार भी अब तक नहीं बता पाई है कि घटना के लिए जिम्मेदार कौन हैं? वक्त के साथ-साथ शहीदों के परिजन मायूस होते गए लेकिन हर साल 21 अक्टूबर को शहादत दिवस मनाकर अजित व धनंजय को याद करना नहीं भूले। इस समारोह में आने वाले राज नेता शहीदों और उनके आश्रितों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और वे बातें सिर्फ बातों में ही रह गया है। धनंजय महतो के पुत्र उपेन महतो को झारखंड मुक्ति मोर्चा की शिबू सोरेन सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था जो अबतक पूरा नहीं हुआ है। अब झारखंड राज्य में एक बार फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है और शहीद पुत्र को हेमंत सरकार से बहुत उम्मीद है। क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अलग झारखंड आंदोलन के अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेता शिबू सोरेन के पुत्र हैं और वे भी स्वयं आंदोलन का नेतृत्व भी किया है। मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन जानते हैं कि आंदोलन की राह में कैसी कैसी कुर्बानियां दी जाती है। उस दिन की घटना को याद करते हुए सिरुम गांव निवासी झारखंड आंदोलनकारी सुनील कुमार महतो कहते हैं कि अजित महतो और धनंजय महतो का शव घटना के बाद से रात भर उसी स्थान में पड़ा रहा। पुलिस के आतंक से कोई भी व्यक्ति शव उठाने नहीं गया। खबर मिलने के बाद झामुमो नेता निर्मल महतो दूसरे दिन घटनास्थल तिरुलडीह पहुंचे और शव को उठाकर जयदा स्थित सुवर्णरेखा नदी किनारे मुखाग्नि देकर दाह संस्कार किया।
हरेलाल महतो ने धनंजय के आश्रितों को निर्माण करवा दिया पक्का मकान
जनसेवा ही लक्ष्य के संस्थापक सह आजसू के केंद्रीय सचिव हरेलाल महतो ने धनंजय महतो के पत्नी बारी देवी व पुत्र उपेन महतो के लिए ईचागढ़ प्रखंड के आदरडीह गांव में आधुनिक सुविधायुक्त चार कमरे का पक्का मकान निजी खर्च से निर्माण करवा दिया है। तीन साल पहले हरेलाल महतो बारिश के मौसम में बारी देवी के घर मिलने गया था। टूटे हुए मकान की दुर्दशा देखकर हरेलाल महतो ने बारी देवी व उपेन महतो से कहा कि मकान निर्माण के लिए जमीन चिन्हित करें। जमीन चिन्हित करने के बाद हरेलाल महतो ने निजी खर्च से मकान निर्माण करवा दिया।
सुनील दा ने आश्रितों के लिए नौकरी का रखा है मांग
क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के सदस्य व तिरुलडीह गोलीकांड के चसमद्दीद रह चुके झारखंड आंदोलनकारी सह सह सरयकेला खरसावां जिला उपाध्यक्ष श्रीमती मधुश्री महतो के प्रतिनिधि सुनील कुमार महतो ने वर्तमान राज्य सरकार से गोलीकांड के मृतक अजित महतो व धनंजय महतो के आश्रितों को एक -एक सरकारी नौकरी व अन्य सुविधाएं देने की मांग की है। सुनील कुमार महतो ने कहा कि राज्य में अलग झारखंड आंदोलन करने वाले दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का सरकार है। अब यदि आंदोलनकारियों के आश्रितों को सरकारी नौकरी व अन्य सुविधाएं नहीं मिलेगी तो फिर भविष्य में कभी नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि जल्द राज्य के मुख्यमंत्री से मिलकर शहीदों की आश्रितों के लिए नौकरी व अन्य सुविधाएं देने का आग्रह किया जायेगा।
शहादत दिवस में शहीदों को श्रद्धांजलि देना सिर्फ दिखावा बनकर रह गया
शहादत दिवस में शहीदों को श्रद्धांजलि देना सिर्फ दिखावा बनकर रह गया है। इसका उदाहरण है कि शहीद स्थल में निर्मित वेदियों का राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता आदि साफ सफाई कराना भी अपना कर्तव्य नहीं समझते हैं। शहीद स्थल की वेदियां झाडिय़ों से भर गया है और विभिन्न स्थानों में निर्माण की गई शहीदों के प्रतिमाएं बेरंग होने लगा है। साल में एक या दो बार शहीद स्थल व वेदीयों पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने से ही शहीदों को सच्ची श्रृद्धांजलि नहीं होता है। समय समय पर शहीद स्थल व वेदियों की साफ, सफाई, रंगाई – पुताई भी होनी चाहिए और सबसे बड़ी श्रृद्धांजलि तब होगी जब शहीदों के आश्रितों को सरकारी सुविधा का नियमित प्रबंध हो।