पॉलिमर के दामों में बेतहाशा वृद्धि से सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों पर मंडरा रहा है संकट का बादल

कोलकाता 05 मार्च प्लास्टिक प्रोसेसिंग सेक्टर में संलग्न तकरीबन 50,000 यूनिट्स देशभर में कुल 50 लाख लोगों को रोज़गार मुहैया कराते हैं. मगर इस वक्त वे अपनी क्षमता से 50 फ़ीसदी कम लोगों को ही रोज़गार दे पा रहे हैं. ऑल इंडिया प्लास्टिक‌ इंडस्ट्री एसोसिएशन्स से जुड़े द ऑर्डर इंडिया प्लास्टिक्स मैन्युफ़ैक्चर्रस एसोसिएशन, ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ प्लास्टिक्स प्रोसेसर्स ऑफ़ इंडिया, प्लास्टिक एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल, गुजरात स्टेट प्लास्टिक्स मैन्युफ़ैक्चर्रस एसोसिएशन, ‌इंडियन प्लास्टिक्स फ़ेडरेशन, कर्नाटक स्टेट प्लास्टिक्स एसोसिएशन, महाराष्ट्र प्लास्टिक मैन्युफ़ैक्चर्रस एसोसिएशन, केरल प्लास्टिक्स मैन्युफ़ैक्चर्रस एसोसिएशन और कैनरा प्लास्टिक मैन्युफ़ैक्चर्रस ऐंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रमुखों का कहना है कि अगर यह संकट जल्द ख़त्म नहीं हुआ तो हज़ारों एमएसएमई पर इसका गहरा असर होगा और उन्हें बंद करने की नौबत तक आ सकती है.
इंडस्ट्री से जुड़ी संस्थाओं ने फ़ीडस्टॉक की अनदेखी करते हुए पब्लिक सेक्टर कंपनियों समेत बड़े पेट्रोकेमिकल कंपनियों द्वारा बेतहाशा क़ीमतें बढ़ाने को लेकर कड़ी आलोचना की है. उल्लेखनीय है कि पिछले 8-10 महीनों में क़ीमतों में 40 से 155 फ़ीसदी तक का इज़ाफ़ा किया गया है. उन्होंने बड़े-बड़े पेट्रोकेमिकल कंपनियों पर इल्ज़ाम लगाते हुए कहा है कि उनकी वजह से बाज़ार में कच्चे माल की उपलब्धता में उल्लेखनीय कमी देखी जा रही है जिसमें कालाबाज़ारी और बढ़े हुए दामों में माल की बिक्री के चलन को बढ़ावा मिल रहा है.
एसोसिएशनों ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि वह इंडियन ऑयल, जीएआईएल, ओपीएएल, हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स, एमआरपीएल जैसी सार्वजिनक क्षेत्र की कंपनियों को आदेश दे कि वे सभी तमाम एमएसएमई को उचित दामों पर कच्चे माल की आपूर्ति करें.
पॉलिमर के कच्चे माल के दामों में बढ़ोत्तरी होने के चलते सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. ऐसे में इंडस्ट्री से जुड़ी संस्थाओं ने सरकार से अपील की है कि कच्चे माल के निर्यात पर कम से कम एक साल के लिए रोक लगाई जाए.
द ऑल इंडिया प्लास्टिक्स मैन्युफ़ैक्चर्रस एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रकांत तुरखिया ने‌ कहा, “इंडस्ट्री को प्लास्टिक के निर्माण के लिए मुख्य तौर पर इस्तेमाल किये जानेवाले पॉलिमर की भयंकर कमी का सामना करना पड़ रहा है. इसका इस्तेमाल राष्ट्र निर्माण से जुड़े विविध उद्योगों के साथ साथ कृषि क्षेत्र, स्वास्थ्य, फ़ूड सेक्टर व खिलौने के निर्माण से जुड़ी कंपनियों द्वारा भी‌ किया जाता है.”
एसोसिएशन के गवर्निंग काउंलिस के अध्यक्ष अरविंद मेहता कहते हैं, “कच्चे माल के दामों में वृद्धि और बाज़ार‌ में इसकी भारी कमी के चलते परियोजनाओं की लागत में बढ़ोत्तरी हो रही है जिससे एमएसएमई द्वारा निर्मित की गई सामाग्रियों की क़ीमतों को बढ़ाने‌ के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.”
प्लास्टिक एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष अरविंद गोयन्का कहते हैं, “देश में पॉलिमर‌ की क़ीमतें अधिक होने‌ की वजह से तैयार माल के निर्यात में प्रतिद्वंद्वी देशों के म़ुकाबले निरंतर कमी देखी जा रही है.ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ प्लास्टिक्स प्रोसेसर्स ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष श् महेंद्र संघवी ने कहा, “कच्चे माल के दामों में बढ़ोत्तरी के चलते प्लास्टिक पाइप, ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और वॉटर टैंक आदि की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी जिसका कृषि क्षेत्र पर विपरीत असर पड़ेगा.”
गुजरात स्टेट प्लासटिक्स मैन्युफ़ैक्चर्रस एसोसिएशन के‌ अध्यक्ष शैलेश पटेल ने कहा, “क़ीमतों में अचानक से हुई वृद्धि और कच्चे माल की अनुपलब्धता से खिलौने के लिए पुर्ज़े बनानेवाले और पैकेज़िंग करनेवाले निर्माता काफी निराश हैं.”
इंडियन प्लास्टिक फ़ेडरेशन, कोलकाता के अध्यक्ष रमेश कुमार रतेरिया ने कहा, “इस कोरोना काल में लोगों की आय बुरी तरह से प्रभावित हुईं हैं और ऐसे में कच्चे माल की बढ़ती कीमतों का असर उपभोक्ताओं पर देखने को मिलेगा”

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