झारखंड में होने जा रहे विधान सभा चुनाव के पहले चरण में 13 नवंबर को होने जा रहे हैं मतदान के लिए कल 30 नवंबर नाम वापसी का आखिरी दिन है। इसके बाद प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह आवंटित किए जाएंगे। कोल्हान की सभी 14 सीटों पर कल सबकी नजर खास तौर पर उन बागी प्रत्याशियों पर टिकी रहेगी जो किसी में किसी वजह से अपनी पार्टी से नाराज होकर चुनावी मैदान में हैं ।इस बार भारतीय जनता पार्टी के कुछ ऐसे बागी प्रत्याशी खास तौर पर जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिम विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में है जिन्हें लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। जमशेदपुर पूर्वी से शिव शंकर सिंह और राज कुमार सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में डटे हुए हैं ।हालांकि पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष राजकुमार सिंह निर्दलीय पर्चा भरने के बाद उस तरह से सक्रिय नहीं दिख रहे जैसा कि दूसरे प्रत्यासी हैं। इसलिए कल नाम वापसी के आखिरी दिन जमशेदपुर पूर्वी पर सबकी नजर है। उड़ीसा के राज्यपाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तथा जमशेदपुर पूर्वी से पांच बार के विधायक रहे रघुवर दास की पुत्रवधू पूर्णिमा साहू को प्रत्याशी बनाये जाने के बाद से ही भाजपा खेल में बड़ी खलबली है।इसी के बाद जमशेदपुर पूर्वी से दो भाजपाइयों ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन कर अपना विरोध एक तरह से दर्ज भी करा चुके हैं। इस तरह जमशेदपुर पश्चिम सीट जदयू कोटे में जाने के बाद वहां लंबे समय से सक्रिय रहने वाले भाजपा नेता विकास सिंह ने भी ताल ठोक दी है। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन कर वे कांग्रेस प्रत्याशी बन्ना गुप्ता और गठबंधन के प्रत्याशी सरयू राय दोनों पर हमलावर हंै। जमशेदपुर पश्चिम सीट जदयू के कोटे में जाने के बाद से पूर्व डीआईजी राजीव रंजन सिंह में तुरंत भाजपा से नाता तोड़ लिया । वे भी टिकट की आस में थे।
करीब तीन दशकों के बाद जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिम में इस बार कुछ ऐसा समीकरण बना था कि दोनो ही सीटों पर दर्जनों दावेरार भाजपा में बन गये।1995 के बाद रघुवर दास के कारण फिर किसी ने दावेदारी प्रस्तुत करने की सोची तक नहीं। कुछ ऐसा ही हाल जमशेदपुर पश्चिम का रहा। पहले एमपी सिंह और फिर सरयू राय के कारण यहां भाजपपा के दावेदार मन मसोसकर ही रहे। यही कारण है कि जब इतने सालों के बाद शहर की इन दोनो ही हाई प्रोफाइल मानी जाने वाली सीटों पर मौका मिला तो बड़ी संख्या में भाजपाई दावेदार हो गये। इस साल हुए रायशुमारी में कई नाम सामने आये भी थे।
सरयू राय के जदयू में शामिल होने के बाद कई दिनों तक सस्पेंश बना रहा कि वे किस सीट से लड़ेंगे। जब यह स्पष्ट हो गया कि वे जमशेदपुर पश्चिम से नामांकन करेंगे तो पूर्वी के दावेदारों की बांछें खिल गईं लेकिन पश्चिम के निराश हो गये। इसी निराशा में पूर्व डीआईजी राजीव रंजन सिंह ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया। लंबे अंतराल के बाद पहली बार बड़े नामों के मैदान में नहीं होने के कारण इन दोनो ही सीटों पर दिलचस्पी बढ भी गई । इन दोनो सीटों पर बड़े नाम के कारण सालों तक किसी ने अपने दावा को आगे करने का साहस नहीं किया। इस बार मैदान खुला था और सभी प्रत्याशियों की दबी आकांक्षाएं उबाल मारने लगीं । इसी का नतीजा है कि दो-दो बागी पूर्वी विधानसभा सीट से निर्दलीय नामांकन कर मैदान में है। पूर्णिमा दास के नाम की घोषणा के साथ भाजपाइयों में इसे लेकर जबरदस्त प्रतिक्रिया भी रही। अब देखना यह है कि वह प्रतिक्रिया अधिक प्रखर हुई है या विरोध के स्वर नरम पड़ रहे हैं। यही कारण है कि कल का दिन काफी महत्वपूर्ण हो सकता है ।यदि भाजपा के किसी भी बागी उम्मीदवार ने नाम वापस नहीं लिया तो लंबे समय के बाद ऐसा दौर देखने को जमशेदपुर महानगर भाजपा में देखने को मिलेगा । शिव शंकर सिंह जिस तरीके से रघुवर दास पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए हमलावर हैं इस बात की संभावना कम ही है कि वह पीछे हटने वाले हैं। जमशेदपुर पूवी से एक अन्य युवा चेहरा अमित शर्मा भी मैदान में हैं ।वह सरयू राय की पार्टी भारतीय जनतांत्रिक मोर्चा के युवा चेहरा रहे हैं । भारतीय जन तांत्रिक मोर्चा का जदयू में विलय नहीं हुआ है और यही कारण है कि केवल यह मोर्चा अभी भी अस्तित्व में है और अमित शर्मा के मैदान में आने से इस मोर्चा का उनको साथ मिल सकता है। हलांकि बताया जाता है कि उन पर नाम वापस लेने को लेकर काफी दबाव है। हलांकि वे क्षेत्र में सक्रिय दिख रहे हैं ।यह सारे उम्मीदवार यदि मैदान में रह गए तो भाजपा का कितना समीकरण बिगाड़ेंगे यह देखना दिलचस्प रहेगा और यदि इनमें से कोई भी मान जाता है तो फिर यह भाजपा के लिये कितना फायदेमंद होगा, यह भी देखना होगा।
दूसरी और कांग्रेसी खेमा जो नामांकन के दिन 24 अक्टूबर को टुकड़ों -टुकड़ों में बंटा दिख रहा था, वहां खास तौर पर जमशेदपुर पूर्वी में एक मंच पर लाने की तैयारी शुरू हो गई है। जो लोग अब तक कांग्रेस प्रत्याशी डॉक्टर अजय कुमार से कटे- कटे चल रहे थे अब वह उनके साथ मंच साझा कर रहे हैं ।कांग्रेस जिला अध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे, पूर्व जिला अध्यक्ष विजय खां जैसे नाम इनमें प्रमुख है। इसका मतलब हुआ कि दोनों ही प्रमुख दलों में सबकुछ सामान्य नहीं है। कांग्रेस में सामान्य करने का प्रयास दिख रहा है और बीजेपी में भी ऐसा ही हो रहा है। मान मनौवन्ल का दौर दोनो ही ओर जारी है।