अपने अन्दर से अहंकार को निकालकर स्वयं को हल्का कीजिये क्योंकि ऊँचा वही उठता है जो हल्का होता है !! – देवी चित्रलेखा जी

चाईबासा 28 feb

केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी भी काल में मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता !!
मन आपका है। आप इसे जहाँ चाहें लगायें। चाहें तो इसे प्रभु भक्ति में समर्पित करे चाहें तो विषय भोगों में लगा लें। यह मन मैला नीच है,इसकी प्रकृति भी नीच ही है। इसे केवल बुरे कर्म ही अच्छे लगते हैं। यह जान बूझ कर अमृत को त्याग हर प्रकार की विषय-वासना में लिप्त रहता है। मन वासनाओं का मुरीद है। ध्यान, सत्संग और सिमरन इसके शत्रु हैं। यह परमात्मा से दूर भागता है। परन्तु अगर जीवन में सुख शान्ति चाहिए आनन्द चाहिए, उत्सव चाहिये तो परमात्मा ही एक सहारा है।
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श्री श्याम प्रचार मंडल चाईबासा के तत्वधान में प्रथम दिवस में कथा वाचिका देवी चित्रलेखाजी ने सर्वप्रथम परिचय में बताया केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी भी काल में मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता !!
इसलिए हम सभी यहाँ भगवद ज्ञान प्राप्त करने के लिए एकत्र हुए हैं। विश्व की सबसे कम आयु की श्रीमद् भागवत कथा वाचिका देवी चित्रलेखाजी (देवीजी) ने अपनी अमृतमयी वाणी के द्वारा सभी भागवत कथा प्रेमियों को कथा के प्रथम दिवस में प्रवेश कराते हुए प्रथम स्कंध के प्रथम श्लोक की व्याख्या करते हुए सभी भक्तों को सुखदेव जी के जन्म की कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि सुखदेव जी माता के गर्भ से जन्म लेते ही वन में चले गए। ऐसे सर्वभूत श्री सुखदेवजी जिन्हें ये भी नहीं पता की स्त्री और पुरुष में क्या भेद है । जिनके पिता श्री वेद व्यास जी उन्हें बिलयन के लिए जंगल गए और पुत्र पुत्र कहते हुए थक गए तब तरु यानि वृक्षों ने कहा की कौन किसका पुत्र और कौन किसका पिता ?
वेद व्यास जी आप जिनको अपना पुत्र कह रहे है वो तो कभी आपका पिता था ।
ऐसे शब्दों का श्रवण कर में वेद व्यास जी को सत्य का ज्ञान हो गया और वो सुखदेव जी को बिना ही वापस चले आये ।
और आगे के प्रसंगों के माध्यम से परीक्षित जी के जन्म को श्रवण कराया । परिता इछित – इति परीक्षित जिनकी भगवान् ने गर्भ में ही रक्षा की ।
आगे कथा के प्रसंगों के द्वारा कुंती स्तुति,भीष्म स्तुति, राजा परीक्षित जी का सुखदेव जी को सभा में आगमन, सधोमुक्ति का वर्णन आदि आदि कथा का श्रवण करा कर कथा सुनने के नियम बताये और हरिनाम संकीर्तन के साथ संकीर्तन यात्रा के प्रथम दिवस का विश्राम हुआ ।

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