रांची राज्य में नगर निकायों के चुनाव जल्द कराने को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका पर गुरुवार को सुनवाई हुई. हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आनंद सेन की कोर्ट ने पूर्व पार्षद रोशनी खलखो सहित अन्य की ओर से दायर याचिका को स्वीकार कर लिया. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि 3 सप्ताह में झारखंड में निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करें. कोर्ट ने आदेश की प्रति राज्य के मुख्य सचिव, नगर विकास सचिव एवं राज्य निर्वाचन आयोग को तुरंत फैक्स के मध्यम से सूचित करने का निर्देश दिया.कोर्ट ने अपने आदेश में निकाय चुनाव नहीं कराने को संवैधानिक तंत्र की
विफलता बताया. कोर्ट ने कहा कि चुनाव नहीं होना लोकतांत्रिक व्यवस्था को खत्म करने वाला जैसा है.
पूर्व की सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि जिस प्रकार पंचायत चुनाव की निर्धारित समय सीमा पूरी होने के बाद भी पंचायत प्रतिनिधियों को अधिकार दिया गया था, उसी तर्ज पर निकाय चुनाव की अवधि समाप्त होने के बाद पार्षदों को भी उनके अधिकार दिए जाएं, जबतक कि निकाय चुनाव ना हो जाए. प्रार्थी ने रांची नगर निगम में प्रशासक नियुक्त करने के आदेश को भी चुनौती दी
है.
क्या है मामला
पूर्व पार्षद रोशनी खलखो सहित अन्य की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया है कि राज्य में जल्द निकायों का चुनाव कराया जाए. जब तक चुनाव नहीं होता है तब तक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में वर्तमान पार्षद को तदर्थ रूप में दायित्व का निर्वहन करने का आदेश देने का आग्रह कोर्ट से किया गया है. बता दें कि राज्य सरकार के द्वारा राज्य के 34 निकाय परिषद के निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त कर सभी शक्तियां और कार्य प्रशासन को सौंपने का निर्णय लिया गया था. निकायों में पदस्थापित नगर आयुक्त, अपर नगर आयुक्त या कार्यालय पदाधिकारी प्रशासक के रूप में कार्य कर रहे हैं.
हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद लग सकता है निकाय चुनाव पर ग्रहण,
लेकिन राज्य में होनेवाले निकाय चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है. पूर्व में जारी निकाय चुनाव की अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाते हुए ओबीसी आरक्षण पर राज्य सरकार को स्थिति साफ करने का निर्देश दिया था.
ओबीसी आरक्षण को लेकर एक बार फिर आजसू पार्टी करेगी कोर्ट का रुख
निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर आजसू विधायक लंबोदर महतो ने साफ कहा कि आजसू पार्टी पिछड़ों के हक और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ेगी. ओबीसी आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जिसमें झारखंड सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर यह बताया गया था कि राज्य सरकार की ओर से ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट राज्य पिछड़ा आयोग की ओर से कराया जायेगा. जबकि राज्य राज्य पिछड़ा आयोग कई वर्षों से नहीं है. ऐसे में ट्रिपल टेस्ट नहीं हुआ और एक तरह से राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का काम किया. हमारी पार्टी फिर से कोर्ट का रुख करेगी.
तीन सप्ताह के अंदर आयोग गठन कर ट्रिपल टेस्ट करना नामुमकिन
झारखंड हाइकोर्ट ने पूर्व पार्षद रौशनी खलखो और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए निकाय चुनाव की अधिसूचना तीन सप्ताह के अंदर जारी करने का आदेश दिया है. दूसरी तरफ राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि राज्य पिछड़ा आयोग से ट्रिपल टेस्ट कराये जाने के बाद चुनाव कराया जायेगा. ऐसे में तीन सप्ताह के अंदर राज्य सरकार द्वारा आयोग गठन कर ट्रिपल टेस्ट करा कर ओबीसी आरक्षण को लागू करना नामुमकिन है.
क्या है ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला
दरअसल, विकास किशनराव गवली के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए एक फॉर्म्यूला दिया था. इसे ट्रिपल टेस्ट फार्मूला कहा गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निकाय चुनाव में राज्य सरकार ट्रिपल टेस्ट फार्मूले का पालन करने के बाद ही ओबीसी आरक्षण तय कर सकती है.
सबसे पहले स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति को लेकर अनुभवजन्य जांच के लिए एक आयोग की स्थापना की जाये. यह आयोग निकायों में पिछड़़पेन की प्रकृति का आकलन करेगा और सीटों के लिए आरक्षण प्रस्तावित करेगा.
आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाये और उसका सत्यापन किया जाये.
इसके बाद ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले यह ध्यान रखा जाये कि एससी-एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कुल आरक्षित सीटें 50 फीसदी से ज्यादा न हों.