रतन टाटा की खेलकूद से नहीं थी रुचि
देश के जाने-माने बिजनेसमैन रतन टाटा ने अमेरिका से पढ़ाई की है। कॉलेज के दिनों में रतन टाटा को अमेरिका इतना पसंद आया कि यहीं बसने का फैसला ले लिया था। हालांकि बाद में टाटा की दादी नवाजबाई की तबीयत खराब हुई तो उन्हें अमेरिका छोड़कर भारत वापस लौटना पड़ा। रतन अपनी दादी के बेहद करीब थे। ऐसे में उन्होंने दादी के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए भारत में रुकने का निर्णय लिया।
पीटर केसी (Peter Casey) ने अपनी किताब हालिया किताब ‘द स्टोरी ऑफ टाटा: 1868 टू 2021’ में रतन टाटा के जीवन से जुड़े तमाम किस्सों का विस्तार से जिक्र किया है। वे लिखते हैं कि रतन टाटा को उनकी दादी अपनी रॉल्स रॉयस से स्कूल भेजती थीं और कई बार लाने के लिए भी यही कार जाती थी। हालांकि टाटा को इस कार में बैठने में शर्मिंदगी महसूस होती थी और अक्सर इससे बचने की कोशिश करते थे।
पीटर केसी अपनी किताब में लिखते हैं कि रतन टाटा के लिए शुरुआती दिन बिल्कुल अलग थे, लेकिन पहली बार साधारण और आम जीवन का अनुभव तब हुआ जब दादी ने उनका एडमिशन कैंपियन स्कूल में करवा दिया था। इस स्कूल की स्थापना फादर जोसेफ सावाल्ल ने साल 1943 में की थी। यह स्कूल कूपरेज रोड के पास है, जो मुंबई के प्रिंसिपल सॉकर स्टेडियम के बिल्कुल सामने है।
दादी भेजती थीं रॉल्य रॉयस: स्पोर्ट्स स्टेडियम के बिल्कुल पास होने के बाद भी रतन टाटा की खेल में कोई रुचि नहीं थी। वह कभी-कभी स्पोर्ट्स प्रतियोगिताओं में भाग लिया करते थे, लेकिन ये उनकी कभी पहली पसंद नहीं रहा। एनडीटीवी पर प्रकाशित पीटर केसी (Peter Casey) की किताब के एक अंश के मुताबिक- रतन टाटा ने कहा था कि मुझे याद है कि मेरी दादी के पास एक काफी बड़ी-सी पुरानी रॉल्स रॉयस थी और वह अक्सर दोनों भाइयों को स्कूल से लाने के लिए उस कार को भेजा करती थीं।
रतन टाटा बताते हैं, हम दोनों भाइयों को उस कार को देखकर बेहद शर्म महसूस होती थी और अक्सर हम पैदल ही घर आ जाया करते थे। ये हमारे लिए एक तरह से स्पोर्ट ही था। कुछ समय बाद उन्होंने अपनी दादी के ड्राइवर को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह उन्हें स्कूल से कुछ दूरी पर छोड़ दिया करेंगे। क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे उनके सहपाठियों को ऐसा लग सकता है कि वह बिगड़ गए हैं।