पंडाल में देर रात विश्राम करते श्रद्धालु
जमशेदपुर : कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के कल से शुरु हो रहे पांच दिवसीय शिव महापुराण कथा को लेकर श्रद्धालुओं की आस्था परवान चढ रही है। आज देर शाम तक कथास्थल पर देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुंच गये हैं जिनमें महिलाएं अधिक हैं। बाबा के प्रति लोगों का जुनून कैसे संभलेगा, वह व्यवस्था उतनी मजबूत नहीं दिख रही है, उलटे धन वसूली के नाम पर विवाद छिड़ा हुआ है। डोबो जंगल और पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते वहां आस पास खाने पीने की वस्तुओं वाली न दुकानें हैं न बाजार है। स्थल पर लंगर की व्यवस्था की गई है। अभी शुरुआत है लेकिन जब समय के साथ भूख और प्लास कीतलब बढेगी तब इसे कैसे संभाला जाएगा, भोले बाबा ही फैसला करेंगे धार्मिक अनुष्ठान और देश में बह रही वयार के मद्देनजर भले ही जिला प्रशासन ऐसे आयोजनों के एसओपी की अनदेखी पर चुप दिख रहा है लेकिन अगर कहीं कुछ अनहोनी हो गई तो उसे जबाव देना भारी हो जाएगा। आस्था की इस आंधी में खर्च व्यवस्था के लिये जो पांच हजार से 51 हजार, एक लाख तक वीआईपी पास का फार्मूला बनाया गया है, उससे ही तरह तरह की शंकाओं ने जन्म लेकर शँकाओं को गहरा दिया है। महिलाएं बच्चियां, बच्चे, पंडाल में आज से ही चादर, प्लास्टिक बिछाकर बैठ और सो रहे हैं। इस क्रम में वीआईपी स्थल खाली कराने के लिये सवाल जवाब भी हुआ। लोग दूर दराज से पहले इस उद्देश्य से आये कि उन्हें आगे जगह मिलेगी, लेकिन जब उन्हें बताया गया कि इस स्थान पर एक कदम के लिये 51 हजार तक रुपये देने पड़ेंगे तब उन्हें बहुत निराशा और गुस्सा आया। जमशेदपुर के दानवीरों और समाजसेवियों के लिये आयोजन का यह फंडा एक बड़ा कलंक दिख रहा है। आयोजकों ने सारी व्यवस्था गुपचुप क्यों रखी है और समाज के प्रतिनिधियों का सहयोग क्यों नहीं लिया है, यह शंका पैदा कर रहा है कि खर्च दिखाकर वसूली का खेल खेला जाएगा। एक अनुमान के तौर पर नकद खर्च, टेंट और बाबा की टीम का तथा व्यासपीठ, स्टेज की सज्जा ही दिखी है जो बमुश्किल एक से सवा करोड़ होगी लेकिन वसूली का जो फंडा बनाया गया है वह उससे कई गुणा अधिक होगा। त्रिकालदर्शी सेवा समिति में मुख्य कर्ता धर्ता रंजीता वर्मा, उनकी बहन और बहनोई बताये जाते हैं। स्वयंसेवकों तक को अब परेशानी हो रही है कि वे क्या जवाब दें। चमकता आईना और न्यू इस्पात मेंल में अव्यवस्था की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद प्रशासन हरकत में आया। चांडिल एसडीओ ने सुबह निरीक्षणकिया। डीटीओ ने शाम को जोबो में 12 से 6 का आदेश जाती किया। वन विभाग ने वनभूमि पर की गई छेड़छाड़ और अनधिकृत बोरिंग की जांच शुरु की। वन विभाग द्वारा बिना बाबा के आयोजन का आकलन किये वहां अनुमति कैसे दी गई, जिसकेआधार पर प्रशासन ने अपनी अनुमति प्रदान की। प्रशासन अब पल्ला झाड़ रहा है कि चूंकि वन विभाग से् अनुमति प्राप्त है तो कार्यक्रम के भविष्य की जिम्मेदारी वन विभाग कीहोगी। विधि व्यवस्था पर जो रिस्क लिया जा रहा है, वह समझ से परे है। अब सचमुच कार्यक्रम शांति और सुरक्षित ढंग से पूरा हो जाए तो बाबा का ही सहारा माना जाएगा।
वसूली का एक से एक हथकंडा
स्थल पर वसूली का एक से एक हथकंडा है। यह पता चला है कि वहां 10 स्टाल बनाये गये हैं। एक स्टाल की कीमत 50 हजार रुपये रखी गई है। 50 हजार देकर पांच दिन के मेला में दुकानदार चाहे जितनी कमार्ई कर ले।
उधर आयोजन मंडली को लेकर लगातार विवाद की खबरें आ रही है. इस वजह से कई लोगों ने अपना हाथ खींच लिया है. आयोजन मंडल की कमान पूरी तरीके से रंजीता वर्मा ही संभाल रही हैं. मिली जानकारी के अनुसार पंडाल निर्माण पर 45 लाख रु. खर्च होने की बात कही जा रही है, मगर भुगतान 24 लाख का ही किया गया है. आयोजन के लिये हर घर से चंदा संग्रहित किया जा रहा है, लेकिन इसके हिसाब किताब को लेकर कोई पारदर्शिता नहीं है. पंडाल, बाबा और सजावट पर में होनेवाले खर्च को लेकर सवा से डेढ़ करोड़ रुपये तक का होने का अनुमान है.