नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा पर बोलते हुए इशारों-इशारों में नेहरू-गांधी परिवार पर निशाना साधा. उन्होंने गांधी परिवार के तीन सदस्यों के एक साथ सांसद होने का मुद्दा उठाया और आरोप लगाया कि कांग्रेस की कथनी और करनी में बहुत अंतर है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “जाति की बातें करना कुछ लोगों का फैशन बन गया है. पिछले 30 साल से सदन में आने वाले ओबीसी समाज के सांसद एक होकर मांग कर रहे थे कि ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए. जिन लोगों को आज जातिवाद में मलाई दिखती है, उन लोगों को उस समय ओबीसी की याद नहीं आई. हमने ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा दिया.”
उन्होंने आगे कहा, “एससी, एसटी और ओबीसी को हर क्षेत्र में अधिक अवसर मिलें – हमने इस दिशा में बहुत मजबूती से काम किया है. मैं इस सदन के माध्यम से नागरिकों के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न रखता हूं – क्या कभी एससी समुदाय के एक ही परिवार से एक साथ तीन सांसद हुए हैं? मैं यह भी पूछता हूं कि मुझे बताएं कि क्या कभी एसटी समुदाय के एक ही परिवार से एक साथ तीन सांसद हुए हैं…उनकी कथनी और करनी में बहुत अंतर है.”
हम जहर की राजनीति नहीं करते…
पीएम मोदी ने कहा, हम संविधान की भावना को लेकर चलते हैं, हम जहर की राजनीति नहीं करते हैं. हम देश की एकता को सर्वोपरि रखते हैं और इसलिए सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ बनाते हैं, जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है.
उन्होंने कहा, हम संविधान को जीते हैं, इसलिए इस सोच से आगे बढ़ते हैं. ये देश का दुर्भाग्य है कि आजकल कुछ लोग खुलेआम अर्बन नक्सलियों की भाषा बोल रहे हैं… जो लोग इस भाषा को बोलते हैं, वे न तो संविधान को समझ सकते हैं और न ही देश की एकता को समझ सकते हैं.”
एक ही समय में संसद में एसटी वर्ग के एक ही परिवार के तीन सांसद हुए हैं क्या? कुछ लोगों की वाणी और व्यवहार में कितना फर्क होता है, मेरे एक ही सवाल से पता चलता है। जमीन आसमान का अंतर है, रात-दिन का अंतर है। हम एससी-एसटी समाज को कैसे सशक्त कर रहे हैं, समाज में तनाव पैदा किए बिना एकता की भावना को बरकरार रखते हुए समाज के वंचितों का
कल्याण कैसे किया जाता है, इसका मैं उदाहरण देता हूं। 2014 में 2014 से पहले हमारे देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 387 थी। आज 780 मेडिकल कॉलेज हैं। मेडिकल कॉलेज बढ़े हैं तो सीटें भी बढ़ी हैं इसलिए कॉलेज भी बढ़े हैं सीटें भी बढ़ी हैं। 2014 में हमारे देश में एससी छात्रों की एमबीबीएस की सीट 7,700 थी। दस साल हमने काम किया आज संख्या बढक़र एससी समाज के 17,000 एमबीबीएस डॉक्टर की व्यवस्था की है और समाज में तनाव लाए बिना। 2014 के पहले एसटी छात्रों के लिए एमबीबीएस की सीटें 3,800 थी। आज ये संख्या बढक़र लगभग
9,000 हो गई थी। 2014 से पहले ओबीसी के छात्रों के लिए 14 हजार से भी कम सीटें थीं। आज इनकी संख्या लगभग 32 हजार हो गई है।
कुछ लोग जाति की बात करते हैं। जाति की बातें करना कुछ लोगों के लिए फैशन बन गया है। पिछले 30 साल से सदन में आने वाले ओबीसी समाज के सांसद दलों के भेदभाव से ऊपर उठकर, एक होकर 30-35 साल से मांग कर रहे थे कि ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा दिया जाए। जिनको आज ओबीसी समाज में मलाई दिखती है उनको उस समय ये बात याद नहीं आई। ये हम हैं जिन्होंने ओबीसी समाज को संवैधानिक दर्जा दिया। पिछड़ा वर्ग आयोग संवैधानिक व्यवस्था में है।
आजकल सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा ही चर्चा हो रही है। कुछ नेताओं की नजर जकूजी और स्टाइलिश टावर पर है। लेकिन हमारा फोकस तो हर घर जल पहुंचाने पर है। आजादी के 75 साल बाद देश में 75 फीसदी करीब 16 करोड़ से ज्यादा घरों से पास जल के लिए नल का कनेक्शन नहीं था। हमारी सरकार ने 5 साल में 12 करोड़ परिवारों को घरों में नल से जल देने का काम किया है।
आयोग आज संवैधानिक व्यवस्था बन गया। हर सेक्टर में एससी, एसटी, ओबीसी के अवसरों के लिए हमने काम किया। कोई मुझे बताए क्या एक ही समय में संसद में एससी वर्ग के एक ही परिवार के तीन सांसद हुए हैं क्या? दूसरा सवाल- कोई बताए कि एक ही कालखंड में संसद में एसटी वर्ग के एक ही परिवार के तीन एमपी हुए हैं क्या? कुछ लोगों की वाणी और व्यवहार में कितना फर्क होता है, मेरे एक सवाल के जवाब में ये दिख जाएगा। जमीन-आसमान का अंतर होता है। हम एससी-एसटी समाज को कैसे सशक्त कर रहे हैं।