आरक्षण को लेकर हमेशा बहस छिड़ी रहती है। एक वर्ग है जो इसका प्रबल समर्थक है। तो वहीं दूसरा एक ऐसा वर्ग है जो आरक्षण का विरोध करता है। उनका तर्क होता है कि योग्यता को तरजीह मिलनी चाहिए। मगर ताजा मामला 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की सीमा को करने का है। कई राज्यों की सरकारें आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत तक ले गई है। महाराष्ट्र सरकार के बाद अब हरियाणा सरकार भी इसी राह पर है। सुप्रीम कोर्ट अब यह इस बात की सुनवाई करेगा कि क्या आरक्षण की तय 50 प्रतिशत सीमा से अधिक आरक्षण की जरुरत है। 15 मार्च से रोजाना इस मुद्दे पर बहस होगी।
आरक्षण का मामला हमारे देश में हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है या यंू कहा जाये कि इसे बनाकर रखा गया है। एक ओर तो जात-पात को सामाजिक स्तर पर बुरा माना जाता है। अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया जाने लगा है। इसे कानूनी कवच भी प्राप्त है। लेकिन दूसरी ओर आरक्षण के नाम पर जातीय प्रणाली को जीवित बनाये रखा जाता है। देश को आजाद हुए 7 दशक बीत चुके है, लेकिन आज भी हम आरक्षण के मुद्दे पर तलवार निकालने को तैयार रहते है। राजनीतिक दलों के लिये तो यह इतना बड़ा हथियार है कि इसके दम पर खुलकर राजनीति की जाती है। कोई इससे अछूता नहीं है। समाज का स्तर ऊंचा उठाने के बजाय आरक्षण प्रदान कर कुछ वर्गों को उठाने का अनवरत प्रयास चल रहा है। कभी कोई इस पर समीक्षा को तैयार नहीं होता कि आरक्षण का कितना नफा-नुकसान है, इस पर चर्चा होनी चाहिए। राजनीतिक दल तो इसे छेडऩा ही नहीं चाहते बल्कि वे आरक्षण के चैम्पियन पक्षधर बने होने का खूब दंभ भरते है। सामाजिक स्तर पर किसकी क्या हैसियत है आज की तारीख में इसी का महत्व है, लेकिन नौकरी या कुछ खास सुविधाओं की जब बात आती है तो यह फार्मूला पीछे छूट जाता है। झोपड़ी में रहने वाला सवर्ण हो जाता है और महल में रहने वाला खरबपति आरक्षण का लाभ पाता है। यह कितनी बड़ी विडम्बना है। ऐसी अनगिनत प्रतिभायें गरीबी का दंश झेलती रह जाती है, लेकिन उनको नौकरी नहीं मिल पाती, कॉलेजों में दाखिला नहीं मिल पाता। आज सबसे बड़ी समस्या ऐसी प्रतिभाओं के लिये बेहतर शिक्षा के लिये शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले की है। आरक्षण की आग में ऐसी अनगिनत प्रतिभायें झुलस रही है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। आज के समय में कहा जाता है कि दो ही जाति रह गई है,अमीरी और गरीबी। समाज इसे ही मान्यता देता है जो अमीर है वह बड़ा माना जाता है और जो गरीब है वह छोटा। लेकिन नौकरी, दाखिले के समय यह परिभाषा बदल जाती है। अब तो आरक्षण पर चर्चा करना ही अपराध माना जाने लगा है।