वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि खड़गे का नाम अचानक कैसे सामने आया और पर्चा दाखिल किया? सूत्रों ने बताया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अध्यक्ष पद के लिए शुरू से कांग्रेस नेतृत्व की पहली पसंद नहीं थे. राहुल गांधी की पहली पसंद मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी की पहली पसंद सुशील कुमार शिंदे थे. हालांकि इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान में बदलाव की बिसात बिछानी चाही. इसके लिए पार्टी में आंतरिक सर्वे भी कराया गया.
सर्वे में क्या निकला?
इस सर्वे में 60 फीसदी लोगों की राय अशोक गहलोत के पक्ष में थी. इसके बावजूद उन्हें दिल्ली लाकर राज्य की कमान सचिन पायलट को देने के मकसद से अशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का फैसला किया गया.
इसके बाद ही सोनिया गांधी ने गहलोत से बात की और उन्हें अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने को राजी किया. हालांकि, गहलोत ने नेतृत्व को साफ कर दिया था कि अगर वो बतौर अध्यक्ष दिल्ली आते हैं तो उनकी जगह राज्य की कमान पायलट को नहीं बल्कि सी पी जोशी को सौंपी जाए.
गहलोत के इसी शर्त को कांग्रेस आलाकमान संभवतः इस बार नहीं मानना चाहता था. इसलिए सोनिया गांधी ने पर्यवेक्षकों को जयपुर भेजा और फिर जयपुर में उस रात कैसी बगावत हुई ये सभी को पता है.
गांधी परिवार का क्या है इरादा?
इसके बाद ही गांधी परिवार ने अपना मन बदलने का विचार किया. गहलोत की बजाय किसी और को अध्यक्ष पद के लिए खड़ा करने का फैसला किया. इसी सिलसिले में सोनिया गांधी ने संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल और पार्टी के वरिष्ठ नेता एके एंटनी को दिल्ली बुलाया.
सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने इन दोनों नेताओं से कई दौर की लंबी चर्चाएं की और उसके बाद खड़गे के पक्ष में फैसला करके गहलोत से चुनाव नहीं लड़ने को कहा.
जानकार सूत्रों का कहना है कि भले ही गांधी परिवार इस बार कह रहा हो कि वो किसी का समर्थन नहीं करेगा मगर पर्दे के पीछे गांधी परिवार चाहता है कि अध्यक्ष कोई ऐसा विश्वासपात्र ही बने जिससे पार्टी पर गांधी परिवार का होल्ड कमज़ोर ना हो.
यही वजह है कि आखिरी फैसला राहुल गांधी की पहली पसंद और पार्टी का वरिष्ठ दलित चेहरा मल्लिकार्जुन खड़गे के हक में हुआ और दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता ने भी अपना नाम वापस ले लिया