जमशेदपुर शहर की आबादी जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है ,यातायात समस्या लोगों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है । आज यातायात ने सबसे बड़ी समस्या का रुप ले लिया है। सडक़ जाम की वजह से लोगों का सारा रूटीन चरमरा जाता है। जहां 10 मिनट में पहुंचना हो वहां घंटा भर लग जाता है।
ऐसे में जिले के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री द्वारा लोगों से यातायात समस्या के समाधान के लिए सुझाव मांगा जाना एक महत्वपूर्ण पहल कहा जा सकता है। उन्होंने आम लोगों से 15 जनवरी तक भेजे जाने की अपील की है। लोगों के बीच इस बात को लेकर एक सकारात्मक चर्चा है कि प्रशासन तक सीधे उनकी बात पहुंच सकती है। सामान्य तौर पर किसी तीसरे माध्यम के जरिए लोग अपनी बात पहुंचते हैं उनकी सीधी बात पहुंच नहीं पाती।
जमशेदपुर एक ऐसा शहर है जहां कंपनी शहर के बीचो-बीच स्थापित है । आबादी उसके आसपास फैलती गई ।इस वजह से यहां के औद्योगिक विकास का सीधा असर आम जनमानस पर पड़ता है । टाटा स्टील का एक मिलियन टन का प्लांट आज 11 मिलियन टन का हो चुका है । उस अनुपात में लॉजिस्टिक की ढुलाई कई गुना बढ़ गई है। सारा दबाव इन्हीं सडक़ों पर है ।सडक़ का चौड़ीकरण तो किया गया है मगर वह नाकाफी प्रतीत होता है। एक बड़ी समस्या यह भी है कि इस शहर की व्यवस्था टाटा स्टील और झारखंड सरकार के मालिकाना दावपेच में कुछ इस कदर फंसी हुई है कि उसका समाधान नहीं निकल पाता। लंबे समय से जमशेदपुर की यातायात समस्या के समाधान के लिए ईस्टर्न कॉरिडोर, वेस्टर्न कॉरिडोर की बात कही जाती रही । बड़े-बड़े दावे किए जाते रहे । यह दोनों कॉरिडोर बन गए मगर जो कुछ इन दोनों कॉरिडोर के बारे में बताया गया था, जमीन पर उसका बिल्कुल उलट देखने को मिला ।कहां भारी वाहनों के आवागमन के लिए फ्लाईओवर बनाए जाने की चर्चा थी । लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
इतनी बड़ी आबादी वाले शहर का दो तिहाई हिस्सा खरकाई और स्वर्ण रेखा नदियों से गिरा हुआ है। हाल-हाल तक केवल दो पुल ऐसे थे जो शहर के दूसरे हिस्से से इसे जोडऩे थे। हाल के सालों में दो और पुल जरूर बने हैं मगर जितने पुल की जरूरत है उसे अनुपात में यह काफी कम है। एक उदाहरण देखा जा सकता है कि जब स्वर्णरेखा नदी पर मानगो को जोडऩे वाला पुल करीब 28-30 साल पहले बना तो ऐसा लगा कि अब यातायात समस्या का समाधान हो जाएगा मगर 5-10 साल बीतते- बीतते थे वह नया पुल संकरा सा प्रतीत होने लगा है । शहर के बीचो-बीच बस अड्डा का होना भी एक बड़ी समस्या है। वह भी पुल के ठीक पास है। पुल के ठीक दूसरे छोर पर इतना व्यस्त चौराहा है कि वह समस्या को कई गुणा बढा देता है। पिछले एक दशक से यह बात सुनी जा रही है कि बस अड्डा को शहर से बाहर स्थानांतरित कर एनएच पर भेजा जाएगा मगर वह प्रक्रिया कागज से आगे नहीं निकल पा रही।
शहर में बेतरतीब तरीके से होने वाले ऑटो संचालन में काफी गड़बडिय़ां देखने को मिलती है ं। वह सारी समस्याओं को कई गुणा कर देती है । सडक़ जाम के पीछे आटो की भरमार और उसके चालन का तरीका प्रमुख कारण है । लोगों की आवाजाही के लिए यह एक प्रमुख जरिया जरूर है मगर परेशानी का भी सबसे बड़ा माध्यम इसे ही कहा जा सकता है। अब यह बात बेमानी है कि शहर में दिन के समय भारी वाहनों का परिचालन बंद कर दिया जाए । शहर के औद्योगिक विकास की सेहत को ध्यान में रखा जाए तो यह संभव नहीं है। यही कारण है कि बिना फ्लावर बनाये समस्या का समाधान संभव नहीं है। कई बार तो देखा जाता है कि दिन में तो किसी तरह गुजारा हो भी जाए मगर रात के समय शहर के बड़े हिस्से में भारी वाहनों की वजह से जो खौफनाक स्थिति पैदा होती है वह उसका अहसास गहरी नींद में सोई आधी आबादी को नहीं हो पाती। जो लोग आधी रात को उस जाम में फंसाते हैं उन्हें ही समझ में आता है कि वह समस्या कितनी विकट है। किसी की ट्रेन छूटती है तो कोई देर से अस्पताल पहुंचता है। भारी वाहनों के परिचालन के लिये कई तरह के वैकल्पिक सुझाव दिए गए हैं मानगो में फ्लावरओवर का शिलान्यास भी मुख्यमंत्री द्वारा किया जा चुका है मगर वह जमीन पर कब उतरेगा इसे यह देखा जाना है।
जहां तक यातायात व्यवस्था की बात है तो यातायात पुलिस से जुड़े लोग हेलमेट , सीट बेल्ट चेकिंग से आगे यातायात समस्या के समाधान के लिए आते नहीं दिखते। आए दिन मानगो पुल जाम रहता है। शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब घंटा- दो घंटा पुल पर जाम की स्थिति नहीं रहती। सामान्य जाम तो अब इस पुल की नियती बन चुकी है। एक प्रस्ताव यह भी आया था कि जिस तरह बड़े शहरों में नदियों पर छोटे पुल होते हैं कुछ वैसे ही पुलोंं का निर्माण ग्रामीण विकास योजना के तहत कराया जाए और छोटे वाहनों का संचालन इन पुलों से हो तो जो भी मौजूदा पुल हैं उन पर दबाव काफी कम होगा। पटना जैसे शहर में फ्लाईओवर का जाल बिछ सकता है , राजधानी रांची में कई फ्लावर बन चुके हैं मगर जमशेदपुर में फ्लावर का निर्माण क्यों नहीं हो पता यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। कौन निकालेगा इस समस्या का समाधान यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
उपायुक्त ने जो पहल की है वह सराहनीय है। जो सुझाव आयेंगे, उनपर मंथन कर अमल किया जाएगा ऐसी उम्मीद की जानी चाहिये।