मोदी की जनसभा 15 को जमशेदपुर में : कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना! झामुमो-कांग्रेस के आधा दर्जन विधायक मार सकते हैं पलटी, टिकी सबकी निगाहें

जमशेदपुर, 7 सितंबर (रिपोर्टर) : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 15 सितंबर के जमशेदपुर कार्यक्रम को लेकर राजनीतिक महकमे में सरगर्मी बढ़ गई है. प्रधानमंत्री का टाटानगर स्टेशन में वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाए जाने के बाद गोपाल मैदान में जनसभा होना तय है. अभी कार्यक्रम को लेकर कोई समय की घोषणा नहीं की गई है, मगर इस बात की संभावना है कि पूर्वाह्न में ही कार्यक्रम होगा. इस कार्यक्रम को आनेवाले दिनों में हो जाने रहे झारखंड विधानसभा चुनाव से जोडक़र भी देखा जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर कितनी सक्रिय है, यह अब साफ दिख रहा है. इस बात की संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री के मंच पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के करीब आधा दर्जन विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं. इसमें कोल्हान के भी कुछ विधायकों का नाम सुर्खियों में है.
बताया जाता है कि पिछले दिनों जब चंपाई सोरेन पहली बार अचानक दिल्ली गये थे तो उस समय भी इन विधायकों का भी चंपाई सोरेन के साथ जाना तय था, मगर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इसकी भनक लग गई और वह ‘ऑपरेशन’ फेल हो गया. मगर चर्चा है कि 15 सितंबर को उक्त कार्यक्रम को अमलीजामा पहना दिया जाएगा. हालांकि जिन विधायकों का नाम उस दौरान चर्चा में आया था, उन सभी ने बयान जारी कर ऐसी किसी भी संभावना को निराधार बताया था. बताया जाता है कि हाल के दिनों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की महत्वपूर्ण बैठकों से ये विधायक अनुपस्थित रह रहे हैं. बताया जाता है कि इस बार के ‘ऑपरेशन लोटस’ में झारखंड के सह प्रभारी सह असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्व सरमा के साथ चंपाई सोरेन की भूमिका अहम है. इसमें झारखंड के अन्य किसी भी भाजपाई की सक्रियता नहीं दिख रही है. कुछ कांग्रेसी विधायकों को भी कमजोर कड़ी के रुप में देखा जा रहा है. चंपाई सोरेन फिलहाल असम के दौरे पर है. असम के मुख्यमंत्री ने उन्हें तीर्थस्थलों के भ्रमण के लिये सपरिवार आमंत्रित किया है. चंपाई सोरेन रक्षाबंधन के समय जब अचानक दिल्ली गये थे तो उस समय भी उन्होंने दौरे को पारिवारिक बताया था. मगर उसके बाद क्या राजनीतिक बदलाव आया, वह स्पष्ट है. चंपाई सोरेन के वर्तमान असम दौरे को भी उसी कड़ी में देखा जा रहा है. भगवान के दर्शन के साथ-साथ भोग प्रसाद एवं राजनीतिक खिचड़ी का भी स्वाद चखा जा रहा है.
पिछले 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था. सभी 14 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा था. इस वजह से भाजपा कोल्हान पर विशेष तौर पर नजर रखे हुए और प्रधानमंत्री के उक्त कार्यक्रम की गंभीरता को इस बात से भी समझा जा सकता है. प्रधानमंत्री टाटानगर को दो वंदे भारत ट्रेन का तोहफा दे रहे हैं, उसमें एक बहुप्रतीक्षित टाटा-पटना वंदे भारत है, मगर टाटा-बरहमपुर वंदे भारत का रुट चाईबासा होकर तय किया जाना भी एक बड़ा राजनीतिक संदेश है. इसका राजनीतिक लाभ भी लेने का प्रयास होगा. अबतक उपेक्षित रखे जानेवाले कोल्हान पर रेलवे और केन्द्र सरकार की इतनी मेहरबानी यूं ही नहीं हुई है. जो चाईबासा एक पैसेंजर ट्रेन के लिये सालों से तरस रहा है, वहां से वंदे भारत का होकर गुजरना इसी के परिणाम के तौर पर देखा जा रहा है.

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