प्रयाग राज 16 जनवरी
प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार 45 करोड़ श्रद्धालुओं के पवित्र संगम में स्नान करने का अनुमान है. बीते दो दिनों की ही बात करें तो पहले दो दिन में ही 5 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु कुंभ मेले में आ चुके हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. लेकिन कुंभ में आने वाली इतनी भारी भीड़ की गिनती आखिर कैसे होती है. साथ ही यह सिर्फ अनुमान है या फिर इसके पीछे किसी सटीक मैथड का भी इस्तेमाल किया जाता है. तो आज आपको बताते हैं कि आखिर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन कहे जाने वाले कुंभ में लोगों की गिनती करने के लिए क्या-क्या तकनीक अपनाई जाती रही हैं.
कैसे हो रही भीड़ की गिनती
महाकुंभ 2025 की बात करें तो इस बार का कुंभ बेहद खास है क्योंकि हर 12 साल बाद लगने वाले इस कुंभ में 144 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है, क्योंकि अब तक 12 कुंभ पूरे हो चुके हैं. इसी वजह से इसे महाकुंभ कहा जा रहा है और इसमें आने वाला श्रद्धालुओं की संख्या पहले के किसी भी कुंभ से ज्यादा है. ऐसे में कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती के लिए यूपी सरकार ने हाईटेक उपकरणों का सहारा लिया है और इस बार एआई बेस्ड कैमरे की मदद से लोगों की गिनती की जा रही है.
सरकार ने महाकुंभ 2025 में आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती करने के लिए एक स्पेशल टीम बनाई है और इस टीम का नाम है क्राउड असेसमेंट टीम. यह टीम रियल टाइम बेसिस पर महाकुंभ में आने वाले लोगों की गिनती कर रही है और इसके लिए ऐसे खास कैमरों की मदद ली जा रही है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से लोगों की गिनती कर रहे हैं. लोगों को स्कैन कर रहे हैं, यह कैमरे महाकुंभ में आने वाले लोगों के चेहरों को स्कैन करते हैं और वहां मौजूद भीड़ के हिसाब से यह अनुमान लगाते हैं कि कितने घंटे में कितने लाख लोग महाकुंभ के मेला क्षेत्र में आए हैं. इस समय महाकुंभ के पूरे मेला क्षेत्र में ऐसे 1800 कैमरे लगे हुए हैं. इसके अलावा यही टीम लोगों की गिनती करने के लिए ड्रोन की मदद ले रही है जिनसे एक निश्चित क्षेत्र में भीड़ के घनत्व को मापा जाता है और यह पता लगाया जाता है कि एक दिन में कितने लोग महाकुंभ के आयोजन में शामिल हो रहे हैं. कितने लोगों ने संगम में स्नान किया है.
ड्रोन और ्रएआई तकनीक की मदद
महाकुंभ में आने वाली भीड़ की तस्वीरों से लोगों का अंदाजा लगाना मुश्किल है. ऐसे में सटीक अनुमान के लिए ्रढ्ढ बेस्ड हाईटेक कैमरे लगाए गए हैं, वो 360 डिग्री कैमरे हैं. इस तरह के कैमरे पूरे मेला क्षेत्र में लगे हुए हैं, जिनमें 1100 फिक्स्ड कैमरे हैं और करीब 744 अस्थाई कैमरे हैं. पूरे मिला क्षेत्र में लगे इन कैमरों के जरिए ही क्राउड की गिनती की जा रही है. साथ ही ड्रोन कैमरे डेंसिटी प्रति स्क्वायर मीटर को आंकते हैं और कुल एरिया के हिसाब से लोगों को कैलकुलेट करते हैं.
इसके अलावा भी अन्य तरीकों से भीड़ की गिनती की जा रही है. एक है पीपल फ्लो… कितने लोग जो किसी रूट से आ रहे हैं और मेला क्षेत्र में प्रवेश करने पर उनको गिना जा रहा है. किसी एरिया में क्राउड डेंसिटी क्या है जो सेंसिटिव एरियाज हैं, जो क्रिटिकल एरियाज है, उन पर भीड़ का घनत्व कितना है, वो इन कैमरों के माध्यम से आंका जा रहा है. इसके अलावा एक ऐप के जरिए लोगों के पास मौजूद मोबाइल फोन के औसत आंकड़े की गिनती की जा रही है. सभी डेटा क्राउड असेसमेंट टीम को भेजा जा रहा है, जो लोगों की गिनती के फाइनल आंकड़े मुहैया करा रही है.
सैटेलाइट की मदद से श्रद्धालुओं का डेटा
इसके पहले कुंभ आने वाली ट्रेन, बसों और नावों की गिनती के आधार पर लोगों का डेटा जमा किया जाता था. साथ ही मेला क्षेत्र में बने हुए साधु-संतों के शिवरों में आने वाले लोगों का आंकड़ा जुटाकर उनकी गिनती की जाती है. यही नहीं, शहर की सडक़ों पर मौजूद भीड़ का डेटा जमा करके भी लोगों की गिनती की जाती है. हालांकि इस बार भी ट्रेन और बसों की संख्या को ट्रैक किया जा रहा है.
साल 2013 यानी पिछले कुंभ से पहले तक लोगों की गिनती प्रशासन की ओर से जारी रिपोर्ट से होती थी और अधिकारियों की ओर से जारी डेटा को ही फाइनल माना जाता था. लेकिन अब इसके लिए अलग-अलग स्तरों पर तकनीक की मदद ली जा रही है, ताकि ज्यादा से ज्यादा सटीक आंकड़े जुटाए जा सकें. पहले सैटेलाइट के जरिए भी कुंभ में आने वाले लोगों को गिना जाता था, लेकिन उसकी खामी यह थी कि एक ही व्यक्ति अगर बार-बार मेला क्षेत्र में आया तो हर बार उसकी गिनती कर ली जाती थी, ऐसे में आंकड़े सटीक नहीं जुट पाते थे.
पहले हेड काउंट से होती थी गणना
जानकारी के मुताबिक 19वीं सदी से कुंभ आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती करने का चलन शुरू हुआ था. अंग्रेजी हुकूमत में तो कुंभ की ओर आने वाले अलग-अलग रास्तों पर बैरिकेड लगाकर एक-एक कर लोगों की गिनती की जाती थी. साथ ही कुंभ आने वाले ट्रेनों की टिकटों की गिनती करके भी भीड़ का अनुमान लगाया जाता था. लेकिन तब भीड़ लाखों की संख्या में आती थी जो अब करोड़ों में तब्दील हो चुकी है. ऐसे में गणना के तरीके भी समय के साथ आधुनिक बनाए गए हैं.
हालांकि फिर भी जो भी आंकड़े आते हैं, वह एकदम सटीक हों, ये कह पाना मुश्किल ही होता है. फेस स्कैन के जरिए किसी व्यक्ति की रिपीट काउंटिंग से भले ही बचा जा सकता हो, फिर भी महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं का एकदम सटीक डेटा जुटाना लगभग नामुमकिन है. यही वजह है कि तकनीक का सहारा लेकर कुंभ आने वाले लोगों का एक अनुमान ही लगाया जा सकता है.