केन्द्र की मोदी सरकार के सामने पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस के मूल्य में हुई बेतहाशा बढ़ोतरी के बाद विपक्ष के हमलावर तेवर ने मुश्किले खड़ी करनी शुरु कर दी है। संसद के बजट सत्र के हाल की कार्यवाईयां इसी हंगामे की भेंट चढ़ रहीं हैं। लम्बे अरसा से केन्द्र की सरकार को घेरने की कोशिश में लगे विपक्ष को ऐसा मुद्दा हाथ लगा है जिसे वह गंवाना नहीं चाहता। इसके पहले जिन भी मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की गई वे कारगर नहीं रहे, या उलटा पड़ गये। बालाकोट हमला हो या कोरोना वैक्सिन इसे लेकर विपक्ष का जो भी स्टैण्ड रहा वह लोगों को पसंद नहीं आया और विपक्ष को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। ऐसा लगा कि इनको जबर्दस्ती मुद्दा बनाया जा रहा है। लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों की रिकार्डतोड़ कीमतों ने आम जनमानस को परेशान कर रखा है और विपक्ष इसे मुद्दा बनाकर सरकार को घेरने में लगा है। केन्द्र सरकार की ओर से कीमत बढ़ोतरी को लेकर जो भी तर्क गढ़े जा रहे है वह आम लोगों के गले नहीं उतर रहे। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि विपक्ष इसे कितना बड़ा मुद्दा बताता है। केन्द्र सरकार और भाजपा ध्यान भटकाने में माहिर है। वह ऐसे कदम उठा लेती है जिससे आम लोगों का ध्यान मुख्य मुद्दा से हट जाता है। यूपीए के समय साल 2014 में भाजपा ने महंगाई को बड़ा मुद्दा बनाया था और तब की मनमोहन सरकार या कांग्रेस खुद को बचाव नहीं कर पाई। आज सत्ताधारी दल कीओर से पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्धि को लेकर अजीबोगरीब तर्क गढ़े जा रहे है। रसोई गैस की कीमत देखते-देखते 900 के करीब पहुंच गई। पहले जब रसोई गैस की कीमत 400-500 रुपये थी तो उपभोक्ताओं के खाते में सब्सिडी के 300 रुपये तक आ जाया करते थे। अब जबकि रसोई गैस की कीमत 900 रुपये के करीब पहुंच चुकी है तो सब्सिडी के 30-31 रुपये खाते में आ रहे है। जब उपभोक्ताओं के खाते में सब्सिडी के 200 रूपये तक आते थे तो प्रधानमंत्री वैसे सम्पन्न लोगों से सब्सिडी छोडऩे की अपील करते थे। ‘गिव-अप’ के विज्ञापनों के जरिये उनके सब्सिडी छोडऩे को प्रेरित किया जाता था। आज हालात यह है कि रसोई गैस के मामले में पूरा देश ‘सम्पन्न’ हो चुका है। अब सब्सिडी केवल दिखावे की रह गई है। जो उपभोक्ता करीब 900 रुपये रसोई गैस का खर्च कर रहा है वह 30 रूपये की सब्सिडी बैंक खाते में आई या नहीं इसे अब चेक भी नहीं करता। पिछले दो महीनों में रसोई गैस की कीमत जितना भागी है उसके बाद तो अब सब्सिडी का कोई मतलब नजर नहीं आता। उससे ज्यादा खर्च तो शायद सब्सिडी की रकम उपभोक्ताओं के खाते तक पहुंचाने में खर्च हो जाती होगी।
हलांकि अभी चुनावी मौसम में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों पर अचानक ब्रेक लग गया है। जो सरकार कल तक कहती थी कि पेट्रोल-डीजल की कीमत पर उसका कोई नियंत्रण नहीं,यह अंतर्राष्ट्रीय बाजार तय करते है, आज वह अपना ‘पावर’ दिखाने लगी है।