जमशेदपुर, 17 जनवरी (रिपोर्टर) : साकची बाजार में अतिक्रमण के नाम पर लगातार चलनेवाले अभियान को लेकर दुकानदारों में इस बात का खौफ है कि दरअसल इसके पीछे की योजना पूरे साकची बाजार को ही खाली कराकर अन्यत्र स्थानांतरित करने की है. कंपनी प्लांट बढ़ते बढ़ते अब साकची बाजार के बिल्कुल निकट आ चुका है. दुकानदारों का कहना है कि पिछली सरकार के दौरान ही बाजार को यहां से हटाने की योजना तैयार कर ली गई थी. इसका भी खामियाजा चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ा था. उनका कहना है कि शहर में तीन-चार मॉल अलग-अलग क्षेत्रों में तैयार किये जा रहे हैं. जिस तरह ग्रेजुएट कॉलेज, केरला समाजम मॉडल स्कूल, करीम सिटी कॉलेज, एडीएल सनसाइन स्कूल आदि स्थानांतरित कर दिये गये हैं और पूरे परिसर को कंपनी बाउंड्री के अंदर लेने की जोरशोर से तैयारी चल रही है, वह दरअसल साकची बाजार की ओर उस बाउंड्री का बढ़ता कदम है. बसंत टॉकीज के सामने पार्किंग स्थल तैयार किये जाने और नये मिनी बस स्टैंड को लेकर भी साकची बाजार के कारोबारियों में तरह-तरह की बातें सुनी जा रही है. उनको इस बात की आशंका है कि इन क्षेत्रों को अधिग्रहित करना कंपनी के लिये काफी आसान हो जाएगा. इस समय फुटपाथी दुकानदार पहले निशाने पर है. वे बाजार आने वाले खरीददारों के लिये भी पहले से सर दर्द बने हुए थे, अब फुटपाथी दुकानदारों को हटाने के नाम पर आवंटित दुकानदारों से उनके आवंटन एवं कारोबार संबंधी कागजात मांगे जा रहे हैं. फुटबाथी दुकानदारों के अलावे सडक़ों पर लगने वाले ठेला स्थानीय थाना और ट्रैफिक के पुलिसकर्मियों की नाजायज उगाही का बड़ा जरिया बने हुए हैं। इन्हें व्यवस्थित कर साकची बाजार के दुकानदारों के कथित अतिक्रमण को अगर दूर किया जाए तो शायद साकची बाजार का कायाकल्प हो जाए और प्रशासन तथा कंपनी की नीयत भी पारदर्शिता के साथ सामने दिखे। लेकिन क्या यह संभव है। कहा जाता है कि पुलिस वाले ऐसा होने नहीं देंगे।प्रशासन दुकानदारों पर डंडा चलाने के पहले अपने पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार और अनुशासित कर दे तो बाजार में भ्रमण और किसी दुर्घटना की आशंका में बड़ी गाडिय़ों का प्रवेश तक निश्चित हो जाएगा।
दुकानदारों का कहना है कि उनके पूर्वजों को कंपनी ने यहां चिरौरी कर दुकान आवंटित की थी. कई दुकानदारों की चौथी पीढ़ी यहां कारोबार कर रही है. उनको इस बात की आशंका है कि यदि किसी मॉल में साकची बाजार के आवंटित आठ गुणा आठ या आठ गुणा बारह फीट का एरिया उन्हें आवंटित कर दिया और किसी कोने में वह दुकान उन्हें मिली तो फिर उनका क्या होगा?
दुकानदारों का कहना है कि शहर के अलग-अलग हिस्सों में टीना शेड मार्केट को पक्का नहीं किये जाने के पीछे भी कोई ऐसी ही बड़ी योजना हो सकती है. इतने सालों में जब शहर की आबादी कई गुणा बढ़ चुकी है, तो इन बाजारों पर दबाव बढऩा स्वाभाविक है. इन दुकानों को पक्का करने या बहुमंजिला बनाने की मंजूरी जबतक नहीं मिलेगी, हालात नहीं सुधरेंगे और बाजार में भीड़भाड़ इसी तरह बनी रहेगी.
वर्ष 1996 में टाटा लीज नवीकरण की अवधि समाप्त होने के बाद जमशेदपुर में अतिक्रमण जोरशोर से होने लगा था. उसके पहले तक कंपनी की ‘गुंडा पार्टी’ का ऐसा रुतबा था कि पुलिस उनके सामने कमजोर नजर आती थी. देखते देखते यह ‘गुंडा पार्टी’ किसी भी निर्माण को उखाड़ फेंकती थी. उस दौरान कंपनी के बाजार मास्टर का रुतबा भी आला प्रशासनिक पदाधिकारियों से उपर ही रहा करता था. साल 2005 में लीज नवीकरण होने के बाद से हालांकि जमीन की प्रक्रिया में कुछ बदलाव देखने को मिले लेकिन कंपनी के प्लांट का जिस तरीके से विस्तार हो रहा है, उसे लेकर इस बात की आशंका जताई जा रही है कि शहर के बीचोंबीच बड़ा भूभाग प्लांट परिसर के अंदर ले लिया जाएगा. जमशेदपुर में कंपनी का उत्पादन अब 11 मिलियन टन हो चुका है. इतने बड़े उत्पादन को लेकर लॉजिस्टिक की ढुलाई भी बड़ी समस्या है. कुछ साल पहले जमशेदपुर में फ्लाई ओवर बनाने पर काफी जोर शोर से चर्चा होती थी. कंपनी बोर्ड द्वारा फ्लाई ओवर के लिये 1100 करोड़ रु. से अधिक आवंटित भी कर दिये गये थे. बेल्डीह क्लब में एक प्रेजेंटेशन के दौरान कंपनी के तत्कालीन उपाध्यक्ष (कॉरपोरेट सेवा) संजीव पॉल ने दावा किया था कि यदि सरकार की ओर से फ्लाई ओवर को मंजूरी मिले तो 18 से 20 महीने के अंदर फ्लाई ओवर तैयार कर लिया जाएगा. अब फ्लाई ओवर पर कोई चर्चा नहीं होती. पिछली सरकार के दौरान यह चर्चा सडक़ों के चौड़ीकरण के बाद ठंडे बस्ते में डाल दी गई. अब तो जमशेदपुर शहर में फ्लाइ ओवर को लेकर चर्चा ही बंद हो गई है.
मेरी निगाहें और निशाना सीधा साधा है-उपायुक्त
इस विषय में उपायुक्त सूरज कुमार का कहना है कि मेरी निगाहें और निशाना सीधा साधा है। दुकानदारों की आशंकाओं और बातों को गलत और बेबुनियाद बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें पिछले दस साल से समझाया जा रहा है कि वे नियमित रुप से आवंटित स्थल पर ही अपना काम करें। लेकिन उन्हें संतुष्टि नहीं है। आज यह बाजार बहुत ही खतरनाक हॉट स्पाट बना है। यहां कई मौतें हो चुकी हैं जिन्हें प्रशासन ने काफी जद्दोजहद के बाद नियंत्रित किया है। प्रशासन की नीयत साफ है। चूंकि दुकानदार खतरे को समझने के लिये तैयार नहीं हैं अतएव हम कड़ाई करने के लिये विवश हुए हैं। ढिलाई कर दी जाये तो फिर कारोबार वो सडक़ पर उसी तरह फैला देंगे। हमें नहीं भूलना चाहिये कि अभी कोविड खत्म नहीं हुआ है। बाजार में आने जाने वाले लोगों की जिंदगी की सुरक्षा इससे जुड़ी हुुई है। मैं मानता हूं कि आज बाजार में मंदी है लेकिन इस कारण अनियमित ढंग से काम करने की छूट नहीं मिला जाएगी। दस साल से दुकानदारों को कहा जा रहा हैकि वे अपनी दुकानों के सामान बाहर न निकालें। उन्होंने अपने गोदाम बाहर में बना रखे हैं जहां से अतिरिक्त सामान वे जरुरत के अनुसार ला सकते हैं जैसा कि अपर बाजार में किया जाता है। उन्हें सिर्फ अपने लाभ और मतलब की चिंता नही करते हुए जनहित का ख्याल रखना चाहिये। प्रशासन ने साकची के साथ मानगो में भी बाजार का भ्रमण किया। मैं स्वयं मानगो गया था। वहां तो टाटा लीज का कोई मामला नहीं है। अगर प्रशासन ने दुकानदारों को नियमित ढंग से काम करने का अभ्यास नही ंकराया तो हर नागरिक और हर करदाता के पांव के समक्ष एक स्ट्रीट वेंडर खड़ा या बैठा मिलेगा। हम उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं लेकिन अनियमित ढंग से काम करने की छूट नहीं दे सकते। हमें आम नागरिकों की सुविधाओं और सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा जो करदाता है। उनके जीवन की रक्षा भी हमारी जिम्मेदारी है। चुपचाप मौन धारण कर अपना दैन्दिन जीवन के लिये खरीददारी करने वालों के चुप रहने का यह मतलब नहीं है कि उन्हें शांति और सुरक्षित महौल में रहने का हक नहीं है। विदित हो कि चार अलग अलग स्थानों पर स्ट्रीट वेंडर्स को जगह उपलब्ध कराया गया। लेकिन अधिकाँशत: उन लोगों ने उक्त स्थल पर अपनी दुकानें या तो बेच दीं या किसी व्यवस्था के तहत अपने सगे संबंधियों को देकर बाजार की सडक़ों पर दुकान जमा लिया। यह सहज ही समझा जा सकता है कि बाजार में खुली जगह होनी चाहिये या नहीं ताकि कोविड संबंधी आवश्यक निर्देशों और गाइडलाइन का अनुपालन किया , कराया जा सके। उन्होंने सवाल किये कि क्या दुकानदारों द्वारा अतिर्क्ति जमीन पर कब्जा करना वाजिब है जहां कोई पैदल भी न चल सके। क्या आप चाहते हैं कि हर दिन यही स्थिति बरकरार रहे। पहले हर मंगलवार को संपूर्ण बाजार बंद रखा जाता था और मंगलाहाट के नाम पर कारोबार करने के लिये छूट थी जो आज सातो दिन का धंधा हो गया है। क्या आप चाहते हैं कि दुकानों के स्वामित्व की बिक्री जब प्रतिबंधित कर दी गयी बावजूद इसके किसी थर्ड पार्टी को दुकान बेचने का काम जारी रहने दिया जाए? क्या दुकानों के वास्तविक मालिकों अथवा उनके आश्रितों के बारे में पता करना अनुचित है और इस क्रम मे ंजांच करना गलत है। चालीस पचास साल पहले किये गये आवंटन के आधार पर जमीन मांगना इस तर्क पर कि परिस्थतियां बदल गयी हैं, न्यायोचित है और 40-50 साल पहले जो आवंटन के मद में भाड़ा (रेंट) स्वीकृत किया गया था उसे ही बरकरार रहना चाहिये? कामर्सियल रेंट आज के दर के अनुसार देना या वसूलना गलत है? इस संबंध में कोई भी निर्णय करने के लिये सर्वे बहुत जरुरी है। टाटा स्टील के साथ लंबे समय से सरकार का मामला चल रहा है जिसे हम कायदे से निष्पादित करना चाहते हैं। हमारा उद्देश्य किसी को बेदखल या हटाना नहीं है लेकिन यह सबको पता होना चाहिये कि कौन कानूनी रुप से काम कर रहा है और कौन गैरकानूनी ढंग से।