उपासना मंत्र : वन्दे वांछित लाभाय चन्दार्धकृतशेखराम वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्.
शैलपुत्री नवदुर्गा के पहले रूप को शैलपुत्री कहा गया है इस रूप में मां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं. नंदी नामक वृषभ पर सवार ‘शैलपुत्री’ के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है. शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया. इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है. दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके.