चांडिल : भारत में लोग विविधता संरक्षण और संवर्धन के लिए एक से बढ़ कर एक मिसाल प्रस्तुत करते हैं। ऐसे ही उद्देश्य लेकर पश्चिम बंगाल के हावड़ा निवासी अविनाश दत्त प्रकृति के सरंक्षण का संदेश देने के लिए पश्चिम बंगाल, झारखंड व ओड़िशा साईकिल से भ्रमण कर रहे हैं। चांडिल पहुंचने पर अविनाश दत्त ने कहा कि प्रकृति एक प्राकृतिक पर्यावरण है जो हमारे आसपास है, हमारा ध्यान देती है और हर पल हमारा पालन-पोषण करती है। ये हमारे चारों तरफ एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करती है जो हमें नुकसान से बचाती है। हवा, पानी, जमीन, आग, आकाश आदि जैसी प्रकृति के बिना हमलोग धरती पर जीवित नहीं रह सकते हैं। प्रकृति हमारे आस-पास कई रुपों में विद्यमान है जैसे पेड़, जंगल, जमीन, हवा, नदी, बारिश, तालाब, मौसम, वातावरण, पहाड़, पठार, रेगिस्तान आदि। कुदरत का हर रुप बहुत शक्तिशाली है जो हमारा पालन पोषण करने के साथ ही नाश करने की क्षमता भी रखता है। उन्होंने कहा कि अगर हमें हमेशा खुश और स्वस्थ रहना है तो हमें स्वार्थी और गलत कार्यों को रोकने के साथ-साथ अपने ग्रह को बचाना होगा और इस सुंदर प्रकृति को अपने लिये बेहतर करना होगा। पारिस्थितिकीय तंत्र को संतुलित करने के लिये हमें पेङों और जंगलो की कटाई रोकनी होगी, ऊर्जा और जल का संरक्षण करना होगा आदि। प्रकृति के असली उपभोक्ता हम है तो हमें ही इसे सरंक्षण और संवर्धन करने की आवश्यकता है।
संस्कृति ही किसी भी देश के नागरिक का है पहचान : आर्या गुप्ता
झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत जैना मोड़ निवासी आर्या गुप्ता झारखंडी संस्कृति के संरक्षण का संदेश देने फ्लाइंग आर्या 15 मिशन के तहत संपूर्ण झारखंड का पदयात्रा कर रहे हैं। इस दौरान वे शनिवार को चांडिल के राष्ट्रीय राजमार्ग 33 से होते हुए पूर्वी सिंहभूम की ओर गए। जाने के पूर्व एक मुलाकात में आर्या गुप्ता ने बताया झारखंड का संस्कृति काफी धनी व समृद्धशाली है। हमारे संस्कृति को संरक्षण, संवर्धन और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। हमारे समृद्धशाली संस्कृति ही हमारी पहचान है और इससे विमुख नहीं होना चाहिए।
आर्या गुप्ता ने कहा कि सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मनुष्य केवल भौतिक परिस्थितियों में सुधार करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाता है। वह भोजन से ही नहीं जीता, शरीर के साथ मन और आत्मा भी है। भौतिक उन्नति से शरीर की भूख मिट सकती है, किन्तु इसके बावजूद मन और आत्मा तो अतृप्त ही बने रहते हैं। इन्हें सन्तुष्ट करने के लिए मनुष्य अपना जो विकास और उन्नति करता है, उसे संस्कृति कहते हैं। मनुष्य की जिज्ञासा का परिणाम धर्म और दर्शन होते हैं। सौन्दर्य की खोज करते हुए वह संगीत, साहित्य, मूर्ति, चित्र और वास्तु आदि अनेक कलाओं को उन्नत करता है। सुखपूर्वक निवास के लिए सामाजिक और राजनीतिक संघटनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक सम्यक् कृति संस्कृति का अंग बनती है। इनमें प्रधान रूप से धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान-विज्ञानों और कलाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं और प्रथाओं का समावेश होता है।