लखनऊ
up 2022 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी की बागी विधायक अदिति सिंह ने सभी कयासों पर पूर्ण विराम लगा दिया है। रायबरेली की सदर सीट से विधायक अदिति सिंह ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय में कांग्रेस विधायक अदिति सिंह के साथ आजमगढ़ जिले के सगड़ी विधानसभा से बसपा विधायक वंदना सिंह को भी भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता दिलाई है। इस मौके पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी समेत तमाम बीजेपी के नेता मौजूद रहे।
बीजेपी में शामिल होने से पति अंगद को हो सकता है नुकसान
अदिति सिंह के बीजेपी में शामिल होने के कारण अब उनके विधायक पति अंगद सिंह सैनी को बड़ा नुकसान हो सकता है। अंगद पंजाब की नवांशहर सीट से कांग्रेस से विधायक हैं। बता दें, रायबरेली जहां से अदिति सिंह आती है वो रायबरेली लोकसभा सीट से कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस सीट से लोकसभा चुनाव लगातार जीतती आ रही हैं। ऐसे में कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में जाना अदिति के पति अंगद को असहज स्थिति में डाल सकता है। अदिति ने 21 नवंबर 2019 को पंजाब के कांग्रेस से विधायक अंगद सिंह सैनी से शादी की थी।
विदेश में की है पढ़ाई
15 नवंबर 1987 को जन्मीं अदिति सिंह विदेश में पढ़ी-लिखी हैं। विदेश जाने से पहले उन्होंने 10 साल मसूरी के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद आगे की स्टडी के लिए दिल्ली चली गईं। अदिति ने मास्टर्स की पढ़ाई अमेरिका के ड्यूकन यूनिवर्सिटी से की। साल 2017 में जब उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा था, उसके तीन साल पहले ही वह अमेरिका से भारत वापस लौटी थीं। एक इंटरव्यू में अदिति सिंह ने बताया था कि पिता अखिलेश सिंह ने अपनी बीमारी के कारण उन्हें पॉलिटिक्स जॉइन करने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद उन्होंने अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ा। अदिति ने बताया कि राजनीति उनकी पहली पसंद थी और वह 100 फीसदी इस क्षेत्र में आना चाहती थीं।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव से अदिति सिंह का राजनीतिक करियर शुरू हुआ। बीजेपी लहर के बावजूद वह रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गईं। उन्होंने अपने पिता अखिलेश सिंह की जगह ली, जो 5 बार से रायबरेली सदर के विधायक थे। अपनी सियासी यात्रा के बारे में बात करते हुए अदिति ने बताया था कि वह इतनी जल्दी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं। उनके पिता भी यही चाहते थे कि वह साल 2022 के चुनाव के बाद ही राजनीति में एंट्री लें लेकिन अखिलेश सिंह की तबियत खराब होने के चलते उन्होंने 2017 में ही राजनीतिक एंट्री ले ली। साल 2019 में अखिलेश का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।