रांची
झारखण्ड में निवास करने वाले लोगों ने संघर्ष किया है। संघर्ष के प्रारंभिक दिनों में शिक्षा का अभाव था। यही वजह रही कि कई लोगों की गाथा सहेज कर नहीं रखी गई। लेकिन समाज में कई ऐसे लोग भी रहे, जिन्होंने इस संघर्ष को करीब से देखा, समझा और उसे संजोकर रखने का प्रयास किया। कुछ लोग अपने संघर्ष की ऐसी छाप लोगों के दिलों में छोड़ते हैं कि उन्हें कागजों में उतारना गौरव की बात होती है। ये बातें मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्य सभा सांसद श्री शिबू सोरेन के जन्मदिन के अवसर पर उनके संघर्ष से जुड़ी तीन पुस्तकाें के लाेकार्पण समारोह में कही। मुख्यमंत्री ने कहा कि वास्तव में आज का दिन गुरु जी और पुस्तक के लेखक का है। लेखक ने इस वीर भूमि के इतिहास को संजो कर युवाओं के साथ-साथ बच्चों को इतिहास को समझाने का प्रयास किया है।
*संघर्ष की परंपरा हमेशा से रही है*
मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखण्ड में हमेशा से संघर्ष की परंपरा रही है। शोषण के खिलाफ हमेशा आवाज उठाई गई। जब देश आजादी के सपने नहीं देखता था। उस समय से यहां के लोगों ने संघर्ष का इतिहास लिखना प्रारंभ किया था। यहां के लोगों में संघर्ष करने की शैली अलग-अलग रही, जिसमें उन्होंने अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर जंग जीता है।
*राज्य की आंतरिक और बाह्य क्षमता को देख रहा हूं*
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार झारखण्ड की आंतरिक और बाह्य क्षमता को करीब से देख रही है। यह प्रयास किया जा रहा है कि जिस उद्देश्य से हमारे पूर्वजों ने अलग झारखण्ड राज्य के लिए जंग लड़ी, इतिहास बनाया। उन सपनों को कैसे पूरा किया जाए। राज्य में क्षमता की कमी नहीं। कमी चेतना की है। अगर वह चेतना हम जगा पाए तो निश्चित रूप से राज्य आने वाले समय में आंतरिक और बाह्य क्षमता से देश के अग्रणी राज्यों से आगे जा सकती है। पीड़ा देने वाली चीजों का सफाया खुद ब खुद हो सकता है। झारखण्ड छोटा प्रदेश छोटा जरूर है, लेकिन यहां निवास करने वाले हर समुदाय और हर वर्ग में बहुत ही मजबूत गर्व करने वाली शक्ति मौजूद है।
*बदलाव के लिए प्रयास बोलने से नहीं करने से होगा*
इस मौके पर राज्य सभा सांसद ने कहा कि पुस्तक में महाजनी आंदोलन के संबंध में लिखा गया है। इस प्रथा का अंत भी हुआ। झारखण्ड अलग राज्य के लिए आंदोलन किया। आज हमसब अलग झारखण्ड राज्य में हैं। लेकिन अभी तक आदिवासियों, किसानों, मजदूर कमोबेश लाभान्वित नहीं हो सकें हैं। राज्यसभा सांसद ने महाजनी प्रथा के खिलाफ किए गए आंदोलन की विस्तार से उपस्थित लोगों को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सैकड़ों मुकदमे लड़े गए। खेती करने वालों के हक के लिए सालों प्रयास होते रहे। फिर एक दिन मेहनत करने वालों के खेत से धान खलिहान और फिर खलिहान से घर आया। श्री सोरेन ने बताया कि शिक्षा को लेकर भी जागरूकता से संबंधित कई कार्यक्रम का आयोजन किया गया। शराब-हड़िया के खिलाफ भी लोगों को जागरूक किया गया। इसकी रोकथाम के लिए प्रयास बोलने से नहीं करने से होगा। श्री शिबू सोरेन ने कहा कि जंगल संरक्षण की दिशा में भी कार्य होना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण बेहद जरूरी है। जंगल बचाओ आंदोलन जरूरी है।
*इन पुस्तकों का हुआ लोकार्पण*
राज्य सभा सांसद श्री शिबू सोरेन की जीवनी पर आधारित पुस्तकों में “दिशाेम गुरु: शिबू साेरेन” (हिंदी) “ट्राइबल हीराे : शिबू साेरेन” (अंगरेजी) और “सुनाे बच्चों, आदिवासी संघर्ष के नायक शिबू साेरेन (गुरुजी) की गाथा” शामिल हैं।
*दिशाेम गुरु : शिबू साेरेन नामक यह पुस्तक मूलत: श्री शिबू साेरेन के जीवन के संघर्ष की गाथा है।* पुस्तक में इस बात की विस्तार से चर्चा की गयी है कि किन हालाताें में श्री शिबू साेरेन काे स्कूल छाेड़ कर महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदाेलन में उतरना पड़ा। कैसे उन्हाेंने आदिवासियाें काे उनकी जमीन पर कब्जा दिलाया। कैसे धान काटाे आंदाेलन चलाया। उनका लंबा समय पारसनाथ की पहाड़ियाें और जंगलाें में बीता। कैसे श्री शिबू साेेरेन ने आदिवासी समाज काे एकजुट कर सामाजिक बुराइयाें काे दूर करने का अभियान चलाया। पुस्तक में इस बात का जिक्र है कि कैसे उन्हाेंने विनाेद बिहारी महताे और एके राय के साथ मिल कर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया। पुस्तक में उनके राजनीतिक जीवन का भी विस्तार से वर्णन है। श्री शिबू साेरेन के जीवन की राेचक और दुर्लभ तसवीरें भी उपलब्ध हैं।
*ट्राइबल हीराे : शिबू साेरेन नामक पुस्तक हिंदी का अंगरेजी में अनुवाद है।* तीसरी पुस्तक में श्री शिबू साेरेन द्वारा झारखण्ड के लिए 40 वर्षों से अधिक समय तक किये गए संघर्ष काे अत्यंत सरल शब्दों में चित्रांकन शैली द्वारा प्रस्तुत किया।
*इस अवसर पर मंत्री श्री चम्पई सोरेन, मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव, मंत्री श्री मिथिलेश कुमार ठाकुर, मंत्री श्री बन्ना गुप्ता, मंत्री श्री बादल, मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता, विधायक श्री मथुरा महतो, विधायक श्री बसंत सोरेन, विधायक श्री मंगल कालिंदी, विधायक श्री इरफान अंसारी, पुस्तक के रचयिता श्री अनुज कुमार सिन्हा, श्री डॉ. पीयूष कुमार, व अन्य उपस्थित थे।*
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