15 लाख का इनामी नक्सली मोछू अपने दस्ते के साथ गुवा के जंगलों में देखा गया

गुवा संवाददाता। भाकपा माओवादी संगठन का कुख्यात 15 लाख रुपये का इनामी नक्सली मेहनत उर्फ विभीषण उर्फ कुम्बा मुर्मू उर्फ मोछू अपने मारक दस्ते के दर्जनों हथियारबंद सदस्यों के साथ लिपुंगा के जंगल में घूम रहा है। मोछू को 21 और 22 अप्रैल की मध्य रात्रि गुवा थाना अन्तर्गत लिपुंगा गांव क्षेत्र के जंगलों में देखा गया। इस कुख्यात नक्सली के भ्रमणशील होने की खबर के बाद लिपुंगा, ठकुरा, राईका, कंतोड़िया आदि अन्य गांवों के ग्रामीण दहशत में हैं। हालांकि उक्त गांव क्षेत्र प्रारम्भ से नक्सल प्रभावित रहा है तथा लिपुंगा गांव की कुछ महिला व पुरुष भी पूर्व से नक्सली दस्ते में रहे हैं। इसमें कुछ वर्ष पूर्व पुलिस मुठभेड़ में लिपुंगा गांव की एक महिला नक्सली सुजाता उर्फ सुनिका भी अन्य महिला नक्सली शांति उर्फ मांदुरी पूर्ति (काशीजोड़ा, गोईलकेरा), प्रियंका (काटम्बा, गोईलकेरा) के साथ मारी गई थी। लेकिन कुख्यात नक्सली मोछू गुवा व बड़ाजामदा थाना से काफी करीब के गांवों में भ्रमणशील क्यों है? कहीं इस दस्ते का मकसद क्षेत्र में कोई बड़ी घटना को अंजाम देने अथवा पुलिस को गुमराह अथवा ध्यान भटकाकर किसी दूसरे थाना क्षेत्रों में बड़ी घटना को अंजाम देने का तो नहीं है। लिपुंगा की मृत महिला नक्सली सुजाता के परिजनों से मिलने आदि का इरादा तो नहीं है। 21 अप्रैल को अगरवां जंगल में एक संदिग्ध नेपाली को ग्रामीणों ने बंधक बनाकर पिटाई की थी। इसके बारे में स्पष्ट नहीं है कि वह संदिग्ध कौन है। गुवा पुलिस सेल अस्पताल गुवा में उसका इलाज करवा रही है। वह अभी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। हालांकि क्षेत्र की पुलिस भी इस दस्ते की सक्रियता की खबर पाकर सतर्क हो गई है। पुलिस उनकी गतिविधियों पर पैनी नजर रख रही है। लिपुंगा गांव गुवा थाना से काफी नजदीक है। लिपुंगा गांव कारो नदी के बिल्कुल तट पर घने जंगल में बसा है।इस नदी के एक किनारे पर सारंडा क्षेत्र में गुवा तथा दूसरे किनारे पर लिपुंगा, ठाकुरा आदि गांव है। नक्सलियों का गढ़ वर्तमान में टोंटो व गोईलकेरा थाना क्षेत्र के दर्जनों गांव व जंगल-पहाड़ हैं।इन जंगलों से सटा राईका आदि क्षेत्र भी नक्सलियों की शरणस्थली व कॉरिडोर है। राईका से काफी कम दूरी पर लिपुंगा गांव है।इसलिये नक्सलियों का यहां हमेशा आना-जाना लगा रहता है। नक्सली कारो नदी पार कर कोल्हान व चाईबासा पश्चिम के जंगलों से सारंडा जंगल में प्रवेश करते रहते हैं।

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