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*असली सवाल : कोल्हान के रेलवे स्टेशनों के साथ भेदभाव क्यों? कब तक चुप्पी साधे रहेंगे हमारे जनप्रतिनिधि?*
चक्रधरपुर 31 मार्च
ओड़िशा के बामड़ा में रेल चक्का जाम आंदोलन के कुछ घंटे बाद ही रेलवे को नागरिकों की मांग के आगे झुकना पड़ गया। रेलवे ने यहां पहली अप्रैल से दो जोड़ी एक्सप्रेस ट्रेनों के प्रायोगिक ठहराव का आदेश दिया है। बामड़ा में कल यानी शुक्रवार 1 अप्रैल से हावड़ा-अहमदाबाद और दुर्ग-दानापुर एक्सप्रेस ट्रेनों का स्टॉपेज शुरू हो जाएगा। आपको बता दें कि कोरोना के नाम पर रेलवे ने यहां से कई एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव हटा लिया था। जिससे आक्रोशित जनता ने 30 मार्च को 8 घंटे तक रेल चक्का जाम कर रेलवे की चूलें हिला दी थी।
लेकिन असली सवाल अब भी यही है कि कोल्हान के छोटे रेलवे स्टेशनों के साथ कब तक होता रहेगा भेदभाव? कोरोना से पहले की स्थिति बहाल क्यों नहीं की जा रही? आदिवासी बहुल क्षेत्र के स्टेशनों पर एक्सप्रेस ट्रेनों का स्टॉपेज तो छोड़िए, पूर्व में चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों तक को बंद कर दिया गया है। चक्रधरपुर से राउरकेला के बीच सिर्फ एक ‘खैराती ट्रेन’ सारंडा सवारी गाड़ी चलाई जा रही है। कई स्टेशनों से चक्रधरपुर तक जाने के लिए भी कोई ट्रेन नहीं है। गरीब, आदिवासी, छात्र, व्यापारी और मरीज परेशान हैं। क्यों हमारे जनप्रतिनिधियों को ये समस्याएं नजर नहीं आ रही? ट्रेनों के लिए सांसद, विधायक और मंत्रियों का प्रयास जुबानी जमा खर्च और पत्राचार तक ही सीमित क्यों है? या फिर रेलवे की तानाशाही के आगे जनता द्वारा चुने गए नुमाइंदों की कोई अहमियत नहीं रह गई है? गोइलकेरा की जागरुक जनता ने इस मनमानी के खिलाफ सबसे पहले आंदोलन किया था। लेकिन रेलवे ने दगाबाजी की। प्रशासनिक अधिकारियों के सामने आश्वासन देने के बावजूद ट्रेनें नहीं रोकी गई। अगर आंदोलन करने से ही ट्रेनें मिलेगी(जैसा बामड़ा में हो रहा) तो जनता को फिर से जागना होगा और जगाना होगा रेलवे को, अपने नुमाइंदों को-कुम्भकर्णी निद्रा से।