अब वेटिंग लिस्ट का झंझट होगा खत्म, मिलेगा कंफर्म टिकट, जाने क्या है रेलवे का प्लान

10 साल में कितनी सुधरी रेलवे की दशा: किराया आसमान पर, वेटिंग लिस्ट हजारों में

भारत में ट्रेन हर रोज लाखों लोगों को उनके गंतव्य पर पहुंचाती है. यह यातायात का बड़ा साधन है और देश में ज्यादातर व्यक्ति लंबी दूरी के लिए रेलवे को सबसे सस्ता और तेज विकल्प मानते हैं. अलग-अलग ट्रेन से सफर करने वाले लाखों यात्री तो ऐसे हैं जो हर रोज ट्रेन से ही ऑफिस से घर और घर से ऑफिस का सफर तय करते हैं.

रेलवे में कौन सी ट्रेन किस वक्त चलेगी, किस बर्थ में सीट है इन सभी जानकारियों के लिए लोग रेलवे या फिर आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर आते हैं. आईआरसीटीसी की ये वेबसाइट दुनिया भर में सबसे ज्यादा हिट होने वाली वेबसाइटों में से एक है, यहां हर मिनट औसतन 12 लाख हिट होते हैं.
हालांकि भारतीय रेलवे द्वारा दिए जा रहे तमाम सुविधाओं के बाद भी त्योहारों के समय यात्रियों को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कई यात्रियों का तो कहना है कि 3 महीने पहले टिकट बुक किए जाने पर भी उन्हें कन्फर्म सीट नहीं मिल पाता. भारतीय रेल ने अब इस समस्या को खत्म करने के लिए एक योजना तैयार कर ली है.

क्या है अगली योजना?

दरअसल त्योहार के दौरान वेटिंग लिस्ट वाले टिकटों की स्थायी समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने अगले 4-5 सालों में अपने नेटवर्क पर 3,000 अतिरिक्त मेल, एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनें चलाने की योजना बनाई है. सरकारी रिपोर्ट की मानें तो फिलहाल हर साल लगभग 800 करोड़ व्यक्ति ट्रेन में सफर करते हैं और यह संख्या आने वाले पांच सालों में 1,000 करोड़ तक भी पहुंच सकता है, जिसके लिए बड़े पैमाने पर विस्तार की आवश्यकता होगी.

रेल मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार वर्तमान में हर रोज 10748 ट्रेनें चल रही हैं. कोरोना महामारी से पहले इन्ही ट्रेनों की संख्या 10,186 थी. लेकिन आने वाले 4-5 सालों में इस संख्या को बढ़ाकर 13000 करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके अलावा यात्रियों की सुविधा के लिए रेलवे हर साल ट्रैक को बढ़ा रही है. अभी 4 से 5 हजार किलोमीटर ट्रैक का नया जाल बनाया गया है. रेलवे मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार आने वाले 3- 4 सालों में 3000 और नई ट्रेनों को ट्रैक पर उतारने की योजना है.

बढ़ते किराए से भी यात्री परेशान

त्योहार के वक्त घर जाने के लिए हर कोई उत्सुक होता है. ऐसे में लंबी वेटिंग लिस्ट तो लोगों के परेशानी का कारण है ही लेकिन इसके अलावा पिछले कुछ सालों में त्योहार के दौरान ट्रेन का बढ़ता किराया भी लोगों को सफर करने से रोकने का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है. इस बार तो स्थिति और भी बदतर लग रही है. ट्रेन के किराए प्लेन को मात दे रहे हैं. त्योहारों के बाद भी किराए आसमान पर हैं.

उदाहरण के तौर पर हमने भारतीय रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट आईआरसीटीसी पर मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से लेकर पटना जंक्शन के लिए 21 नवंबर की ट्रेन के लिए इंक्वायरी की. इस दौरान पहली ट्रेन सामने आती है मुंबई-पटना सुविधा एक्सप्रेस. 21 नवंबर के लिए स्लीपर क्लास में वेटिंग 20 पर है और किराया 2,625 रुपये पर. वहीं फेयर का ब्रेक अप चेक करने पर पता चलता है कि इस ट्रेन से सफर करने का मूल किराया 857 रुपये है. उसमें 20 रुपये का रिजर्वेशन चार्ज और 30 रुपये का सुपर फास्ट चार्ज लग रहा है.

अब किराया बढ़ने में जिस चीज से सबसे बड़ा फर्क पड़ रहा है, वह है डायनामिक फेयर. ब्रेक अप में डायनामिक फेयर 1,714 रुपये दिखाए जा रहे हैं. जो कि मूल किराए का सीधा डबल है. टोटल किराया इस तरह से मूल किराए के तीन गुने से ज्यादा हो जा रहा है.

थर्ड एसी का किराया सुनकर रह जाएंगे हैरान

वहीं इसी ट्रेन में थर्ड एसी में 36 टिकट मौजूद थे. थर्ड एसी के मामले में बेस फेयर 2,083 रुपये मिल रहा है. उसके ऊपर टिकट बुक करने वाले को 40 रुपये का रिजर्वेशन चार्ज और 45 रुपये का सुपर फास्ट चार्ज भी देना अनिवार्य है. वहीं डायनामिक किराए की बात करें तो इस मामले में भी मूल किराए का डबल यानी 4,166 रुपये हो जा रहा है. थर्ड एसी के टिकट में 317 रुपये की जीएसटी लग रही है. इस तरह 21 नवंबर के लिए टोटल किराया 6,655 रुपये पर पहुंच जा रहा है.

पिछले 10 साल में कितनी बदली भारतीय रेलवे की स्थिति

साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई थी. अब 2024 में उनके शासनकाल को 10 साल पूरा हो जाएगा. ऐसे में रेलवे द्वारा जारी किए गए आंकड़े में बताया गया है कि साल 2014 में देश में 1561 किलोमीटर के रेलवे ट्रेक बिछाए गए थे. जो अब 2023 में 5243 किलोमीटर हो चुका है.

इसके अलावा साल 2014 में हल्के यात्री कोच (LHB coach) की उत्पादन क्षमता 543 थी जो कि 10 सालों में बढ़कर 5869 हो गई है. साल 2014 में इलेक्ट्रिक लोको की क्षमता भी केवल 264 थी जो कि अब बढ़कर 1185 हो गई है.

LHB कोच यानी लिंक हॉफमैन बुश कोच को भारतीय रेलवे में पहली बार साल 1999 में शामिल किया गया था. वर्तमान में इस कोच का निर्माण कपूरथला रेल कोच फैक्ट्री में किया जाता है. ये कोच पैसेंजर्स के लिए काफी आरामदायक होते हैं. किसी तरह की दुर्घटना होने पर इस कोच में बैठे यात्री कम क्षतिग्रस्त होते हैं और इससे पैसेंजर्स के सुरक्षित रहने की संभावना बढ़ जाती है.

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