नाबालिगों से रेप और चुनाव बाद हिंसा पर सरकार के रवैये से कोर्ट नाराज
कोलकाता
कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ये माना कि बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा हुई। अदालत ने ममता सरकार को गलत ठहराते हुए कहा कि जब लोग मारे जा रहे थे और नाबालिगों से रेप हो रहा
था तो सरकार इसे नकार रही थी और वह गलत थी। हाईकोर्ट ने कहा कि हिंसा का खामियाजा भुगतने वाले लोगों के बीच बंगाल सरकार विश्वास का माहौल बनाने में नाकाम रही है।
हिंसा के दौरान बंगाल छोड़ने को मजबूर हुए लोगों ने शिकायत की थीं। इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की टीम बंगाल में जांच के लिए गई। NHRC ने कलकत्ता हाईकोर्ट में इस पर एक रिपोर्ट पेश की। इसके बाद ही अदालत ने बंगाल सरकार पर ये तल्ख टिप्पणियां की हैं।
बंगाल हिंसा पर हाईकोर्ट के 6 अहम कमेंट
1. विधानसभा चुनाव के बाद बंगाल में हिंसा हुई। इस मसले पर राज्य सरकार गलत पाई गई, क्योंकि पूरे समय वह लगातार इसे नकारती रही। हिंसा में कई लोग मारे गए। कई को यौन प्रताड़ना झेलनी
पड़ी और कई लोगों को गंभीर चोटें आई हैं। यहां तक कि नाबालिग लड़कियों को भी नहीं बख्शा गया। उनके साथ जघन्य तरीके से रेप किया गया। लोगों की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया गया। कई लोगों को
अपना घर और कइयों को प्रदेश छोड़कर पड़ोसी राज्यों में जाना पड़ा।
2. आज की तारीख तक राज्य सरकार ऐसा माहौल बनाने में नाकाम रही है, जिससे हिंसा झेलने वालों में विश्वास पैदा हो और वे अपने घरों को लौटकर आजीविका शुरू कर सकें।
3. जब कोर्ट ने इस मामले को उठाया तो जो केस रजिस्टर्ड किए गए थे, उनकी जांच लापरवाही से की गई। इतने जघन्य अपराधों के लिए अभी तक शायद ही कोई गिरफ्तारी हुई है। कई केस तो दर्ज ही
नहीं किए गए, जबकि पहली नजर में ही वो गंभीर अपराध नजर आ रहे थे। कई केसों में आरोपियों को जमानत दे दी गई है।
4. लोग इतने डर में जी रहे हैं कि जब तक कोर्ट ने ये मामला नहीं उठाया, तब तक कइयों ने तो शिकायत भी दर्ज नहीं कराई थी। रिपोर्ट में हैरान करने वाली बात सामने आई है, वह ये कि बंगाल सरकार
के अधिकारी कह रहे थे कि कोई शिकायत ही नहीं मिली है। जब शिकायत करने वालों को ये मौका दिया गया कि वे कानूनी तरीके से या फिर मानवाधिकार आयोग के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं तो अधिकारियों के पास शिकायतों का ढेर लग गया। लोग अपनी जिंदगी और संपत्ति को लेकर इतने डर हुए हैं कि वे अपनी पहचान भी उजागर करना नहीं चाहते हैं।
5. हिंसा की जांच करने के लिए बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कई अधिकारियों से सवाल किए गए, पर वे उनका जवाब नहीं दे पाए। ये दिखाता है कि बताने से ज्यादा छिपाया जा
रहा है। हिंसा में घायल हुए लोगों को इलाज में भी दिक्कत आ रही है। उन्हें बंगाल सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। कुछ लोगों को राशन भी नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि गुंडों ने उनके राशन कार्ड छीन लिए थे।
6. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कमेटी के एक सदस्य आतिफ रशीद को उनकी ड्यूटी करने से रोका गया। उन पर और उनकी टीम पर 29 जून को जाधवपुर इलाके में हमला किया गया। जिलाधिकारी
और पुलिस को पहले से टीम के जाने का नोटिस दिया गया था, पर उन्हें कोई पुलिस सुरक्षा नहीं दी गई।
पुलिस और बंगाल के अधिकारियों को सख्त निर्देश
चुनाव बाद हुई हिंसा पर NHRC की रिपोर्ट पढ़ने के बाद हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिए कि पहले जो भी शिकायतें आई हों, उन सभी मामलों में केस दर्ज करे। मानवाधिकार आयोग या दूसरे आयोगों के पास की गई शिकायतों पर भी FIR दर्ज की जाए। सभी पीड़ितों के बयान रिकॉर्ड किए जाएं।
कोर्ट ने बंगाल के मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि वे पुलिस की स्पेशल ब्रांच और इंटेलिजेंस ब्रांच में हुई सभी लिखा-पढ़ी को सुरक्षित रखें। अलग-अलग कंट्रोल रूम में दर्ज लॉग्स को भी सेफ किया जाए।
इसके अलावा 2 मई से अब तक के जो भी दस्तावेज हैं, उन्हें तुरंत कमेटी के सदस्यों के दस्तखत के बाद एक सीलबंद लिफाफे में रखा जाए। इस मामले में किसी भी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए।
विपक्ष के लीडर शुभेंदु बोले- बंगाल के बाहर FIR दर्ज हो
बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि हम कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं, पर इस मामले की जांच स्वतंत्र एजेंसी को दी जानी चाहिए। FIR बंगाल से बाहर दर्ज की जाए
और इसकी जांच जारी रहे। तब चीजें साफ होंगी। कमेटी की रिपोर्ट ये साबित करती है कि बंगाल सरकार ने हिंसा पर जो जवाब दिया था, वो झूठा था।