इसी बहाने
फाल्गुन मे रंगों का त्योहार मनाया जाता है इसके साथ कई दंत कथायें जुड़ी हुई है . कहा जाता है कि भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए भगवान ने नरसिंह अवतार लिया था और होलिका का दहन हो गया था . इसके साथ ही गेहूं और जौ की बाली के अलावा चना को होलिका दहन के दिन ताप मे दिखाया जाता है . वास्तव मे यह गेहू, जौ और चना की नई फसल का प्रतीक है . इसके अलावा यह भक्ति की शक्ति का पर्व है और भक्त प्रह्लाद की भक्ति को दर्शाता है . यह मस्ती का पर्व है इस मस्ती के लिए बहुत हदतक बॉलीवुड का भी योगदान है . सुना जाता है आर. के. स्टूडियो मे जब होली मनाई जाती थी, तब राज कपूर के बुलावे पर लगभग तमाम हीरो हिरोइन पहुंचते थे और उन्हें रंग से सराबोर कर दिया जाता था . तमाम लोग काफी मजा लेते थे . राज कपूर के बाद कुछ साल तो यह परम्परा चली उसके बाद बंद हो गई . राजनीति की बात करे तो लालू यादव के दरबार में कुर्ता फाड़ होली मनाई जाती थी और वहां पहुंचने वाले हर व्यक्ति इसके लिए तैयार रहते थे . होली पर लोग घर घर जाते है और विभिन्न पकवानों से उनका स्वागत किया जाता है .कई स्थानो पर जोगीरा गाया जाता है . मस्ती भरे फिल्मी गीतों का भी इसमे योगदान है . नवरंग, मदर इंडिया कटी पतंग, सिलसिला, शोले के होली गीत आज भी चौक चौराहे पर गूंजते रहते है . होली पर सामाजिक संस्थाओ द्वारा महामूर्ख सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता है और कवि सम्मेलन कराया जाता है .इस दिशा में अपने शहर में सुरभि के तत्वाधान मे अनेक कवि सम्मेलन गोविंद दोदराजका द्वारा कराया जाता रहा है .अन्य संस्थाएं भी आगे आई है , लेकिन मस्ती मे लोग बाबा की बुटी, भंग की तरंग का सेवन कर नाचते-गाते है . यह अलग बात है कि अब यह हुड़दंग का रूप ले चुका है. प्रशासन का सर दर्द बनने के कारण प्रशासन को ड्राई डे घोषित करना पड़ता है . मनचले युवक शराब पी कर छेड़ छाड़ करने से बाज नहीं आते और कई बार इस वजह से झगड़े भी हो जाते हैं . कहने का मतलब है कि होली की मस्ती मे विष घुल जाता है . हुडदंगीयों का मैला इसी का नाम है . होली मे तब और अब मे काफी फर्क़ आ गया है . इसे इस तुकबंदी से बखूबी समझा जा सकता है . एक होली थी और ये भी एक होली है, उजड़ा हुआ चमन है, रोता हुआ माली है . ऐसे हुडदंग पर रोक लगनी चाहिए . आप सहमत हैं ना…