राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने खूंटी में आयोजित स्वयं सहायता समूह महिला सम्मेलन में बृहस्पतिवार को कहा कि मैं ओडिशा की हूं, लेकिन मेरे शरीर में झारखंड का खून बह रहा है. देश की आजादी में खूंटी की धरती पर जन्मे भगवान बिरसा मुंडा के योगदान के साथ-साथ फूलो-झानो को भी उन्होंने याद किया. राष्ट्रपति ने कहा कि झारखंड की महिलाओं में अदम्य शक्ति है. वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं. सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान देती हैं. राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि उन्हें जनजातीय परिवार में जन्म लेने पर गर्व है, क्योंकि उनकी कई परंपराएं हैं, जो किसी और समाज में नहीं हैं. उन्होंने कहा कि महिला समूह की महिलाओं के चेहरे पर खुशी देखकर वह बेहद प्रसन्न हैं.
एसएचजी की महिलाओं को देखकर बहुत खुश हूं : द्रौपदी मुर्मू
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वयं सहायता समूहों को मिलने वाली सुविधाओं की बात की. उन्होंने कहा, महिला समूह के उत्पादों को मैंने देखा. उनके चेहरे की मुस्कान देखी. मैंने पूछा- आपको सालाना कितना मिलता है, आप खुश हैं? उन्होंने कहा – हां. मैं उनके चेहरे को देखकर अपना बचपन याद करने लगी. महिलाओं को देखकर थोड़ी ईर्ष्या में थी. शायद मेरे पास भी वही ज्ञान होता बचपन में. इसके बाद ही वह बचपन की यादों में चली गयीं. राष्ट्रपति ने कहा, गांव से 5-6 किलोमीटर दूर हमारे खेत थे. खेतों की आड़ियों (मेड़) पर महुआ के 22 पेड़ थे. हम रात को दो बजे उठकर महुआ चुनने जाते थे. मेरी दादी ले जाती थी.
हम फॉरेस्ट प्रोड्यूस कलेक्ट करते थे, उसका मूल्य हमें नहीं मालूम था
उन्होंने कहा कि महुआ चुनकर उसे सुखाकर पोटोम बांधकर रखते थे. साल भर में उसमें कीड़ा लग जाता था. कई बार हमारे पास अनाज नहीं होता था, तो हम महुआ को उबालकर खा लेते थे. तब 20-25 पैसे प्रति किलो महुआ बिकता था. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि आज हमारी बहनें उससे केक, लड्डू और अन्य चीजें बना रही हैं. ऊंची कीमत पर उसे बाजार में बेच रही हैं. हमारे पास तब ये ज्ञान नहीं था. हम भी फॉरेस्ट प्रोड्यूस कलेक्ट करते थे, लेकिन उसका मूल्यवर्धन कैसे होगा, इसकी जानकारी हमें नहीं थी. आज सरकार महिला समूहों की मदद कर रही है. आज की महिलाएं सिर्फ धान की खेती पर निर्भर नहीं हैं.
सिर्फ सरकार के भरोसे न रहें, खुद भी पहल करें
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मुझे महिला और आदिवासी समाज में जन्म लेने पर गर्व है. देश में महिलाओं के योगदान की अनगिनत प्रेरक कहानियां हैं. अर्थव्यवस्था, विज्ञान और अनुसंधान से लेकर खेल व अन्य क्षेत्रों में हमारी बहन-बेटियों ने अमूल्य योगदान दिया है. कितनी ही महिलाएं हैं, जो प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद आगे बढ़ रही हैं. भारत के लोकतंत्र की शक्ति है कि मैं आज आप सबके बीच राष्ट्रपति के रूप में उपस्थित हूं. राष्ट्रपति के रूप में देश भर में शिक्षण संस्थानों के दीक्षांत समारोहों में मैंने देखा है कि हमारी बेटियां, बेटों से अच्छा कर रही हैं. राष्ट्रपति भवन में आयोजित पद्म पुरस्कार हों या अन्य कार्यक्रम, हर जगह मुझे महिलाओं की अदम्य शक्ति का एहसास हुआ है. उन्होंने कहा कि लोगों को सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहिए. सरकार उनकी मदद के लिए है, लेकिन आपको खुद भी पहल करनी चाहिए.
अपनी प्रतिभा को पहचानें महिलाएं
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी काम में सफल होने के लिए जरूरी है कि आप अपनी प्रतिभा को पहचानें. दूसरों से अपनी तुलना न करें. आपके अंदर असीम शक्ति है, उस शक्ति को जगायें. उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैंने एक लेख लिखा था – ‘हर महिला की कहानी, मेरी कहानी है’. इस लेख में मैंने लिखा था कि एक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज के निर्माण के लिए महिला-पुरुष समानता पर आधारित पूर्वाग्रह को समझना और उनसे मुक्त होना जरूरी है. यदि महिला को मानवता की प्रगति में बराबर का भागीदार बनाया जाता, तो हमारी दुनिया अधिक खुशहाल होती. झारखंड की परिश्रमी बहनें और बेटियां देश में आर्थिक योगदान देने में सक्षम हैं. मैं झारखंड की धरती से ही जुड़ी हूं.
राष्ट्रपति ने कहा कि जनजातीय समाज में दहेज प्रथा नहीं है. हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमने इस समाज में जन्म लिया. हम बिना दहेज के बहू लाते हैं, बिना दहेज के बेटी देते हैं. अन्य समाज इसका अनुकरण करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते. राष्ट्रपति ने दहेज को एक राक्षस करार दिया, जिससे सुशिक्षित समाज भी बच नहीं पा रहा है. उन्होंने विश्वास जताया कि झारखंड में महिलाओं के नेतृत्व में विकास की नयी गाथाएं लिखी जायेंगी.
झारखंड की महिलाएं सशक्त हैं, आत्मनिर्भर हैं
द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें देश के सभी राज्यों में जाने का अवसर मिला. बहुत सी महिला समूहों से मिलीं. कहा कि झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. 26 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. यानी 1 करोड़ से अधिक आदिवासी हैं राज्य में. इनमें आधी महिलाएं हैं. झारखंड की महिलाएं सशक्त हैं. ये आत्मनिर्भर हैं और अपने पूरे परिवार को अन्य राज्यों से आगे रखती हैं. यह महिला समूहों की वजह से ही संभव हो पाया है.
राष्ट्रपति ने एक कहानी सुनायी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन के दौरान एक कहानी सुनायी. उन्होंने बताया कि एक महिला कम्प्यूटर लेकर आयी. उसने एक-एक कर राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं के बारे में बताना शुरू किया. मैं उसको देखकर दंग रह गयी. मैंने उससे पूछा कि कितनी पढ़ी-लिखी हो. उसने बताया, ज्यादा नहीं, 9वीं तक. उसको देखकर मुझे बुरा लगा. मैं सोचने लगी कि मैं कितना पीछे हूं. राष्ट्रपति ने विभिन्न क्षेत्रों में पद्म पुरस्कार प्राप्त करने वाली झारखंड की जमुना टुडू, छुटनी महतो, दीपिका कुमारी के अलावा महिला खिलाड़ियों ब्यूटी डुंगडुंग, प्रमोदिनी लकड़ा, सलीमा टेटे और दीपिका सेरेंग की उपलब्धियों का बखान किया.
राष्ट्रपति ने बिरसा मुंडा और डोंबारीबुरु गोलीकांड को किया याद
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भगवान बिरसा मुंडा के अदम्य साहस और डोंबारीबुरु में हुए नरसंहार की भी चर्चा यहां की. उन्होंने कहा, मुझे आश्चर्य होता है कि 25 वर्ष से भी कम के जीवन काल में भगवान बिरसा मुंडा ने क्या नहीं किया. विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य के खिलाफ आबुआ राज की स्थापना का शंखनाद कर दिया. अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी. उन्होंने कहा कि डोंबारीबुरु को झारखंड का जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है. जलियांवाला बाग से 25 साल पहले यहां अंग्रेजों ने नरसंहार किया था. बेगुनाह लोगों को घेरकर गोलियों से भून दिया था. लेकिन, भगवान बिरसा मुंडा वहां से बच निकले. बाद में उलगुलान का नेतृत्व किया.