जयपुर, पीएम नरेंद्र मोदी मंगलवार को 10 साल बाद करीब 1500 आदिवासियों की शहीद स्थली मानगढ धाम पहुंचे। मोदी ने कहा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले आदिवासी समाज ने आजादी का बिगुल फूंका था। हम आदिवासी समाज के योगदानों के कर्जदार हैं। भारत के चरित्र को सहेजने वाला आदिवासी समाज ही है। हालांकि उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्मारक बनाने की घोषणा नहीं की। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने शहीद स्मारक का दौरा कर आदिवासियों को श्रद्धांजलि दी।
मोदी ने कहा कि मानगढ धाम को भव्य बनाने की इच्छा सबकी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आपस में चर्चा कर एक विस्तृत प्लान तैयार करें और मानगढ धाम के विकास की रूपरेखा तैयार करें। चार राज्य और भारत सरकार मिलकर इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। नाम भले ही राष्ट्रीय स्मारक दे देंगे या कोई और नाम दे देंगे।
कार्यक्रम में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की मौजूदगी की तारीफ करते हुए मोदी ने कहा कि सीएम के नाते हमने साथ-साथ काम किया। अशोक गहलोत हमारी जमात में सबसे सीनियर थे। अभी भी जो हम मंच पर बैठे हैं, उनमें अशोक गहलोत सबसे सीनियर सीएम हैं।
गहलोत ने कहा कि मानगढ धाम के इतिहास को स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। हमने पीएम से अपील की है कि इसे राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाए। आदिवासी समाज आजादी की जंग लडऩे के मामले में किसी से पीछे नहीं था। गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया में सम्मान महात्मा गांधी के कारण मिलता है। हमारी अपील है कि मानगढ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करें।
सीएम गहलोत ने कहा कि राजस्थान की चिरंजीवी योजना को एग्जामिन कराएंगे तो यह पूरे देश में लागू हो सकती है। गहलोत ने कहा कि कुछ दिनों पहले आपने मानगढ को लेकर अलग-अलग प्रदेशों के बारे में जानकारी ली है। इसके मायने होते हैं। मैं उम्मीद करता हूं मानगढ को आप राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देंगे। गहलोत ने बांसवाड़ा को रेल मार्ग से जोडऩे की मांग भी की।
सभा को संबोधित करते हुए ष्टरू शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश को आजादी चांदी की तश्तरी में रखकर नहीं मिली है। आदिवासियों के बलिदान को भुला दिया गया था, लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें नमन करने का अभियान चलाया है।
गुजरात के ष्टरू भूपेंद्र पटेल ने कहा कि 17 नवंबर 1913 का काला दिन कोई नहीं भूल सकता। आदिवासियों को विकास की मुख्य धारा में लाने का प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं।
तेलंगाना से लेकर जयपुर, सूरत से लेकर छत्तीसग? तक मैसेज देने की तैयारी
यह कार्यक्रम इन तीनों राज्यों की 99 विधानसभा सीटों (आदिवासी बहुल) तक सिमटा हुआ रहने वाला है। मानग? एक ऐसा स्थान है, जहां गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमाएं आकर मिलती हैं। इन राज्यों के आदिवासियों की यहां बहुत श्रद्धा है।
इससे भी ब?कर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में बहुत बड़ी संख्या में रहने वाले आदिवासी समाज की आबादी करीब 8-10 करो? है।
विधानसभा की 200 और लोकसभा की 50 सीटों पर सीधा असर
गुजरात में एक महीने बाद चुनाव हैं। एक-दो साल में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसग?, कर्नाटक, तेलंगाना के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में विधानसभा की 200 और लोकसभा की लगभग 50 सीटें ऐसी हैं जो सीधे तौर पर आदिवासी बहुलता वाली हैं। इनके अलावा इन सभी राज्यों में 50-60 प्रतिशत सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी मतदाताओं की अच्छी-खासी उपस्थिति है।