संदर्भः लव-जिहाद पर अंकुश के लिए बने मप्र धर्म-स्वातंत्र्य कानून
आखिकार, मध्यप्रदेश सरकार भी लव-जिहाद को रोकने के लिए मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम-2020 अध्यादेश के जरिए ले आई। छह माह के भीतर इसे स्थाई कानून का रूप दे दिया जाएगा। यह कानून उत्तर-प्रदेश की तुलना में कठोर है। इसके तहत यदि कोई स्वेच्छा से भी धर्म परिवर्तन कराना चाहता है तो यह कार्य कराने वाले धार्मिक व्यक्ति (पुजारी, मौलवी, पादरी या कोई धर्मगुरू) को 60 दिन पहले जिला-दंडाधिकारी को सूचना देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर न्यूनतम तीन और अधिकतम पांच साल की सजा आरोपियों को मिल सकती है। पचास हजार का जुर्माना भी भरना होगा। इसमें एक बड़ा प्रावधान यह भी किया गया है कि कानून का उल्लंघन कर की गई शादी को तो शून्य माना ही जाएगा, धर्म-परिवर्तन भी आप से आप शून्य हो जाएगा। अर्थात, जन्म के समय माता-पिता का जो धर्म था, वही माना जाएगा। इस कानून की एक विलक्षण बात यह है कि धर्म-परिवर्तन करने वाला व्यक्ति यदि अपने पूर्व धर्म में घर वापसी करता है तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा। धर्म-परिवर्तन की शिकायत पीड़ित व्यक्ति के साथ उसके माता-पिता, भाई-बहन के अलावा अन्य रिश्तेदार और अभिभावक भी कर सकते हैं। इस कानून का लाभ उन बेटियों को सबसे ज्यादा मिलेगा, जिन्हें नादानी में बरगलाकर जबरन दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ विवाह के बंधन में बांध दिया जाता है।
वैसे भी धर्मांतरण कर किया विवाह न तो अंतरधार्मिक विवाह है और न ही प्रेम विवाह ? इसके उलट ऐसे विवाह आतंकवाद के प्रच्छन्न रूप में भी सामने आ रहे हैं। इसलिए इनसे निपटना किसी भी संवेदनशील सरकार के लिए आवश्यक है। धर्मांतरण को लेकर दुनिया में सबसे बेहतर कानून म्यांमार का है। वहां वर्ष 2000 मंे ही इस सिलसिले में कठोर कानून अस्तित्व में आ गया था। यहां धर्म परिवर्तन पर ही प्रतिबंध है। इसमें दो अलग-अलग धर्म के स्त्री-पुरूष बिना धर्म परिवर्तन किए विवाह कर सकते हैं। इसमें शादी के बाद होने वाली संतान को धर्म अपनी मर्जी से चुनने का अधिकार है। भिन्न धर्म के पति-पत्नी को अपनी-अपनी सामाजिक मान्यताओं के अनुसार रीति-रिवाज के पालन की भी छूट है। सही मायनों में यही धार्मिक स्वतंत्रता, अंतर धार्मिकता और प्रेम विवाह है। क्योंकि जब भिन्न धर्मावलंबी प्रेम का परवान चढकर वैवाहिक गठबंधन की दहलीज पर पैर रखते हैं, तब उनके मनोभाव परस्पर केवल प्रेम की महीन डोर से जुडे होते हैं, न कि किसी धार्मिक मान्यता की बाध्यता से ? हिंदु, सिख, जैन व बौद्ध युगल यथास्थिति में रहते हुए ही विवाह के बंधन में बंध जाते हैं। किंतु इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। वहां यदि लडकी हिंदू है तो उसे हर हाल में इस्लाम की स्वीकारोक्ति के बाद ही निकाह की अनुमति मिलती है। इसलिए ऐसे विवाह को हम अंतरधार्मिक विवाह कहकर उदारता भी नहींं दिखा सकते ? दरअसल अंतरधार्मिक विवाह वह कहलाएगा, जिसमें विवाह करने वाले दंपत्ति की स्वतंत्र धार्मिकता प्रचलन में रहे और वह परिवार समेत समाज में भी मंजूर हो ? लेकिन मुसलमान और इसाईयों में ऐसा देखने में नहीं आता है।
खासतौर से हिंदु मुस्लिमों के बीच होने वाले विवाह प्रेम की पवित्रता से जुडे होते, तब तो इन्हें ठीक माना जा सकता था, किंतु अब इनमें धर्म परिवर्तन का “ा्डयंत्र, प्रलोभन और बहला फुसलाकर जबरन शादी कर लेने के मामले सामने आ रहे हैं। इसलिए हिंदु समाज ही नहीं केरल की कैथोलिक चर्च भी ऐसे प्रेम को लव जिहाद कहकर ईसाई समाज को चेतावनी दे रहा है। 19 जनवरी 2020 को सर्वोच्च सिरो मालाबार कैथोलिक चर्च ने प्रति रविवार को होने वाली प्रार्थना सभा में एक परिपत्र जारी कर कहा कि ईसाई लडकियों को प्यार के जाल में फंसाकर उनका धर्मांतरण कर उन्हें आतंकी संगठन इस्लामी स्टेट (आईएस) का सदस्य तक बनाया जा रहा है।
इसी तरह के मामलों के परिप्रेक्ष्य में 30 अक्टूबर 2020 को हलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा था, ‘विवाह से धर्म परिवर्तन का कोई सरोकार नहीं है। जब धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को जिस धर्म को वह अपनाने जा रहा है, उस धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में ही कोई जानकारी है और न उसकी आस्थाओं और मान्यताओं के प्रति कोई विश्वास है तो फिर धर्म परिवर्तन का क्या औचित्य ?’ दरअसल धर्म परिवर्तन के बाद विवाह करने वाले एक जोडे ने न्यायालय से संरक्षण की मांग की थी। न्यायामूर्ति एमसी त्रिपाठी ने 2014 के नूरजहां बेगम मामले का हवाला देकर इस याचिका को खारिज कर दिया था। ऐसी पांच याचिकाएं थीं, जिनमें न्यायालय से पूछा गया था कि क्या सिर्फ विवाह के लिए धर्म परिवर्तन हो सकता है ? इन मामलो में भोली-भाली हिंदू लडकियों ने मुस्लिम लडकों के बरगलाने पर इस्लाम कबूल कर लिया था। जबकि इन लडकियों को इस धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
स्ंाविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि कोई भी राज्य सरकार चाहे तो धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बना सकती है। इसमें जबरन धर्म बदलने और जबरन शादी करने को लेकर कानूनी प्रावधान हो सकते हैं। कोई भी व्यक्ति धर्म के प्रलोभन में आकर धर्म नहीं बदल सकता है। ओडीशा में 1967 से ही कपटपूर्वक धर्मांतरण पर प्रतिबंधित है। इस कानून के मुताबिक प्रलोभन, ताकत या किसी भी प्रकार से प्रताडित करके व्यक्ति का धर्मांतरण नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार से यदि धर्म परिवर्तन किया जाता है तो धर्मांतरण कराने वाले व्यक्ति को एक साल की सजा और 50 हजार के जुर्माने का प्रावधान है। 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विवाह केवल वैवाहिक लक्ष्यपूर्ति के लिए धर्म परिवर्तन करने की मंशा पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव प्रदेश सरकार को दिया था। दरअसल संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रविष्ठी पांच के तहत शादी और तालाक के मामले समवर्ती सूची में आते है, इस आधार पर केंद्र के साथ राज्यों को भी कानून बनाने का अधिकार है। इसलिए लव जिहाद के मामलों में राज्य सरकारें अध्यादेश या फिर विधानसभा के मध्ययम से नया कानून ला सकती हैं। अब यह कानून मध्यप्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश में भी अस्तित्व में आ गए हैं।
संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को है। इसके मुताबिक किसी भी धर्म के बालिग युवक-युवती विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी कर सकते है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद-25 में दिए गए अनेक अपवादों के अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर झूठा शपथ-पत्र देकर, उम्र या धर्म छिपाकर, स्वास्थ्य और अन्य मूल अधिकारों का उल्लंघन कर अथवा अन्य किसी भी प्रकार की गलत जानकारी देकर विवाह किया गया तो उसे न्यायालय शून्य घोषित कर सकती है। साथ ही आईपीसी की धारा 366 के तहत यदि युवती का अपहरण कर विवाह किया गया है तो 10 साल की सजा भी हो सकती है। शारीरिक शोषण के लिए की गई छलपूर्ण शादी के मामलों में ह्यूमन टैªफिकिंग का आरोप भी लग सकता है। वैवाहिक मामलों में आमतौर से लड़की ही कानूनी कार्यवाही के लिए अधिकृत है, लेकिन सीआरपीसी की धारा 198 के तहत परिजन भी न्यायालय या पुलिस से कार्यवाही की मांग कर सकते हैं। हालांकि इस नए कानून में परिजनों को शिकायत का अधिकार दे दिया गया है।
हमारे तथाकथित उदारवादी लोग धार्मिक स्वतंत्रता के बहाने कपटपूर्ण लव जिहाद को भी जायज ठहराने की कोशिश करते हैं। ऐसी इकतरफा पक्षधरता इस्लामिक एवं इसाई धर्मांधता को बढाने वाली है। जबकि इस्लामी लव जिहादी हिंदू स्त्री अस्मिता की जड़ पर प्रहार करते हुए उसके मन और शरीर से खिलवाड कर उसे मौत देने तक का काम कर रहे हैं। साफ है, धार्मिक स्वतंत्रता की ओट में जो प्रेम लव जिहाद के रूप में फलता है, वह हरेक प्रेम निश्चल और पवित्र नहीं होता। बहरहाल, धर्मनिरपेक्षता बहुसांस्कृतिक स्वरूप और अंतर धार्मिकता के बहाने लव जिहाद जैसी विकृति पर आवरण डालना देशहित में कतई नहीं है। जो राज्य सरकारें इस नाते कानून ला रही हैं, वे बेटियों का भविष्य सुरक्षित करने का कानूनी उपाय कर रही हैं।
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
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लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।