भारत ने सिंधु समझौता रोका… जानिए कैसे बूंद-बूंद को तरसेंगे करोड़ों पाकिस्तानी!

पहलगाम के बदले पानी की चोट

कश्मीर के पहलगाम के बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले के दौरान 28 लोगों की मौत के बाद भारत सरकार ने कई कड़े फैसले किए हैं. बुधवार को आयोजित सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक में साल 1960 में हुए सिंधु जल समझौता को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखने का निर्णय लिया गया है. पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन कही जाने वाली सिंधु और सहायक नदियों के पानी पर हिंदुस्तान का नियंत्रण होते ही वहां के लोग पानी के लिए तरस जाएंगे. सिंधु और सहायक नदियां चार देशों से गुजरती हैं. इतना ही नहीं 21 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या की जल जरूरतों की पूर्ति इन्हीं नदियों पर निर्भर करती है.

क्या है सिंधु जल समझौता?

सिंधु जल समझौता तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में हुआ था. 62 साल पहले हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को सिंधु और उसकी सहायक नदियों से 19.5 फीसदी पानी मिलता है. पाकिस्तान को करीब 80 फीसदी पानी मिलता है. भारत अपने हिस्से में से भी करीब 90 फीसदी पानी ही उपयोग करता है. साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को 6 नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस समझौते के तहत दोनो देशों के बीच प्रत्येक साल सिंधु जल आयोग की बैठक अनिवार्य है.

सिंधु जल संधि को लेकर पिछली बैठक 30-31 मई 2022 को नई दिल्ली में हुई थी. इस बैठक को दोनों देशों ने सौहार्दपूर्ण बताया था. पू्र्वी नदियों पर भारत का अधिकार है. जबकि पश्चिमी नदियों को पाकिस्तान के अधिकार में दे दिया गया. इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी. भारत को आवंटित 3 पूर्वी नदियां सतलज, ब्यास और रावी के कुल 168 मिलियन एकड़ फुट में से 33 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल आवंटित किया गया है.

भारत के उपयोग के बाद बचा हुआ पानी पाकिस्तान चला जाता है. जबकि पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम और चिनाब का लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है. सिंधु जल प्रणाली में मुख्य नदी के साथ-साथ पांच सहायक नदियां भी शामिल हैं. इन नदियों में रावी, ब्यास, सतलज, झेलम और चिनाब है. ये नदियां सिंधु नदी के बाएं बहती है. रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां जबकि जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु को पश्चिमी नदियां कहा जाता है. इन नदियों का पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. ऐसे में ये समझौता स्थगित करना पाक को भारी पड़ेगा.

एक्सपर्ट उठाते रहे हैं सवाल

कई विशेषज्ञ सिंधु संधि जल समझौते को एक ऐतिहासिक भूल मानते रहे हैं. उनका कहना रहा है कि भारत इस भूल को ठीक करे और समझौते में जरूरी संशोधन कर सिंधु और उसके सहायक नदियों का पानी उचित मात्रा में आवंटित करे. पाकिस्तान रुक-रुक कर भारत पर आतंकी हमला करता रहता है. ऐसे में खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते. नेहरू ने यह समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की उम्मीद से की थी. लेकिन पाकिस्तान हर बार इस उम्मीद पर पानी फेरता रहा है. ऐसे में भारत सरकार का सिंधु जल समझौता स्थगित करने का फैसला पाकिस्तान पर करारा और गहरी चोट देने वाला साबित होने वाला है.

पानी को लेकर ऐसे हुआ विवाद

साल 1947 में आजादी के बाद से पानी को लेकर विवाद शुरू हो गया था. साल 1948 में भारत ने पानी रोक दिया, जिससे पाकिस्तान में दिक्कत शुरू हो गई. उसके बाद एक समझौते के साथ पानी की आपूर्ति शुरू हुई. उसके बाद साल 1949 में एक अमेरिकी विशेषज्ञ डेविड लिलियेन्थल ने इस समस्या को राजनीतिक स्तर से हटाकर टेक्निकल और व्यापारिक स्तर पर सुलझाने की सलाह दी. लिलियेन्थल ने विश्व बैंक से मदद लेने की सिफारिश भी की थी.

नेहरू और अयूब के बीच संधि

सितंबर 1951 में विश्व बैंक के अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करना स्वीकार किया. करीब 10 साल तक बैठकों का दौर चलता रहा और वर्षों तक बातचीत चलने के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच जल पर समझौता हुआ. इसे ही 1960 की सिंधु जल संधि कहते हैं. इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने रावलिपिंडी में दस्तखत किए थे.

साल 1961 से संधि की शर्तें लागू

12 जनवरी 1961 से संधि की शर्तें लागू कर दी गईं. इस तरह दोनों देशों के बीच एक बड़ा झगड़ा शांत हुआ. इस संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं. 3 पूर्वी नदियों (रावी, व्यास और सतलज) के पानी पर भारत का पूरा हक दिया गया. बाकी 3 पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के पानी के बहाव को बिना बाधा पाकिस्तान को देना था. भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है.

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